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तन्मय होकर अब बातें कर लूं। जीवन के झरनों से मोती

तन्मय होकर अब बातें कर लूं।
जीवन के झरनों से मोती चुनकर।
दूर कहीं से आती आवाजें सुनकर।
खाली था जो, खुशियों से झोली भर लूं।
मैं गीत कोई गाऊँ जीवन के पथ पर।
पर जोगी बनूँ, अपनी पीड़ मिटाऊँ कैसे।।

भर-भर कर आती उलझन तूफानी।
लगती अब मेरी नौका है बहुत पुरानी।
घन-घन नभ मंडल में घिर आते बादल।
दुख-सुख दोनों की अपनी-अपनी कहानी।
रात अँधेरा है तो क्या, मैं कब से हूं डट कर।
पर अनुभव से अपनी उलझन सुलझाऊँ कैसे।।

मन विकल हुआ, कहां से ज्ञान की धारा लाऊँ।
दुविधा के अंकुर फूट गए, कैसे मैं बच पाऊँ।
आहट की घबराहट है और व्यथा है मन में।
यह जीवन करवट बदले, कैसे नीति बतलाऊँ।
कैसे समझूंगा जो हूं मैं कुछ अलग सा हट कर।
सुधा नीर की छाया से अपनी प्यास बुझाऊँ कैसे।।

रातों का आलम घना अँधेरा, फिर तारे छुप गए।
मैं चलता जाता था और पांव में काटें चुभ गए।
घना-घना बादल है और बारिश की गिरती बुंदे।
अब कैसे बोलूं धैर्य के मेरे यह छाता छूट गए।
पर क्योंकर रहना है अब दुनिया से कट कर।
घना कालिमा रातें है, मन के दीप जलाऊँ कैसे।।

तन्मय होकर अब मैं भी तो सच्ची-सच्ची बोलूं।
ठहरो तो, जीवन दुविधा की परतों को खोलूं।
तुम समझोगे, बाते समझो मैं खुद को अब खो लूं।
पथ लंबा है, ठहरो तो-साथ तेरे- साथ तो हो लूं।
थोरी-थोरी बातें है, उफान बरा है, बैठूं क्यों रट कर।
समवर्ती सुख-दुख दोनों है, ऐसे में अश्रु छिपाऊँ कैसे।।

©Madanmohan Thakur (मैत्रेय)
  too night

#worldpoetry  Barun ThAkuR Shivam Singh Baghi Pallavi Srivastava  Skumar
तन्मय होकर अब बातें कर लूं।
जीवन के झरनों से मोती चुनकर।
दूर कहीं से आती आवाजें सुनकर।
खाली था जो, खुशियों से झोली भर लूं।
मैं गीत कोई गाऊँ जीवन के पथ पर।
पर जोगी बनूँ, अपनी पीड़ मिटाऊँ कैसे।।

भर-भर कर आती उलझन तूफानी।
लगती अब मेरी नौका है बहुत पुरानी।
घन-घन नभ मंडल में घिर आते बादल।
दुख-सुख दोनों की अपनी-अपनी कहानी।
रात अँधेरा है तो क्या, मैं कब से हूं डट कर।
पर अनुभव से अपनी उलझन सुलझाऊँ कैसे।।

मन विकल हुआ, कहां से ज्ञान की धारा लाऊँ।
दुविधा के अंकुर फूट गए, कैसे मैं बच पाऊँ।
आहट की घबराहट है और व्यथा है मन में।
यह जीवन करवट बदले, कैसे नीति बतलाऊँ।
कैसे समझूंगा जो हूं मैं कुछ अलग सा हट कर।
सुधा नीर की छाया से अपनी प्यास बुझाऊँ कैसे।।

रातों का आलम घना अँधेरा, फिर तारे छुप गए।
मैं चलता जाता था और पांव में काटें चुभ गए।
घना-घना बादल है और बारिश की गिरती बुंदे।
अब कैसे बोलूं धैर्य के मेरे यह छाता छूट गए।
पर क्योंकर रहना है अब दुनिया से कट कर।
घना कालिमा रातें है, मन के दीप जलाऊँ कैसे।।

तन्मय होकर अब मैं भी तो सच्ची-सच्ची बोलूं।
ठहरो तो, जीवन दुविधा की परतों को खोलूं।
तुम समझोगे, बाते समझो मैं खुद को अब खो लूं।
पथ लंबा है, ठहरो तो-साथ तेरे- साथ तो हो लूं।
थोरी-थोरी बातें है, उफान बरा है, बैठूं क्यों रट कर।
समवर्ती सुख-दुख दोनों है, ऐसे में अश्रु छिपाऊँ कैसे।।

©Madanmohan Thakur (मैत्रेय)
  too night

#worldpoetry  Barun ThAkuR Shivam Singh Baghi Pallavi Srivastava  Skumar