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Sonal Panwar
विश्व कविता दिवस ” कविता “ शब्दों के मेल से बनती है एक कविता , मन के भावों को कागज़ के पन्नों पर उकेरती है एक कविता , कभी उलझन से भरे अंतर्मन से झांकती है एक कविता , तो कभी आंखों में छिपे मर्म का आभास कराती है एक कविता , कभी बोझिल मन को प्रफुल्लित करती है एक कविता , तो कभी ज़िन्दगी को सही दिशा बताती है एक कविता , है जीवन की सच्ची संगिनी एक कविता , निराशा की आंधी में आशा का दीप जलाती है एक कविता ! ©Sonal Panwar कविता #WorldPoetryDay #worldpoetry #हिंदी_कविता #hindi_poetry #Nojoto #नोजोटोहिंदी
aamil Qureshi
aamil Qureshi
कोरे कोरे कागज़ हम, रंगो की पिचकारी है शिक्षक हममें भर दे नये नये रंग ,अजब कलाकारी है शिक्षक ©aamil Qureshi # शिक्षक #Teachersday#teachersdayquote#dosti#love#teachersdaycelebration#hindi#poetry#thought#instateachersday#worldpoetry indira Arzooo Internet Jockey Sanam shona Satyaprem Priya Gour
Rajesh Raana
कविता क्या है ? कविता कोई अदृश्य आँख है , जो अंतर्मन में भी देख सकती है ; कविता कोई अदृश्य कान है जो सघन शोर में भी , करुण रुदन सुन सकती है कविता कोई अदृश्य ज़बान है जो काटें जाने पर भी , बोलती है , कविता , कविता है , जो न होती तो , बहुत कुछ अनदेखा रह जाता , बहुत कुछ अनसुना रह जाता , बहुत कुछ अनकहा रह जाता , कविता हर दौर में लाज़िम है । ©Rajesh Raana कविता #WorldPoetryDay #worldpoetry #rajeshraana
Madanmohan Thakur (मैत्रेय)
तन्मय होकर अब बातें कर लूं। जीवन के झरनों से मोती चुनकर। दूर कहीं से आती आवाजें सुनकर। खाली था जो, खुशियों से झोली भर लूं। मैं गीत कोई गाऊँ जीवन के पथ पर। पर जोगी बनूँ, अपनी पीड़ मिटाऊँ कैसे।। भर-भर कर आती उलझन तूफानी। लगती अब मेरी नौका है बहुत पुरानी। घन-घन नभ मंडल में घिर आते बादल। दुख-सुख दोनों की अपनी-अपनी कहानी। रात अँधेरा है तो क्या, मैं कब से हूं डट कर। पर अनुभव से अपनी उलझन सुलझाऊँ कैसे।। मन विकल हुआ, कहां से ज्ञान की धारा लाऊँ। दुविधा के अंकुर फूट गए, कैसे मैं बच पाऊँ। आहट की घबराहट है और व्यथा है मन में। यह जीवन करवट बदले, कैसे नीति बतलाऊँ। कैसे समझूंगा जो हूं मैं कुछ अलग सा हट कर। सुधा नीर की छाया से अपनी प्यास बुझाऊँ कैसे।। रातों का आलम घना अँधेरा, फिर तारे छुप गए। मैं चलता जाता था और पांव में काटें चुभ गए। घना-घना बादल है और बारिश की गिरती बुंदे। अब कैसे बोलूं धैर्य के मेरे यह छाता छूट गए। पर क्योंकर रहना है अब दुनिया से कट कर। घना कालिमा रातें है, मन के दीप जलाऊँ कैसे।। तन्मय होकर अब मैं भी तो सच्ची-सच्ची बोलूं। ठहरो तो, जीवन दुविधा की परतों को खोलूं। तुम समझोगे, बाते समझो मैं खुद को अब खो लूं। पथ लंबा है, ठहरो तो-साथ तेरे- साथ तो हो लूं। थोरी-थोरी बातें है, उफान बरा है, बैठूं क्यों रट कर। समवर्ती सुख-दुख दोनों है, ऐसे में अश्रु छिपाऊँ कैसे।। ©Madanmohan Thakur (मैत्रेय) too night #worldpoetry Barun ThAkuR Shivam Singh Baghi Pallavi Srivastava Skumar
Madanmohan Thakur (मैत्रेय)
तन्मय होकर अब बातें कर लूं। जीवन के झरनों से मोती चुनकर। दूर कहीं से आती आवाजें सुनकर। खाली था जो, खुशियों से झोली भर लूं। मैं गीत कोई गाऊँ जीवन के पथ पर। पर जोगी बनूँ, अपनी पीड़ मिटाऊँ कैसे।। भर-भर कर आती उलझन तूफानी। लगती अब मेरी नौका है बहुत पुरानी। घन-घन नभ मंडल में घिर आते बादल। दुख-सुख दोनों की अपनी-अपनी कहानी। रात अँधेरा है तो क्या, मैं कब से हूं डट कर। पर अनुभव से अपनी उलझन सुलझाऊँ कैसे।। मन विकल हुआ, कहां से ज्ञान की धारा लाऊँ। दुविधा के अंकुर फूट गए, कैसे मैं बच पाऊँ। आहट की घबराहट है और व्यथा है मन में। यह जीवन करवट बदले, कैसे नीति बतलाऊँ। कैसे समझूंगा जो हूं मैं कुछ अलग सा हट कर। सुधा नीर की छाया से अपनी प्यास बुझाऊँ कैसे।। रातों का आलम घना अँधेरा, फिर तारे छुप गए। मैं चलता जाता था और पांव में काटें चुभ गए। घना-घना बादल है और बारिश की गिरती बुंदे। अब कैसे बोलूं धैर्य के मेरे यह छाता छूट गए। पर क्योंकर रहना है अब दुनिया से कट कर। घना कालिमा रातें है, मन के दीप जलाऊँ कैसे।। तन्मय होकर अब मैं भी तो सच्ची-सच्ची बोलूं। ठहरो तो, जीवन दुविधा की परतों को खोलूं। तुम समझोगे, बाते समझो मैं खुद को अब खो लूं। पथ लंबा है, ठहरो तो-साथ तेरे- साथ तो हो लूं। थोरी-थोरी बातें है, उफान बरा है, बैठूं क्यों रट कर। समवर्ती सुख-दुख दोनों है, ऐसे में अश्रु छिपाऊँ कैसे।। ©Madanmohan Thakur (मैत्रेय) too night #worldpoetry Barun ThAkuR Shivam Singh Baghi Pallavi Srivastava Skumar
Madanmohan Thakur (मैत्रेय)
तन्मय होकर अब बातें कर लूं। जीवन के झरनों से मोती चुनकर। दूर कहीं से आती आवाजें सुनकर। खाली था जो, खुशियों से झोली भर लूं। मैं गीत कोई गाऊँ जीवन के पथ पर। पर जोगी बनूँ, अपनी पीड़ मिटाऊँ कैसे।। भर-भर कर आती उलझन तूफानी। लगती अब मेरी नौका है बहुत पुरानी। घन-घन नभ मंडल में घिर आते बादल। दुख-सुख दोनों की अपनी-अपनी कहानी। रात अँधेरा है तो क्या, मैं कब से हूं डट कर। पर अनुभव से अपनी उलझन सुलझाऊँ कैसे।। मन विकल हुआ, कहां से ज्ञान की धारा लाऊँ। दुविधा के अंकुर फूट गए, कैसे मैं बच पाऊँ। आहट की घबराहट है और व्यथा है मन में। यह जीवन करवट बदले, कैसे नीति बतलाऊँ। कैसे समझूंगा जो हूं मैं कुछ अलग सा हट कर। सुधा नीर की छाया से अपनी प्यास बुझाऊँ कैसे।। रातों का आलम घना अँधेरा, फिर तारे छुप गए। मैं चलता जाता था और पांव में काटें चुभ गए। घना-घना बादल है और बारिश की गिरती बुंदे। अब कैसे बोलूं धैर्य के मेरे यह छाता छूट गए। पर क्योंकर रहना है अब दुनिया से कट कर। घना कालिमा रातें है, मन के दीप जलाऊँ कैसे।। तन्मय होकर अब मैं भी तो सच्ची-सच्ची बोलूं। ठहरो तो, जीवन दुविधा की परतों को खोलूं। तुम समझोगे, बाते समझो मैं खुद को अब खो लूं। पथ लंबा है, ठहरो तो-साथ तेरे- साथ तो हो लूं। थोरी-थोरी बातें है, उफान बरा है, बैठूं क्यों रट कर। समवर्ती सुख-दुख दोनों है, ऐसे में अश्रु छिपाऊँ कैसे।। ©Madanmohan Thakur (मैत्रेय) too night #worldpoetry Barun ThAkuR Shivam Singh Baghi Pallavi Srivastava Skumar
Madanmohan Thakur (मैत्रेय)
तन्मय होकर अब बातें कर लूं। जीवन के झरनों से मोती चुनकर। दूर कहीं से आती आवाजें सुनकर। खाली था जो, खुशियों से झोली भर लूं। मैं गीत कोई गाऊँ जीवन के पथ पर। पर जोगी बनूँ, अपनी पीड़ मिटाऊँ कैसे।। भर-भर कर आती उलझन तूफानी। लगती अब मेरी नौका है बहुत पुरानी। घन-घन नभ मंडल में घिर आते बादल। दुख-सुख दोनों की अपनी-अपनी कहानी। रात अँधेरा है तो क्या, मैं कब से हूं डट कर। पर अनुभव से अपनी उलझन सुलझाऊँ कैसे।। मन विकल हुआ, कहां से ज्ञान की धारा लाऊँ। दुविधा के अंकुर फूट गए, कैसे मैं बच पाऊँ। आहट की घबराहट है और व्यथा है मन में। यह जीवन करवट बदले, कैसे नीति बतलाऊँ। कैसे समझूंगा जो हूं मैं कुछ अलग सा हट कर। सुधा नीर की छाया से अपनी प्यास बुझाऊँ कैसे।। रातों का आलम घना अँधेरा, फिर तारे छुप गए। मैं चलता जाता था और पांव में काटें चुभ गए। घना-घना बादल है और बारिश की गिरती बुंदे। अब कैसे बोलूं धैर्य के मेरे यह छाता छूट गए। पर क्योंकर रहना है अब दुनिया से कट कर। घना कालिमा रातें है, मन के दीप जलाऊँ कैसे।। तन्मय होकर अब मैं भी तो सच्ची-सच्ची बोलूं। ठहरो तो, जीवन दुविधा की परतों को खोलूं। तुम समझोगे, बाते समझो मैं खुद को अब खो लूं। पथ लंबा है, ठहरो तो-साथ तेरे- साथ तो हो लूं। थोरी-थोरी बातें है, उफान बरा है, बैठूं क्यों रट कर। समवर्ती सुख-दुख दोनों है, ऐसे में अश्रु छिपाऊँ कैसे।। ©Madanmohan Thakur (मैत्रेय) too night #worldpoetry Barun ThAkuR Shivam Singh Baghi Pallavi Srivastava Skumar
Madanmohan Thakur (मैत्रेय)
तन्मय होकर अब बातें कर लूं। जीवन के झरनों से मोती चुनकर। दूर कहीं से आती आवाजें सुनकर। खाली था जो, खुशियों से झोली भर लूं। मैं गीत कोई गाऊँ जीवन के पथ पर। पर जोगी बनूँ, अपनी पीड़ मिटाऊँ कैसे।। भर-भर कर आती उलझन तूफानी। लगती अब मेरी नौका है बहुत पुरानी। घन-घन नभ मंडल में घिर आते बादल। दुख-सुख दोनों की अपनी-अपनी कहानी। रात अँधेरा है तो क्या, मैं कब से हूं डट कर। पर अनुभव से अपनी उलझन सुलझाऊँ कैसे।। मन विकल हुआ, कहां से ज्ञान की धारा लाऊँ। दुविधा के अंकुर फूट गए, कैसे मैं बच पाऊँ। आहट की घबराहट है और व्यथा है मन में। यह जीवन करवट बदले, कैसे नीति बतलाऊँ। कैसे समझूंगा जो हूं मैं कुछ अलग सा हट कर। सुधा नीर की छाया से अपनी प्यास बुझाऊँ कैसे।। रातों का आलम घना अँधेरा, फिर तारे छुप गए। मैं चलता जाता था और पांव में काटें चुभ गए। घना-घना बादल है और बारिश की गिरती बुंदे। अब कैसे बोलूं धैर्य के मेरे यह छाता छूट गए। पर क्योंकर रहना है अब दुनिया से कट कर। घना कालिमा रातें है, मन के दीप जलाऊँ कैसे।। तन्मय होकर अब मैं भी तो सच्ची-सच्ची बोलूं। ठहरो तो, जीवन दुविधा की परतों को खोलूं। तुम समझोगे, बाते समझो मैं खुद को अब खो लूं। पथ लंबा है, ठहरो तो-साथ तेरे- साथ तो हो लूं। थोरी-थोरी बातें है, उफान बरा है, बैठूं क्यों रट कर। समवर्ती सुख-दुख दोनों है, ऐसे में अश्रु छिपाऊँ कैसे।। ©Madanmohan Thakur (मैत्रेय) too night #worldpoetry Barun ThAkuR Shivam Singh Baghi Pallavi Srivastava Skumar
Madanmohan Thakur (मैत्रेय)
तन्मय होकर अब बातें कर लूं। जीवन के झरनों से मोती चुनकर। दूर कहीं से आती आवाजें सुनकर। खाली था जो, खुशियों से झोली भर लूं। मैं गीत कोई गाऊँ जीवन के पथ पर। पर जोगी बनूँ, अपनी पीड़ मिटाऊँ कैसे।। भर-भर कर आती उलझन तूफानी। लगती अब मेरी नौका है बहुत पुरानी। घन-घन नभ मंडल में घिर आते बादल। दुख-सुख दोनों की अपनी-अपनी कहानी। रात अँधेरा है तो क्या, मैं कब से हूं डट कर। पर अनुभव से अपनी उलझन सुलझाऊँ कैसे।। मन विकल हुआ, कहां से ज्ञान की धारा लाऊँ। दुविधा के अंकुर फूट गए, कैसे मैं बच पाऊँ। आहट की घबराहट है और व्यथा है मन में। यह जीवन करवट बदले, कैसे नीति बतलाऊँ। कैसे समझूंगा जो हूं मैं कुछ अलग सा हट कर। सुधा नीर की छाया से अपनी प्यास बुझाऊँ कैसे।। रातों का आलम घना अँधेरा, फिर तारे छुप गए। मैं चलता जाता था और पांव में काटें चुभ गए। घना-घना बादल है और बारिश की गिरती बुंदे। अब कैसे बोलूं धैर्य के मेरे यह छाता छूट गए। पर क्योंकर रहना है अब दुनिया से कट कर। घना कालिमा रातें है, मन के दीप जलाऊँ कैसे।। तन्मय होकर अब मैं भी तो सच्ची-सच्ची बोलूं। ठहरो तो, जीवन दुविधा की परतों को खोलूं। तुम समझोगे, बाते समझो मैं खुद को अब खो लूं। पथ लंबा है, ठहरो तो-साथ तेरे- साथ तो हो लूं। थोरी-थोरी बातें है, उफान बरा है, बैठूं क्यों रट कर। समवर्ती सुख-दुख दोनों है, ऐसे में अश्रु छिपाऊँ कैसे।। ©Madanmohan Thakur (मैत्रेय) too night #worldpoetry Barun ThAkuR Shivam Singh Baghi Pallavi Srivastava Skumar