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चाहा था ज़िंदगी से कुछ .... पर ज़िंदगी ने तो कुछ औ

चाहा था ज़िंदगी से कुछ ....
पर ज़िंदगी ने तो कुछ और ही कर डाला।
चाहा था ज़िंदगी से थोड़ी सी शांति,
पर ज़िंदगी ने मन को ही अशांत कर डाला।
चाहा था ज़िंदगी से कि कुछ दोस्त हो अपने,
पर मिले वो, .....जो
दुश्मन को ही अच्छा साबित कर डाला।
चाहा पूरे करने कुछ शौक अपने,
पर जिम्मेदारियों के बोझ ने उनको भी
मार डाला।
खुशनसीब समझा कि, कितने अपने है, मेरे पास,
पर ज़िंदगी ने उन सबको बेनकाब कर डाला।
अब, क्या चाहत रखे इस ज़िंदगी से,
इसने तो हर चाहत का नामोनिशा ही मिटा डाला।
जेपी जयपाल रेबारी

©kavi jaipal
  #thepredator