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कहती थी मुझे ख़्वाब नहीं आते,फिर भी देखे थे कुछ ख़

कहती थी मुझे ख़्वाब नहीं आते,फिर भी देखे थे कुछ ख़्वाब मेरे लिए।
न रहता था कुछ याद उसे फिर भी की थी याद लोरियाँ मेरे लिए।
न आता था कुछ बनाना उसे फिर भी बनाई थी कागज़ की कश्तियां मेरे लिए।
चूड़ियों की नुमाइश थी फिर ढूंढती थी बर्तन के खिलौने मेरे लिए ।
बंद गलियों में दौड़ी चली आती मेरे लिए बस मेरे लिए।
ऐसी है मेरी मां बस तू ही है सब मेरे लिए मेरे लिए ।
                                   By_@fsar

©Afsar Bhatt
  #smog Dedicating to maa
afsarbhatt8669

Afsar Bhatt

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