सूर्योदय से चढ़ता दिनकर, ढलती शामों को ढलता है, अंधियारों को ओझल करता, सूरज दीपक लेकर चलता है। कजियारे से सपने बुनकर, आशा में भरी दुपहरी चलता है, हाथ लगी जो चिंगारी ठंडे जज़्बों के अंगारों पर मलता है। खुद की बदहाली पे सोचो, कितना ही वो मन जलता है, चलता-जलता है कोसों सदियों से, पर नाम मेहनत से फलता है। अंधियारों के रोशन आरों में, देहरी पर, चौबारों में सूना दीपक कितना खलता है, अंधियारों को ओझल करता, सूरज दीपक लेकर चलता है। #sun #lamp #prosperity