ख़ुद से ही बातें करता है, सुनता हूँ वो खुश रहता है, उसके घर में कोई नहीं पर, वहाँ एक दीपक जलता है, दरिया उससे मिलने आती, ख़ुद को वो सागर कहता है, भीतर उसके क़ायनात है, अनुभव की बातें करता है, करे गुफ़्तगू बादल से वो, चिड़ियो का कलरव सुनता है, मैं मेरा का भेद न रखता, है तटस्थ सब में रहता है, तन्हाई में आता-जाता, श्वासों की धुन पर बजता है, मेरा मन भी मिलकर उससे, 'गुंजन' तू ही तू जपता है, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई ©Shashi Bhushan Mishra #सुनता हूँ वो खुश रहता है#