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आंधियां चीखती है शाख क्यों उजड़तें है मेरी ग

आंधियां  चीखती  है  शाख  क्यों  उजड़तें है
मेरी  गुरबत मै सभी ख़्वाब  क्यों  बिखरते है

मेरी  ख़ामोशी   के  शहर भी  अभी जिंदा है
तेरे आने   जानें की  हसरत में  वो मचलते हैं

बंजर मिट्टी भी तो  गीली  पड़ी है  अश्को से
अब  तो आंसू  भी  तेरी  याद  में निकलते हैं

मेरी आंखों का भी  दरिया तो  हो गया ठंडा
मेरे  सीने  के  दाग  अब  तलक  सुलगते  है

तेरी जफा ने मुझे अब तलक घायल है किया
अब  तो  ये  दाग़ भी मेरे  ना  कभी  भरते हैं

इरफ़ा"शायर की तरह तोड़ लेगा दिल अपना
हम  तो  मरते  हैं,तो मरते  है, चलो  चलते हैं

©Irfan Saeed Bulandshari
  आंधियां  चीखती  है  शाख  क्यों  उजड़तें है
मेरी  गुरबत मै सभी ख़्वाब  क्यों  बिखरते है

मेरी  ख़ामोशी   के  शहर भी  अभी जिंदा है
तेरे आने   जानें की  हसरत में  वो मचलते हैं

बंजर मिट्टी भी तो  गीली  पड़ी है  अश्को से
अब  तो आंसू  भी  तेरी  याद  में निकलते हैं
irfansaeedfitnes6689

Irfan Saeed

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आंधियां चीखती है शाख क्यों उजड़तें है मेरी गुरबत मै सभी ख़्वाब क्यों बिखरते है मेरी ख़ामोशी के शहर भी अभी जिंदा है तेरे आने जानें की हसरत में वो मचलते हैं बंजर मिट्टी भी तो गीली पड़ी है अश्को से अब तो आंसू भी तेरी याद में निकलते हैं #Shayari #gazal #HappyNewYear #viral

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