देखा है गुस्ताखी करके, थोड़ी सी चालाकी करके, अंत नहीं कोई लालच का, कठिन लगा बेबाकी करके, करनी पड़ती है भरपाई, बेमतलब की झाँकी करके, बुरे काम का बुरा नतीज़ा, भुगतो नाइंसाफी करके, भाव त्याग बदले का मन से, सुकूँ मिलेगा माफी करके, कोई ठिकाना नहीं गगन में, देख लिया मन पाखी करके, सुनी-सुनाई बातों का क्या? जान लिया मन साखी करके, बोधगम्य ज्ञान यह 'गुंजन', मिला न कुछ भी बाकी करके, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #बोधगम्य ज्ञान#