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हादसा हूं मैं, रोक सको तो रोक लो, अंधा हूं बहरा हू

हादसा हूं मैं,
रोक सको तो रोक लो,
अंधा हूं बहरा हूं,
बस.. चलना जानता हूं,
ना देखूं धर्म ना जाति,
बस.. अंजाम देता हूं,
आंख है तो देख लो,
कान है तो सुन लो,
मगर अफ़सोस है,
तुम आंखों के अंधे हो,
कानों से बहरे,
और दिमाग़ से कमज़ोर,
बस.. इसलिए,
मेरा ज़ोर है,
अपने मन की आंखें खोल,
ख़ामोशियां तोड़ दें,
जायज़ है तो बोल भी,
इंसानियत छोड़ मत,
मैं ज़्यादा तो नहीं,
कुछ टल जाने की
जिम्मेदारी लेता हूं,
मगर क्या तुम,
ज़िम्मेदारी लेते हो,
लिया तो अच्छा है,
क्योंकि हादसा हूं मैं,
कुछ कम ही सही,
मैं ज़िम्मेदारी लेता हूं,
कुछ कम ही सही।

©अदनासा-
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