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#OpenPoetry खुद से द्वंद्द हो तो संन्यास लेता

#OpenPoetry खुद से  द्वंद्द  हो तो संन्यास  लेता  है  इंसान,
वही अर्थ सब संन्यास का खो देता है इंसान।

चित्त जब खुद से ही हो जाये हमारा निर्द्वद्दं,
हर पल, हर परिस्थिती हो जाता है संन्यास।

चुनाव में ही आता है देह  भीतर  अभिमान,
मिटायें न मिटे तब छिपा भीतर स्वाभिमान।

चुनाव ही देता है हम सबको गहरे-गहरे घाव
दबा ही सकते है,मिटा नही,अपने सारे भाव।

चुना जो विकल्प संन्यास का ,कहां रहे संन्यासी,
बिन विकल्प स्वीकार हो,वही कहलाये संन्यासी।

परिस्थिती नही, भाव और दशा है संन्यास,
बिन विकल्प जो बहे, वही दशा है संन्यास।

कहे इंसान हो परेशान,ला कर लू मै थोडा ध्यान,
चुना विकल्प उसने,तोडने को अपना अभिमान।

कहे  शुद्ध  आत्मा,रह  कर  भी संग समाज,
बिना विकल्प लग जाये, जब भी मेरा ध्यान,

हो जाऊं शून्य माञ,बिन विकल्प,बिन भाव,
कहलाऊं संन्यासी, कुछ ऐसा लगाऊं ध्यान।
#OpenPoetry खुद से  द्वंद्द  हो तो संन्यास  लेता  है  इंसान,
वही अर्थ सब संन्यास का खो देता है इंसान।

चित्त जब खुद से ही हो जाये हमारा निर्द्वद्दं,
हर पल, हर परिस्थिती हो जाता है संन्यास।

चुनाव में ही आता है देह  भीतर  अभिमान,
मिटायें न मिटे तब छिपा भीतर स्वाभिमान।

चुनाव ही देता है हम सबको गहरे-गहरे घाव
दबा ही सकते है,मिटा नही,अपने सारे भाव।

चुना जो विकल्प संन्यास का ,कहां रहे संन्यासी,
बिन विकल्प स्वीकार हो,वही कहलाये संन्यासी।

परिस्थिती नही, भाव और दशा है संन्यास,
बिन विकल्प जो बहे, वही दशा है संन्यास।

कहे इंसान हो परेशान,ला कर लू मै थोडा ध्यान,
चुना विकल्प उसने,तोडने को अपना अभिमान।

कहे  शुद्ध  आत्मा,रह  कर  भी संग समाज,
बिना विकल्प लग जाये, जब भी मेरा ध्यान,

हो जाऊं शून्य माञ,बिन विकल्प,बिन भाव,
कहलाऊं संन्यासी, कुछ ऐसा लगाऊं ध्यान।