जीने की है राहें बहुत,हम जीना ही भुल गये। खुले है मयखाने,मगर हम पीना ही भुल गये। आस नहीं है रत्तीभर भी उबरने की, फंसे हैं मझधार मे ,नाव खेना ही भुल गये। याद आती है उनकी बहुत मगर, शायद उनसे कुछ कहना भुल गये। गुफ्तगू करनी तो थी बहुत, मगर बात शुरु करना ही भुल गये। डूबे है उन आंखों में ऐसे कि, कम्बखत बाहर निकलना ही भूल गये काटती है तन्हाइयां हमको बहुत, मगर उनसे मिलना ही भुल गये। वक्त चला है कुछ इस तरह से, रुकना था कही मगर ,रूकना ही भूल गये। ...........आनन्द #आनन्द #Anand