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नहीं कोई ऊंच है,नहीं कोई नीच है... नहीं कोई उन्नीस

नहीं कोई ऊंच है,नहीं कोई नीच है...
नहीं कोई उन्नीस,नहीं कोई बीस है...
हकीकत      है     दर     किनार,
मोछ पर नकली ताव है सवार...
रिश्ता अनेकों से अनेक है,
कहीं  रिश्तों  पर  ब्रेक है...
बचपन  नटखट   होता  है,
कभी हंसता कभी रोता है...
भाई हो,बहन हो कोई भेद नहीं,
गलती लाख हो पर कोई खेद नहीं...
जुबान पर कभी मिश्री कभी गोलमरीच है,
नहीं  कोई  उंच नहीं  कोई नीच  है...
नहीं कोई उन्नीस नहीं कोई बीस है।।
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प्रमोद मालाकार की कलम से

©pramod malakar
  नहीं कोई उन्नीस नहीं कोई बीस है।

नहीं कोई उन्नीस नहीं कोई बीस है। #विचार

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