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"तुम यथार्थ हो या मृषा,स्तब्ध हूं वास्तविकता को स्

"तुम यथार्थ हो या मृषा,स्तब्ध हूं वास्तविकता को स्वीकार करने में,ऐसा प्रतीत होता है कि तुम पास हो परन्तु एक आभासी प्रतिबिंब की तरह जिसका केवल भान मात्र किया का सकता है। कभी कभी तो अन्तर्मन में ऐसी असाधारण सी तीव्र इच्छा का उद्गम होता है कि तुमसे आलिंगन कर लूं ,फिर आभास होता है कि तुम तो स्पर्श से परे हो तुम्हारा केवल अनुभव मात्र ही संभव है।
फिर मन को यह कह के संतुष्ट करना पड़ता है कि तुम तो अगम्य हो अगोचर हो तुम्हारी स्मृति मात्र ही मन की शांति का मार्ग है।"
omank- #omank #philosophy #experience #love# omsingh#sad
#Books
"तुम यथार्थ हो या मृषा,स्तब्ध हूं वास्तविकता को स्वीकार करने में,ऐसा प्रतीत होता है कि तुम पास हो परन्तु एक आभासी प्रतिबिंब की तरह जिसका केवल भान मात्र किया का सकता है। कभी कभी तो अन्तर्मन में ऐसी असाधारण सी तीव्र इच्छा का उद्गम होता है कि तुमसे आलिंगन कर लूं ,फिर आभास होता है कि तुम तो स्पर्श से परे हो तुम्हारा केवल अनुभव मात्र ही संभव है।
फिर मन को यह कह के संतुष्ट करना पड़ता है कि तुम तो अगम्य हो अगोचर हो तुम्हारी स्मृति मात्र ही मन की शांति का मार्ग है।"
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