हम बहुत रोए किसी त्यौहार से रहकर अलग, जी सका है कौन अपने प्यार से रहकर अलग । चाहे कोई हो उसे कुछ तो सहारा चाहिए, सज सकी तस्वीर कब दीवार से रहकर अलग । वो यही कुछ सोचकर बाज़ार में ख़ुद आ गया, क़द्र हीरे की है कब बाज़ार से रहकर अलग । काम करने वाले अपने नाम की भी फ़िक्र कर, सुर्ख़ियाँ बेकार हैं अख़बार से रहकर अलग । सिर्फ़ वे ही लोग पिछड़े ज़िन्दगी की दौड़ में, वो जो दौड़े वक़्त की रफ़्तार से रहकर अलग । हो रुकावट सामने तो और ऊँचा उठ 'कुँअर' सीढ़ियाँ बनतीं नहीं दीवार से रहकर अलग । 📝 कुंवर बेचैन ©SB Shivam Mishra 📝 कुंवर बेचैन