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हमरी प्रेम कहानी-भाग 2 ******************** किनारे

हमरी प्रेम कहानी-भाग 2
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किनारे पहुंच हम कमर पे हाथ दे शक्तिमान वाले पोज में खड़ा हो गए। पीछे उ लोग भी पहुंचे। भैंस जैसे आदमी ने जोर से आवाज लगाई"" रे मंसुखवा" उधर से आवाज आई "आ रहे मालिक"। एगो नाव पे उस पार कोई बल्ला लिए चढ़ता दिखा। अपने प्रियसी को एतना नजदीक देख कौन आशिक़ रुकता। हमहू झट पूछ लिया।आप सब उस तरफ जाएंगे क्या? मोटे ने भारी आवाज में कहा "हाँ"।
हम बोले "हमको भी उस तरफ जाना है,अपने एक दोस्त से मिलने"
मोटा तारते हुए बोला "चले तो जाओगे उधर पर थोड़ी देर में शाम ढल जाएगी फिर इस पार आने को कोई नाव नहीं मिलेगा"
हमहू झट कह दिए कोई बात नही हमका आज लौटना भी नही,कल सुबह वापस आना है।
इतने में नाव किनारे आ के लग गई। वो बिना कुछ बोले लड़की के साथ नाव में जा बैठा। हम इस मौके को चूकना नहीं चाहते थे सो झट से फिर पूछ लिया "हमहू  आ जाएं क्या आप लोगो के साथ। उसने हाथ से आ जाने का इशारा किया। हम दुलत्ती झाड़ लपक के सवार हो गए। अभी मल्लाह ने बल्ला डाला ही था नाव को आगे बढाने को की नाव के डगमगाने से डर के मारे झींगुरों ने कान में झंझनाना शुरू किया। हम डर से आंखे बंद कर लिए और कस के नाव को धर के बैठ गए। डर ने हमरी आँखों पर ऐसा फेविकॉल रगड़ा की ना हमरी आँख किनारे लगने तक खुली ना हम अपने प्रेयसी को जी भर देख सके। नाव किनारे से होले से टकरा के रुकी तो हलक से थूक नीचे उतरा। हम आंख खोले तो वो लड़की हंसती हुई मेरी तरफ देख रही थी।शायद हमरे स्थिति ने उका हँसने पर मजबूर किया था।घाट के उस पार उ दोनों गांव की पगडंडी पे बढ़ लिए। हम जीत के भी हारा सा उका देखता रहे
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शाम ढलने को थी। हमको उस पार घर जाने की चिंता सता रही थी। नदी में एक भी नाव नहीं था। ऊपर से बाबूजी के  कोप भाजन होने का डर। थोड़ा और वक़्त बिता,तो हम सहम गए।शायद आज मेरा बेड़ा गर्क होवे को था। हम किसी नाव वाले के इन्तेजार में बेसब्री से घाट पे टहलने लगे।
तभी किसी के हँसते हुए आने की आवाज सुनाई दी। हम सजग हो उधर ताकने लगे। 
उहे दोनों लड़की हाथ मे देकची लिए घाट के तरफ आ रही थी। थोड़ा पास आने के बाद वो ठिठकी और गौर से हमको देखने लगी। फिर पास आके बोली "तुम त हमरे नाव में ई पट्टी आया रहा ना, दोस्त से मिलने के लिए"
हम झूठ बोल गए कि दोस्त कंही बाहर शहर गया है मामी के पास सो नही मिल पाए।
वो फिर से हमको देखी और ठहाका मार के हँस दी और बोली "त अब उ पट्टी कैसे जाओगे? फिर तुमको डर लगेगा। ई बार तो नावों पे कोई नही रहेगा।  
हम गिड़गिड़ाने जैसे अंदाज में बोले। नही लगेगा डर।पर कउनो  नाव तो मिले। घर मे बता के भी नही आया हूँ त सब परेशान होंगे।
लड़की थोड़ा ढिठाई से बोली"तुम न कोनो दोस्त से मिलने नही आए थे,हमका सब पता है।तुम हमको देखे त नाव में चढ़ गए थे समझे। और एक बात उ दिन क्या बोल रहे थे तुम हमका नहाते देखने आते हो। अभी इहे पट्टी धर के घोसरवाए तुमको त कैसा लगेगा? बहुत सयाना बनते हो। बोले का जाके बाबूजी को?
हम आंख नीचे किये सब सुन लिये। फिर साहस करके बोले। देखो हमका किसी तरह उ पट्टी भिजवा दो। कोसी मैय्या की कसम कभी नही देखेंगे तुमको। उ त लम्पटवा सब कुछ से कुछ बोलता है तुमको देख के त हमको गुस्सा आ जाता है। तुम ही बताओ महीना दिन से देखी हो हमको घाट किनारे उ लोगों के साथ।
लड़की थोड़ा सोच के बोली "हम का यही देखने आते हैं क्या घाट पे कि कौन आया नहाने कौन नहीं? ऊपर से तुम हमरे लिए काहे सोचते हो? गार्जियन हो हमारा? फिर बोली ज्यादा अलबलाओ नही।ई मत समझना कि तुमरे गांव में हमरा जान पेहचान नहीं है। हमरी मौसी का घर है हुआँ। तुमको तुमरे गांव में पिटवा देंगे।
हम बिना बोले चुप खड़े रहे। जिसके लिए महीना भर से भूख,प्यास,नींद सब खो दिए उका मुँह से एतना जलील होना खलने लगा। आंख भी थोड़ा डबडबा गया।
फिर थोड़ा ताव में आके बोले "काहे इतना झाड़ सुना रही हो? हमको अच्छी लगी त एक नजर देख लिए त क्या सब पाप हमही किये धरती पर। तुमको पता भी है हम कैसे जी रहे आज-कल.........फिर सुबकने लगे।
लड़की भौंचक होके हमको घूरती रही। उसकी सहेली मुस्कुरा के हमको देख रही थी।
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वो बिना कुछ बोले पानी लेने घाट के तरफ बढ़ी। हमको लगा अब सारी रात घाटे पे बिताना पड़ेगा। सूरज डूब गया। कुछ देर में अंधेरा हो जाएगा फिर.......
हम मन मे कुछ ठान आगे बढ़े और अपना गमछा कस के कमर में बांध लिए। उसकी सहेली हमको देख रही थी। थोड़ी डरी हुई सी वो लड़की से बोली"ई बौरा गया है का? देखो इधरे आ रहा। उ पानी भरते हुए पीछे मुड़के देखी।
हम सरपट घाट के तरफ बढ़ रहे थे। वो थोड़ा सहम के खड़ी हो गई। जब हम उसके बगल तक पहुंच गए तो वो आश्चर्य से हमको देखी और बोली "का करने जा रहे हो?
हम थोड़ा चिढ़ के बोले "तुमसे मतलब" जब जिनगी बेहाल होइए गया है तो तैरकर उ पट्टी जाएंगे। बीच मे कोसी मैया लील ली तो कोई बाते नही, हम दोनों का झंझट खतम हो जाएगा। और हाँ जाते जाते एगो बात बताइये देते है"तुमको देखने हम घाट पे जरूर आते थे पर कबहु बुरा नजर से नही देखे। हम कोई छिछर नही है समझी। अब कबहु नही देखेंगे। इतना कह के पानी मे उतरने को हुए।
वो पीछे से बोली तैर लोगे ना! वैसे त आज तक किनारे में ही छबक छबक करते देखे है। ढोरी से ऊपर कभी पानी मे खड़े भी नही देखे है तुमको। 
हमको करंट जैसा लगा!
पलट के उका मुँह निहारने लगे। जइसे उसको कोई सिंघ निकल गया हो।
अपने आप हमरा मुँह खुला और हम बोल गए"त क्या इतने लड़को में तुम हमको रोज देखती थी?
उ बोली नहीं त क्या? सबे लड़का हमको दिखाने के लिए बीच धारा तक तैर तैर के दिखाता था एगो तुम्ही त अकेले किनारे में डुबकुनियाँ मारते रहते थे। 
खुशी, स्नेह और आश्वासन का एगो अजीब मुस्कान हमरे चेहरे पे छा गया
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उ बोली तैर के नही जा पाओगे तुम उ पट्टी,ऊपर से सांझ होने को है। देखते है हम कोई जुगाड़। 
तबही केले के थम को जोड़कर बनाई गई एक नाव पर एक लड़का गीत गाता घाट के तरफ आता दिखा। 
हमको थोड़ा आस जगी।हमने जोड़ से आवाज लगाई। ए भाय......ए हो.....अरे सुनो रे भाय
उधर से उ कान फाडू गीत ""टिप टिप बरसा पानी....पानी ने आग लगाई.....ओ..ओ.टिप गाने में व्यस्त दिखा। फिर लगा कि वो इधरे नही आके कउनो दूसरे घाट के तरफ बढ़ रहा है।
इस बार लड़की की बारी थी।जोर से बोली....रे... मंसुखवा.. रे इधर आओ। गजब का जोश था आवाज में तुरंत उत्तर आया.....अरे छोटी मालकिन....आय रहे..तनी इस जाल को सरिया ले। 
उ विजेता वाले नजर से हमको देखी। इस बार उ सच मे बहुत देर हमको देखी। हमरा दिल धड़कने लगा। हमही शर्मा के नजर नीचे कर लिये।
वो बोली ज्यादा हिल डुल मत करना इस नाव पे नाही त पानी इस बार ढोरी से ऊपर आ जाएगा,फिर त जानिए रहे.....दोनों लड़की ठहाका मार के हँसने लगी। 
एक पल को हम आने आप को गाली दिये। कितना गलत सोच लिए हम अपने लाडो को। मने मने दुत्कारने लगे इसको। कितनी भोली है ई। इसके में दया भी है। फिर से उसको एकटक देखने लगे।
तभी उ नाव वाला आके बोला जी कहिए मालकिन का बात है?
लड़की झट नजर हटा के बोली,देखो ई हमरे मासी घर से है। एक काम से  ई पट्टी आया था। इनको उ पट्टी तत्काल जाना है बहुत जरूरी है।
पर मालकिन अइसन कौन हड़बड़ी। सांझ होवे को है। आज रुकिए जाय त ठीक।
नहीं रे...बहुते जरूरी है। पहुंचा के आओ दलान पे हमसे 5 गो रुपैया ले लेना साथ मे मूढ़ी आर गुड़ भी देंगे।
नाव वाला ठीके है....शांति से बैठिएगा...डर-वर नाही न लगता है।छटपटाइयेगा नहीं।तनिक पुरान हो गया थाम गूंथे।
हम सहमति में सिर हिला दिए। लगा ये पल कभी खत्म ही ना हो। उ हमेशा के लिए हमारे साथ उ पट्टी चल दे। पहलीबार थोड़ा उदासी उका चेहरा पे भी दिखा। उ बोली झटपट चले जाइये। सांझ में साँप-बिछु भी निकलता है। 
हम थाम वाले नाव पे एगो पैर रखे ही थे कि उ धसने लगा पानी मे।किसी तरह छरप के बीच मे चढ़ गए। उ लइका फिर से गाना शुरू किया.....कउनो दिशा में लेके चला रे बटोहिया...कउनो दिशा में। हम एकटक उ दोनों को देखते नजर से दूर जा रहे थे।
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ई पट्टी आके उतर के देखे। सांझ ढल गया था। उ पट्टी का घाट धुंधला और वीरान दिखा। नाव वाले को जेबी से 2 रुपया देके बोले"लो भाई कुछ खा पी लेना।
खुशी और बिछड़ने का गम साथ लिए घर की तरफ बढ़े। अभी गांव में घुसने ही वाले थे कि "लुखड़ा"मिल गया चुटकी भरे अंदाज में बोला "का भाई एकदमे नजर नही आते हो,मामला ठीक तो है?
हमने निष्ठुर सा जवाब "हाँ" बोल आगे बढ़ गया। दलान पे बाबूजी लालटेन के रोशनी में "नागिन का नाच"उपन्यास पैड रहे थे। बीच-बीच मे खैनी भी ठोक रहे थे।दवे पांव आगे बढ़ा।  मेन गेट पे पहुंचा ही था कि वो पीछे से बोले" कहाँ गए थे?सुने नाव पे चढ़ के उ पट्टी गए थे। बज्र गिर गया माथे पे। धीरे से वापस जा पाँव के पास बैठ गया। जी बाबूजी हम कभी गांव से बाहर नही गए। सुने उ पट्टी में तारापीठ है।17 साल हो गया कभी जान भी नही पाए एतना सुंदर मंदिर उ पट्टी है। आज मन में आ गया तो चले गए।
बाबूजी चश्मा को नाक पे सरकाते हुए बोले हाँ मंदिर त सुंदर है पर आने जाने की सुविधा कम है।कोसिकी में पानी घटते बढ़ते रहता है। कौन इतना जद्दोजहद करे। खैर ज्यादा घूमने भटकने का आदत कम करो। अंदर जाओगे त माय से बोलना एक बार नीबू वाला चाय भिजवा दे पेट मे गैस बन रहा। जान छूटता देख "जी"बोलकर झटक के अंदर चला गया।
माइ चटाई पे बैठ सब्जी काट रही थी।नजर उठा के देखी तो झट बाबूजी के चाय के लिए बोल दिया। पर माइ की आंखों में आज हमको चोर जैसे देखने का अनुभव हुआ। 
जाके लालटेन के पास बैठ संस्कृत का शब्दरूप रटने लगा
मुनि....मुनिः....मुनीयः
मुनीम....मुनि...मुनिन
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रात ढली खा के छत पे चादर बिछा लेट गया। आंखों में सारी घटनाएं घूमने लगी। नींद गायब हो गया और लगने लगा अब भी उ पट्टी अपने लाडो से बतिया रहे हैं।
चांद-तारा सब सुंदर लगने लगा। हवा से गुदगुदी होने लगी फिर एकाएक याद आया कि नजदीक से अपने लाडो को देख-मिल तो लिए पर नाम त पूछे ही नही।धत्त तेरे की।भारी चूक हो गई। अगला प्लानिंग करते हुए कब आंख लग गई पता ही नही चला। 
सुबह सारा काम करके नहा के गोसाई घर मे कुलदेवता के पास खड़ा होके मने-मन बतियाने लगे। सारा दुःख दर्द,लाडो के साथ जीने मरने की कसम,दुनियाँ से लड़कर हासिल कर लेने का शपथ आदि-आदि।
दोपहर को खा के दलान पे चारपाई पे  लेट कर शाम का इन्तेजार करने लगे।
******************************* #हमरी प्रेम कहानी भाग 2

#ganesha
हमरी प्रेम कहानी-भाग 2
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किनारे पहुंच हम कमर पे हाथ दे शक्तिमान वाले पोज में खड़ा हो गए। पीछे उ लोग भी पहुंचे। भैंस जैसे आदमी ने जोर से आवाज लगाई"" रे मंसुखवा" उधर से आवाज आई "आ रहे मालिक"। एगो नाव पे उस पार कोई बल्ला लिए चढ़ता दिखा। अपने प्रियसी को एतना नजदीक देख कौन आशिक़ रुकता। हमहू झट पूछ लिया।आप सब उस तरफ जाएंगे क्या? मोटे ने भारी आवाज में कहा "हाँ"।
हम बोले "हमको भी उस तरफ जाना है,अपने एक दोस्त से मिलने"
मोटा तारते हुए बोला "चले तो जाओगे उधर पर थोड़ी देर में शाम ढल जाएगी फिर इस पार आने को कोई नाव नहीं मिलेगा"
हमहू झट कह दिए कोई बात नही हमका आज लौटना भी नही,कल सुबह वापस आना है।
इतने में नाव किनारे आ के लग गई। वो बिना कुछ बोले लड़की के साथ नाव में जा बैठा। हम इस मौके को चूकना नहीं चाहते थे सो झट से फिर पूछ लिया "हमहू  आ जाएं क्या आप लोगो के साथ। उसने हाथ से आ जाने का इशारा किया। हम दुलत्ती झाड़ लपक के सवार हो गए। अभी मल्लाह ने बल्ला डाला ही था नाव को आगे बढाने को की नाव के डगमगाने से डर के मारे झींगुरों ने कान में झंझनाना शुरू किया। हम डर से आंखे बंद कर लिए और कस के नाव को धर के बैठ गए। डर ने हमरी आँखों पर ऐसा फेविकॉल रगड़ा की ना हमरी आँख किनारे लगने तक खुली ना हम अपने प्रेयसी को जी भर देख सके। नाव किनारे से होले से टकरा के रुकी तो हलक से थूक नीचे उतरा। हम आंख खोले तो वो लड़की हंसती हुई मेरी तरफ देख रही थी।शायद हमरे स्थिति ने उका हँसने पर मजबूर किया था।घाट के उस पार उ दोनों गांव की पगडंडी पे बढ़ लिए। हम जीत के भी हारा सा उका देखता रहे
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शाम ढलने को थी। हमको उस पार घर जाने की चिंता सता रही थी। नदी में एक भी नाव नहीं था। ऊपर से बाबूजी के  कोप भाजन होने का डर। थोड़ा और वक़्त बिता,तो हम सहम गए।शायद आज मेरा बेड़ा गर्क होवे को था। हम किसी नाव वाले के इन्तेजार में बेसब्री से घाट पे टहलने लगे।
तभी किसी के हँसते हुए आने की आवाज सुनाई दी। हम सजग हो उधर ताकने लगे। 
उहे दोनों लड़की हाथ मे देकची लिए घाट के तरफ आ रही थी। थोड़ा पास आने के बाद वो ठिठकी और गौर से हमको देखने लगी। फिर पास आके बोली "तुम त हमरे नाव में ई पट्टी आया रहा ना, दोस्त से मिलने के लिए"
हम झूठ बोल गए कि दोस्त कंही बाहर शहर गया है मामी के पास सो नही मिल पाए।
वो फिर से हमको देखी और ठहाका मार के हँस दी और बोली "त अब उ पट्टी कैसे जाओगे? फिर तुमको डर लगेगा। ई बार तो नावों पे कोई नही रहेगा।  
हम गिड़गिड़ाने जैसे अंदाज में बोले। नही लगेगा डर।पर कउनो  नाव तो मिले। घर मे बता के भी नही आया हूँ त सब परेशान होंगे।
लड़की थोड़ा ढिठाई से बोली"तुम न कोनो दोस्त से मिलने नही आए थे,हमका सब पता है।तुम हमको देखे त नाव में चढ़ गए थे समझे। और एक बात उ दिन क्या बोल रहे थे तुम हमका नहाते देखने आते हो। अभी इहे पट्टी धर के घोसरवाए तुमको त कैसा लगेगा? बहुत सयाना बनते हो। बोले का जाके बाबूजी को?
हम आंख नीचे किये सब सुन लिये। फिर साहस करके बोले। देखो हमका किसी तरह उ पट्टी भिजवा दो। कोसी मैय्या की कसम कभी नही देखेंगे तुमको। उ त लम्पटवा सब कुछ से कुछ बोलता है तुमको देख के त हमको गुस्सा आ जाता है। तुम ही बताओ महीना दिन से देखी हो हमको घाट किनारे उ लोगों के साथ।
लड़की थोड़ा सोच के बोली "हम का यही देखने आते हैं क्या घाट पे कि कौन आया नहाने कौन नहीं? ऊपर से तुम हमरे लिए काहे सोचते हो? गार्जियन हो हमारा? फिर बोली ज्यादा अलबलाओ नही।ई मत समझना कि तुमरे गांव में हमरा जान पेहचान नहीं है। हमरी मौसी का घर है हुआँ। तुमको तुमरे गांव में पिटवा देंगे।
हम बिना बोले चुप खड़े रहे। जिसके लिए महीना भर से भूख,प्यास,नींद सब खो दिए उका मुँह से एतना जलील होना खलने लगा। आंख भी थोड़ा डबडबा गया।
फिर थोड़ा ताव में आके बोले "काहे इतना झाड़ सुना रही हो? हमको अच्छी लगी त एक नजर देख लिए त क्या सब पाप हमही किये धरती पर। तुमको पता भी है हम कैसे जी रहे आज-कल.........फिर सुबकने लगे।
लड़की भौंचक होके हमको घूरती रही। उसकी सहेली मुस्कुरा के हमको देख रही थी।
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वो बिना कुछ बोले पानी लेने घाट के तरफ बढ़ी। हमको लगा अब सारी रात घाटे पे बिताना पड़ेगा। सूरज डूब गया। कुछ देर में अंधेरा हो जाएगा फिर.......
हम मन मे कुछ ठान आगे बढ़े और अपना गमछा कस के कमर में बांध लिए। उसकी सहेली हमको देख रही थी। थोड़ी डरी हुई सी वो लड़की से बोली"ई बौरा गया है का? देखो इधरे आ रहा। उ पानी भरते हुए पीछे मुड़के देखी।
हम सरपट घाट के तरफ बढ़ रहे थे। वो थोड़ा सहम के खड़ी हो गई। जब हम उसके बगल तक पहुंच गए तो वो आश्चर्य से हमको देखी और बोली "का करने जा रहे हो?
हम थोड़ा चिढ़ के बोले "तुमसे मतलब" जब जिनगी बेहाल होइए गया है तो तैरकर उ पट्टी जाएंगे। बीच मे कोसी मैया लील ली तो कोई बाते नही, हम दोनों का झंझट खतम हो जाएगा। और हाँ जाते जाते एगो बात बताइये देते है"तुमको देखने हम घाट पे जरूर आते थे पर कबहु बुरा नजर से नही देखे। हम कोई छिछर नही है समझी। अब कबहु नही देखेंगे। इतना कह के पानी मे उतरने को हुए।
वो पीछे से बोली तैर लोगे ना! वैसे त आज तक किनारे में ही छबक छबक करते देखे है। ढोरी से ऊपर कभी पानी मे खड़े भी नही देखे है तुमको। 
हमको करंट जैसा लगा!
पलट के उका मुँह निहारने लगे। जइसे उसको कोई सिंघ निकल गया हो।
अपने आप हमरा मुँह खुला और हम बोल गए"त क्या इतने लड़को में तुम हमको रोज देखती थी?
उ बोली नहीं त क्या? सबे लड़का हमको दिखाने के लिए बीच धारा तक तैर तैर के दिखाता था एगो तुम्ही त अकेले किनारे में डुबकुनियाँ मारते रहते थे। 
खुशी, स्नेह और आश्वासन का एगो अजीब मुस्कान हमरे चेहरे पे छा गया
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उ बोली तैर के नही जा पाओगे तुम उ पट्टी,ऊपर से सांझ होने को है। देखते है हम कोई जुगाड़। 
तबही केले के थम को जोड़कर बनाई गई एक नाव पर एक लड़का गीत गाता घाट के तरफ आता दिखा। 
हमको थोड़ा आस जगी।हमने जोड़ से आवाज लगाई। ए भाय......ए हो.....अरे सुनो रे भाय
उधर से उ कान फाडू गीत ""टिप टिप बरसा पानी....पानी ने आग लगाई.....ओ..ओ.टिप गाने में व्यस्त दिखा। फिर लगा कि वो इधरे नही आके कउनो दूसरे घाट के तरफ बढ़ रहा है।
इस बार लड़की की बारी थी।जोर से बोली....रे... मंसुखवा.. रे इधर आओ। गजब का जोश था आवाज में तुरंत उत्तर आया.....अरे छोटी मालकिन....आय रहे..तनी इस जाल को सरिया ले। 
उ विजेता वाले नजर से हमको देखी। इस बार उ सच मे बहुत देर हमको देखी। हमरा दिल धड़कने लगा। हमही शर्मा के नजर नीचे कर लिये।
वो बोली ज्यादा हिल डुल मत करना इस नाव पे नाही त पानी इस बार ढोरी से ऊपर आ जाएगा,फिर त जानिए रहे.....दोनों लड़की ठहाका मार के हँसने लगी। 
एक पल को हम आने आप को गाली दिये। कितना गलत सोच लिए हम अपने लाडो को। मने मने दुत्कारने लगे इसको। कितनी भोली है ई। इसके में दया भी है। फिर से उसको एकटक देखने लगे।
तभी उ नाव वाला आके बोला जी कहिए मालकिन का बात है?
लड़की झट नजर हटा के बोली,देखो ई हमरे मासी घर से है। एक काम से  ई पट्टी आया था। इनको उ पट्टी तत्काल जाना है बहुत जरूरी है।
पर मालकिन अइसन कौन हड़बड़ी। सांझ होवे को है। आज रुकिए जाय त ठीक।
नहीं रे...बहुते जरूरी है। पहुंचा के आओ दलान पे हमसे 5 गो रुपैया ले लेना साथ मे मूढ़ी आर गुड़ भी देंगे।
नाव वाला ठीके है....शांति से बैठिएगा...डर-वर नाही न लगता है।छटपटाइयेगा नहीं।तनिक पुरान हो गया थाम गूंथे।
हम सहमति में सिर हिला दिए। लगा ये पल कभी खत्म ही ना हो। उ हमेशा के लिए हमारे साथ उ पट्टी चल दे। पहलीबार थोड़ा उदासी उका चेहरा पे भी दिखा। उ बोली झटपट चले जाइये। सांझ में साँप-बिछु भी निकलता है। 
हम थाम वाले नाव पे एगो पैर रखे ही थे कि उ धसने लगा पानी मे।किसी तरह छरप के बीच मे चढ़ गए। उ लइका फिर से गाना शुरू किया.....कउनो दिशा में लेके चला रे बटोहिया...कउनो दिशा में। हम एकटक उ दोनों को देखते नजर से दूर जा रहे थे।
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ई पट्टी आके उतर के देखे। सांझ ढल गया था। उ पट्टी का घाट धुंधला और वीरान दिखा। नाव वाले को जेबी से 2 रुपया देके बोले"लो भाई कुछ खा पी लेना।
खुशी और बिछड़ने का गम साथ लिए घर की तरफ बढ़े। अभी गांव में घुसने ही वाले थे कि "लुखड़ा"मिल गया चुटकी भरे अंदाज में बोला "का भाई एकदमे नजर नही आते हो,मामला ठीक तो है?
हमने निष्ठुर सा जवाब "हाँ" बोल आगे बढ़ गया। दलान पे बाबूजी लालटेन के रोशनी में "नागिन का नाच"उपन्यास पैड रहे थे। बीच-बीच मे खैनी भी ठोक रहे थे।दवे पांव आगे बढ़ा।  मेन गेट पे पहुंचा ही था कि वो पीछे से बोले" कहाँ गए थे?सुने नाव पे चढ़ के उ पट्टी गए थे। बज्र गिर गया माथे पे। धीरे से वापस जा पाँव के पास बैठ गया। जी बाबूजी हम कभी गांव से बाहर नही गए। सुने उ पट्टी में तारापीठ है।17 साल हो गया कभी जान भी नही पाए एतना सुंदर मंदिर उ पट्टी है। आज मन में आ गया तो चले गए।
बाबूजी चश्मा को नाक पे सरकाते हुए बोले हाँ मंदिर त सुंदर है पर आने जाने की सुविधा कम है।कोसिकी में पानी घटते बढ़ते रहता है। कौन इतना जद्दोजहद करे। खैर ज्यादा घूमने भटकने का आदत कम करो। अंदर जाओगे त माय से बोलना एक बार नीबू वाला चाय भिजवा दे पेट मे गैस बन रहा। जान छूटता देख "जी"बोलकर झटक के अंदर चला गया।
माइ चटाई पे बैठ सब्जी काट रही थी।नजर उठा के देखी तो झट बाबूजी के चाय के लिए बोल दिया। पर माइ की आंखों में आज हमको चोर जैसे देखने का अनुभव हुआ। 
जाके लालटेन के पास बैठ संस्कृत का शब्दरूप रटने लगा
मुनि....मुनिः....मुनीयः
मुनीम....मुनि...मुनिन
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रात ढली खा के छत पे चादर बिछा लेट गया। आंखों में सारी घटनाएं घूमने लगी। नींद गायब हो गया और लगने लगा अब भी उ पट्टी अपने लाडो से बतिया रहे हैं।
चांद-तारा सब सुंदर लगने लगा। हवा से गुदगुदी होने लगी फिर एकाएक याद आया कि नजदीक से अपने लाडो को देख-मिल तो लिए पर नाम त पूछे ही नही।धत्त तेरे की।भारी चूक हो गई। अगला प्लानिंग करते हुए कब आंख लग गई पता ही नही चला। 
सुबह सारा काम करके नहा के गोसाई घर मे कुलदेवता के पास खड़ा होके मने-मन बतियाने लगे। सारा दुःख दर्द,लाडो के साथ जीने मरने की कसम,दुनियाँ से लड़कर हासिल कर लेने का शपथ आदि-आदि।
दोपहर को खा के दलान पे चारपाई पे  लेट कर शाम का इन्तेजार करने लगे।
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