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Abhishek Sonwani

##हमरी अधूरी कहानी

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dilip khan anpadh

#हमरी प्रेम कहानी भाग 15(समापन 2) #teachersday2020

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हमरी प्रेम कहानी भाग 15 (समापन 2)
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भोलन मुखियाजी का मुँह देखने लगा। मुखिया जी सकपका के बोले..ए बीरबलवा...अब ई पंचैती तुमरे हिसाब से होगा का? एतना सरपंच और गवाह सब धुर है का? तू कौन हक से दखल दे रहे हो?
इस बार बीरबल की त्योरी चढ़ गई। वो एकदम से झार के बोला....पुल बनाना पाप है का? उ पुल पे अकेले दिलखुसवा चलता है का? आप सब कौन हिसाब से पुल को अपने नाम करवा के अखबार में फ़ोटो छपवा के गांव वाले का सम्मान का हकदार बने?इसको का फ्रॉड नहीं कहा जाता? 4 साल से मुखिया है आप, के गो नल या नाला बनवाएं गांव में? कितना गरीब को अनाज मिला? कौन सा बृक्षारोपन  करवाएं? सब काम कागज पे कर के पैसा लूट लिए है,सारा लेखा जोखा है हमरे पास। ऊपर से DM साब का दिया चेक दबा गए जिसपर दिलखुसवा का हक़ है,ई का फ्राउडिंग नहीं है? हम दिलखुसवा को लेके DM साब के पास जाएंगे। पंचायत में विवाद छिड़ गया।
मुखिया जी सरोज से पूछे..बताती काहे नही की तुमरा इस छोरा से काहे का रिश्ता है?ऐय भोगिन्दर बाबू अपन लड़की से पूछिए का बात है?पंचायत का समय खराब कर रहे आप लोग..अपना पल्ला झाड़ने के लिए मुखिया जी बोल गए। भोगिन्दर बाबू सरोज को ऐसे देखे जैसे अभिये चबा के उगल देंगे....
सरोज आंख में आंसू भरकर बोली....जी हम बाद में दिलसखुसवा से मिले पहिले उ मेरे पीछे पड़ा रहता था,हम गलती से इका कहने वे ई पट्टी मेला देखने आ गए। फिर ई हमको धमकाया की अगर मंच पे सबके सामने हमका किस नहीं करोगी त पूरा छोरा लोग को तुमरे बारे में बता देंगे.....
तभी बीरबल बोला...त तुम मंच पे इका चुम्मा ले ली...फिर त ई बात कोई नही जान सका होगा...10 गांव का आदमी तुमका मंच पे देखा,उ सब को कुछो नहीं बुझाया होगा...तुमरा लाज बचा रह गया होगा...झूठ बोलती हो तुम...हम बचपन से जानते हैं ई छोरा को....किसी को नजर उठा के भी नही देखा है आज तक। अगर तुम इसको पसंद नहीं करती तो का मजाल ई एक कदम भी आगे बढ़ता।
भोगिन्दर बिदक के बीरबल का कॉलर पकड़ लिया। बीरबल उसका हाथ उमेठ के बोला....अपन शान अपने पास रखो...धर के चीड़ देंगे इहे पंचायत में।
बात बिगड़ता इससे पहले मोहर बाबू बोले...अच्छा हमरे बगीचा से जो बांस चुराया उसका क्या?
बीरबल बोला अखबार का कटिंग है हमरे पास...जब पुल बनाने में इसका नाम है ही नही,उस पुल को आप चंदा के खर्चे से बनवाए बताएं है तो क्या सबूत है कि बांस दिलखुश काटा है।इसका त कंही नाम नही है पुल के बोर्ड पे। सब चुप हो गए।
पर बाउजी कहाँ सुनने वाले थे?लपके सोंटा लेके....पूरा मरद बनके दहाड़े... जिस लइका के चलते ई दिन देखना पड़ा उका जीना मरना का?आज ना ई बचेगा,ना आगे कोई रासलीला होगा। अरे जेकर औकात नही सामने खड़ा होवे का उ सब से भी अब इके चलते प्रवचन सुनना पड़ेगा हमको। जिनगी में अपने इज्जत और खानदान के अलावा हम कुछ देखना सुनना पसंद नही किये आज सब मिट्टी में मिल गया।
फाटक...सर्र... सड़ाक...सोंटा बरसने लगा।
 दिखुसवा साँप की तरह देह हाथ उमेठने लगा। बस मुँह से एतना ही बोले जा रहा था.....बाउजी...हो....हमर कोई गलती नही..... अरे ई सब के सब चोर है.....अरे बाप रे...ए सरोज...हम प्रेम किये,कउनो पाप नही.... तुम काहे झूठ बोल गई।
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 बीरबल पकड़ने आया त एक कोहनी में दूर हट गया। बाउजी ऐसे हाथ पैर और सोंटा घुमा रहे थे जैसे अगर ई अंग्रेज के समय होते तो देश को 3 घंटा में आजाद करा लेते।सरपंच सब भी कोना पकड़ लिया। BP के साथ जितना प्रमेय सब गणित में पढ़ के PHD किये सब हमरा गाल से पैर तक सत्यापित कर दिए। चीख-पुकार सुनके छोटकी दौड़ी। बाउजी का तांडव देख सिहर गई। आके हमशे लिपट गई....बाउजी,काहे जल्लाद की तरह किये जा रहे...अरे ई सब के बात में आके जान ले लेंगे का भैया का। ई सब त छिछर है, के नही जानता ई मुखिया और ई भोलन के। आपा-धापी में 3-4 सोंटा उसको भी पड़ गया।
बीरबल नाक पोछते उठा और बाउजी को जोर का धक्का दिया...वो सरपंच सहित मुखिया को लेके लोट गए....बोला भाग दिलखुश...ई बाप नही जल्लाद है।
छोटकी दौड़ के आंगन गई और ईगो जलती संटी ले आई। बोली सब भागो हमरे द्वार से नहीं त आग लगा लूँगी खुद को...पंचायत में खलबली मच गई। भोलन लपका छोटकी को पकड़ने...चिढ़ से छोटकी संटी भोलन के पान खाके ललियाल मुँह पे घुसेड़ दी...उ माई बाप करते भागा।दृश्य देख मुखिया जी ढेंका संभालते कूदे द्वार से और सरपट भागने लगे। सरपंच सब इधर-उधर लपक लिया। बाउजी छोटकी का चंडी रूप देख के धम्म से जमीन पर बैठ गए। 
छोटकी तब तक संटी लेके चंद्रिका रूप में रही जब तक सारा भीड़ वंहा से गायब नही हो गया। अंत मे फफक-फफक के रोते हुए जमीन पे बैठ गई।
भीड़ के साथ ही दिलखुसवा गायब हो गया था। कोई नही देखा उ किधर भागा?
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दिलखुश स्टेशन पे तार-तार हुआ सुबकते हुए पहुंचा। एक मेल एक्सप्रेस के आने का अनाउंसमेंट हो रहा था। छोटी लाइन की गाड़ी धीमे से आकर स्टेशन पे लगी। दिलखुश उसमें सवार हो गया। लगभग बेहोशी के हालात में वो पायदान पकड़ के गेट पे ही बैठ गया। ट्रैन चल पड़ी। उसे नही पता था कहाँ जाना है।वो भागते पेड़,छोटकी का रूप,माँ की यादें सरोज का प्यार और अपने गांव की याद में खोया ट्रैन के साथ भागा जा रहा था।
3 घंटे बाद उसे भूख सी लगी तो उठ अंदर के तरफ गया। एक परिवार समोसा खाने में व्यस्त था। वो नीचे बैठ उसे देखने लगा। सहानुभूतिवश एक बच्चे ने दांत काटा हुआ समोसा उसके तरफ बढ़ा दिया। वो लपक के खाने लगा। खाकर फिर से वाशरूम और गेट के बीच खाली जगह पे लेट गया। 
आंखे तब खुली जब एक सफाईकर्मी ने उसे झकझोरा। वो उठ के इधर-उधर देखने लगा। ट्रैन खाली हो चुका था। वो उठना चाहा, शरीर का पोर-पोर दुख रहा था। किसी तरह स्टेशन पे उतरा। किधर जाए ये सोच असमंजस में पड़ गया। फिर बढ़ते लोगों के साथ हो लिया। स्टेशन से बाहर आ सीढ़ी पे बैठ गया। आगे क्या करे सोचते हुए परेशान होने लगा।
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आज 8 साल बाद वो फिर से ट्रेन में था। किसी जनरल बोगी के पायदान पे नही बल्कि 2rd AC के बर्थ पे। ट्रैन दुबारा उसके जिले के तरफ भाग रही थी। कोल्ड्रिंक का सिप लेते हुए वो सारी पुराने चिन्ह और यादों का पुनराबृति कर रहा था। अब ट्रेनें बड़ी लाइन पे सरपट भागने लगी थी। लोग व्यवस्थित और सलीके में दिखने लगे थे। बीच-बीच मे कॉल रिसीव कर अपने किसी सहकर्मी को दिशानिर्देश देते हुए वो "अपना कल"उपन्यास के पन्ने भी पलट रहा था। उसने बाहर रहते हुए काफी जद्दोजहद की थी। आखिरकार उसका सपना साकार हुआ था। होटल में काम करके जो समय बचत था उसमें पढ़ाई करके PG तक पढ़ लिया। किसी सरकारी जॉब में तो नही जा सका पर एक फर्म जॉइन कर अच्छे रुतबे में जी रहा था।
गाड़ी स्टेशन पे आके रुकी। अपना गॉगल्स आंखों पे चढ़ा वो बाहर निकला। एक ऑटो को अपने गांव के लिए ले चल पड़ा अपने बचपन के स्वर्ग को फिर से देखने,महसूसने और जेहन में पिरोने।
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गांव पहुंच वो एक पल को उदासी में घिर गया। काफी कुछ बदल चुका था। फुस के घर ना के बराबर बचे थे। सड़क ढाल जा चुका था। गाय-बैल दरवाजे पे बंधे नही दिख रहे थे। जगह.जगह बिजली के खंभों पे रोशनी की व्यवस्था थी। कोई इधरे-उधर बैठा ताश खेलता या गप्प मरता नहीं दिकह रह था।वो बढ़के अपने गेट का सांकल खटखटाता है। एक अजनवी सी स्त्री दरवाजा खोलती है। वो आश्चर्य से उसे देखता है। ...आवाज सुनाई देती है"का से मिलना है? मैंने कहा बाउजी से...वो सकपका के पीछे हटती है। 
आवाज सुनके बाउजी निकलते है। एकटक हमको देखते है फिर झपट के हमका सीने से लगा लेते हैं। कुछ देर ऐसे ही खड़े रहते हैं फिर उ स्त्री के तरफ दिखा के बोलते है "ई है तुमरा दूसरी माई
हम आँख-फार फार के दुनु को देखने लगे फिर आगे बढ़ उनका पैर छू लिए।
बाबूजी बताएं कि जब हम चले गए त उसके 3 साल बाद छोटकी का ब्याह,बीरबल से कर दिए उ पानी टंकी में क्लर्क है।  दू गो बाल बच्चा है। शाम को खेलने यंही दलान पे आ जाता है। रोज आके पूछता है मामा कब आएगा विदेश से।छोटकी के बारे में सुनकर अच्छा लगा। छोटकी के जाने के बाद घर एकदम से सुना हो गया,त अपना ख्याल रखना भी मुश्किल हो गया। फिर सबके कहने पे सामाजिकता का काम किये। उ पट्टी में रहने वाली ऐगो बाल विधवा से शादी कर उसको नया जीवन दिए। 
हम उनके तरफ देख के मुस्कुरा दिए। पर एक कसक फिर से चुभने लगी"उ पट्टी", पुल..सरोज?
बाउजी आगे बताएं मुखिया जी को पीलिया हो गया उ गुजर गए। अभी भोलन नवका मुखिया है। उ खुद सरपंच बन गए हैं।
हमरी नवकी माँ हम दोनों के लिए चाय ले आई। चाय पीते हुए हम सरपट पूछ लिए""बाउजी सरोज का क्या हुआ?
वो चाय एक तरफ रखके घर के अंदर गए। आए त हाथ मे 4-5 पन्ना था।
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हमरे हाथ मे रखकर बोले"तुमरे जाने के बाद सरोज को सदमा लगा। भरी पंचायत में डर से झूठ त बोल दी पर तुमरा मार खाने और  उ अंतिम शब्द""तुमका से प्रेम ही त किये पाप नहीं किये सरोज" उ कभी न भूल सकी। उसका दिमागी स्थिति थोड़ा गड़बड़ाने लगा था। रोज उ पट्टी से पुल पार कर ई पट्टी के घाट पे आके बैठ जाती थी। उ त छोटकी माय के वर्षी के दिन उका घाट पे देखी। उ छोटकी के संग एक दिन घर तक आ गई। उका चुनरी में ई सब बंधा हुआ था। छोटकी उसको नहा धुआ चोटी कर दी थी। उ छोटकी को ऐगो अठन्नी देके बोली "मेला में मिठाई खा लेना" बाउजी अठन्नी हमरे हथेली पे रख दिये। 
हम दंग थे।ई वही इंदिरा गांधी छपा हुआ अठन्नी था जो बगीचा में साथ फेरा लेके हम उका दिए थे। हम बाउजी के छाती से लगके फफकने लगे। 
बाउजी हाथ जोड़कर पीछे हटे"रे दिलखुश..रे हमर बच्चा...हमरा माफ कर दो...हमसे बहुत बड़ा पाप हुआ है..हम तुम दोनों के प्रेम को नही समझ सके...हम सरोज को नही पहचान सके...हम बस अपने शान में सब अन्याय कर दिये... उ तुमरे लिए बनी थी....तुम गए त बहुत दिन अपना सांस संजो के तुमरा आस देखी....छोटकी से चोटी बंधवा के जब उ हमको प्रणाम करने दलान पे आई तब हम उसको नजर भर देखे थे...पवित्र मूर्ति थी तुमरा सरोज....हमको बोली थी बाउजी हम हैं ना "छोटकी और आपका देखभाल करेंगे...बस दिलखुश को वापस बुला लीजिये...हमरा सांस रुकने लगता है उका बिन।....फिर उ दुबारा कभी नही आई।
छोटकी बताती थी कि उ धूप में भी पुल पे पाँव लटका बैठी रहती है। कुछ दिन छिप-छिपा के छोटकी उसको खिला आती थी। एक दिन गायब हुई त 4-5 दिन नही दिखी। 5 दिन के बाद उसी पुल पे उ जहर खा के प्राण त्याग दी।..बाउजी माथा पे हाथ रखके...फुटकर रोने लगे।
हम हाथ मे कागज और अठन्नी पकड़े सन्नाटे में खड़े रहे।बस आंसू रुकने का नाम नही ले रहा था।
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खुद को संभाल हम लगभग भागते हुए घाट के तरफ बढ़े। सूरज डूब गया था। लाली भरे रौशनी में हम घाट पर पहुँचे। देखकर दंग रह गए।अब घाट नहीं बचा था। जलकुंभी से धारा भर गया था।कोसी शायद इस धारा से कटने लगी थी। नजर दाहिने तरफ गया। सरकारी पुल बन गया था।फर्राटे से गाड़ियां ई पट्टी,उ पट्टी दौड़ रही थी।कुछ पैदल लोग भी चले जा रहे थे। हम स्वतः सरकारी पुल के तरफ बढ़ गए। काफी ऊंचा और मजबूत था। ऊपर जा किनारे खड़े हो अपने पुल के तरफ देखा। कुछ बांस-बल्ले खड़े थे। दोनों छोड़ ध्वस्त हो गया था। शायद हमरे और सरोज के बिछड़ने का गम नही झेल सका। हम उ पट्टी के घाट के तरफ देखे। बस देखते चले गए शायद सरोज देकची ले फिर से आती दिख जाए। फैलते अंधियारे में ऐसा लगने लगा"सरोज बांहे खोल उ पुल से हमको आवाज दे रही है......हम बस पागल की तरह चीख उठे......स..सर... रोज।अंधेरा छा गया। कुछ भी दिखने दिखाने को ना रह गया.....शेष रहा तो बस एक कहानी।
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रफ्तार से भागती जिंदगी में सरोज,माई, छोटकी,पंचायत,पुल और अपनी प्रेम कहानी को यादों में समेट संजोए रखना मुश्किल हुआ तो इसे पन्नो पे उकेड़ दी। शायद कितनी सरोज कितने दिलखुश और कितने मिटते-अनमिट कहानियों को ये जमीन दे दे।
पर हमरी प्रेम कहानी हमेशा अमिट और यादगार रहेगी।

दिलीप कुमार खाँ"अनपढ़" #हमरी प्रेम कहानी भाग 15(समापन 2)

#teachersday2020

dilip khan anpadh

#हमरी प्रेम कहानी भाग14 (समापन 1) #teachersday2020

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हमरी प्रेम कहानी भाग 14 (समापन-1)
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बाबूजी आव-देखे न ताव सरपट लात हमरी छाती पे मारे। हम घोलट के दूर जा गिरे। उ लगे चिल्लाने....तुमरा कारण क्या क्या झेले हम सब। माई को खा गया। मंच पे क्या-क्या बोलके मेला का सत्यानाश कर दिया, कल उसका जवाब अलग देना होगा। घर से पैसा ले जाके प्रेमलीला में खर्च कर आया और मेरे माथे 1200 का इलाज का खर्च चढ़ा उसकी कोई चिंता नहीं। कल अगर पंचायत हुआ और एको आदमी हमको गलत-सही बोला त सबसे पहले हम तुमरी जान ही लेंगे
माई बीमार खटिये से लटकल थी और नवाब साब रासलीला का मंचन करने में व्यस्त रहे...
श्राद्ध के बाद अगर तुम इस घर मे नजर आए त काट के इहे आंगन में दफन कर देंगे। अब बैठ के मुँह का देख  रहे हो जाओ हरिया,गोलू,शंकर सब के बुला के लाओ।मोक्ष धाम भी त ले जाना है कंधा देके ।
हम उठके चल दिये। छोटकी गोईठे पे आग सुलगाने लगी। बाबूजी फुफकारते हुए व्यवस्था में लग गए।
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हरि चाचा...हो हरि चाचा....हम किबार का सांकल खटखटावे लगे। दस बार खटखटाए तब जाके हरि चाचा ताड़ी के नींद से जागे। धारी वाला हाफ पैंट पहिने निकले और ऐसे मुँह के तरफ देखे जैसे...वो सपने में रंभा के साथ ता-ता थैया गा रहे हो और हमरे चलते दखल हुआ हो।मुँह बिचका के बोले ...का है? काहे छटपटाए जा रहे हो। हम बोले माई स्वर्ग सिधार गई...बाउजी बुलाए है....अरे..रे बोलके वो संग हो गए। फिर बारी-बारी से गोलू और शंकर चाचा को साथ लिए।
सुबह की लाली घिरने लगी थी। माई को तुलसी के पास चचरी पे लिटा दिया गया था।छोटकी रोते हुए ही सारा व्यवस्था कर रही थी। बाबूजी के गाँजे का जोश ठंढा गया था सो कुर्सी धर बैठ गए थे।
सबके आ जाने पर बिचार-विमर्श शुरू हुआ। कैसे क्या करना है? लकड़ी कहाँ से लिया जाए?घीव का डब्बा कौन लाएगा? आदि-आदि
जैसे जैसे पड़ोसी जगते गए भीड़ बढ़ गया।
एकबारगी नवकी काकी पुकि पार के रोने लगी....अरे छोटकी के माय....अरे एतना का हड़बड़ी था जाने का....कुल अनाथ कर दी....के देखेगा ई दुगो लाल गुलाब के...चार और औरत सुर संगम में भीड़ गई।
तभी कुबड़ी दादी लुढ़कते हुए आगे आई...पछाड़ मारके लोट गई माई पे....आहे....कनिया....आहे के देगा मेरे हुक्का में आग गे... अरे के पूछेगा ई बुढ़िया को चाय गे... ई भगवान बड़ा निर्दयी है...हमका उठा लेते।
भीड़ में साड़ी से मुंह ढके एगो नवविवाहिता बोली....काकी कितनी अच्छी थी....सुहागन मरी....सबका ऐसा नसीब हो...अभियो चेहरे पे हंसी है।
शंकर चाचा आगे बढ़े सबको हटने कह कंधा देने के लिए बांकी सबको बुलाने लगे।
गोलू चाचा बोले...अरे रुको...एतना काहे हड़बड़ाए हो....लंबा प्रोग्राम है।चुनौटी में जेतना खैनी था उ दिलखुसवा के नाटके देखे में रगड़ा गया।डिब्बी भर लेने दो। ई जो लटा रहे इसको दाब के चलते है।
हरिया चाचा जम्हाई में मुँह फ़ाड़के हे राम बोले। बाउजी के तरफ देख के बोले कल शाम में बासी ताड़ी पिला दिया है तब से पेट ममोड रहा। नींदों नहीं आया। मेला से 2 बजे लौटवे किये,जब मार-धार होवे लगा था।
हमरे तरफ देख के बोले...अरे दिलखुसवा उ कौन छोड़ी मंच पे चढ़ गई थी...और का-का बके जा रहे थे अंतिम में तुम? सारा फसाद ओकरे बाद शुरू हुआ था। वैसे ई नाटक यादगार रहेगा सबको। सब मजा हुआ खिलाड़ी सब मंच पे उतरा था। खैर देखो आगे का होगा। लौटते वक्त देखे भोलन के द्वार पे दस लोग जमा होके पता नही क्या माफी,पंचायत का बात कर रहे थे।
हमरे मन मे आया माई से पहिले इसको ही लेटा के मुखाग्नि दे-दें।
ले दे के सब कंधा देने आ गए। अंतिम बार मेरे दिल मे हुक जैसा चुभा।माई विदा हो रही थी और पहली बार बाबूजी फफक-फफक के रोने लगे थे...बस मुँह से निकल रहा था...खूब साथ दी तुम,हमरे जैसा आदमी का...जिनगी भर निकम्मा रहे...एक बार मुँह तक नही खोली...बहुत दुःख दिए अब सुखी रहना....अब कौन हमरा ठाठ का ध्यान रखेगा?
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हम पीछे-पीछे आग लिए चल रहे थे। राम-नाम-सत्य है बोलते सब आगे जा रहे थे। घाट के तरफ बढ़े तो सिहर गए। ई घाट ने हमरा जिनगी,क्या से क्या कर दिया था। 
सब लकड़ी काटे में व्यस्त हो गया।हम बस उ पट्टी को देखते चिंता में डूबे रहे।
चिता सजाया गया। हमको आग देने के लिए आगे बुलाया गया। हमरा हाथ कांपने लगा। जिस माई के गोद मे खेले।छोटकी से झगड़ा कर बचने के लिए जिसके आंचल पीछे छुपे,बाबूजी से जो हमेशा हमको बचाती रही,हमेशा मुँह देख पूछती रहती थी कि तुमको भूख लगा है का? खाते हुए जो दो कौर हमेशा बुला के हमरे मुँह में ठूस देती थी,कभी कभी गर्मी में छत पे बगल में लेट के किस्सा सुनाती थी,आज के बाद उसको फिर कभी नही देख पाएंगे।
फिर से आंखे बरसने लगी।
तभी उ पट्टी सरोज नजर आई। हाथ मे फूल ले पानी मे विसर्जित की और अगरवत्ती जला घाट पे खोंस दी।हम समझ गए उ माई को श्रद्धांजलि दे रही थी।
कलेजा भर आया। आग की लपटें ऊंची उठ गई।चट-चट की आवाज के साथ माई विलीन होने लगी।
बाउजी घुटने पे हाथ रख बस एकटक देखे जा रहे थे।जैसे दो आत्माओं के विखंडन का अंतिम पड़ाव ढूंढ रहे हो। शंकर,हरि और गोलु चाचा एक साथ बैठ बातें करते हुए इंसान के अंतिम पड़ाव का ज्ञान बिखेड़ रहे थे। हम बीच बीच मे अग्नि में सरर डाल आत्मा की शांति ढूंढ रहे थे।
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अग्नि शांति की ओर था। बस राख से धुआं उठता दिख रहा था। सब वापस चलने को हुए। बाउजी बिना कुछ बोले सब समेट चल दिये। पंच लकड़ी विसर्जन के बाद सब वापसी को मुड़े।
मुझे लगा माई मेरे साथ चलने  लगी। शरीर भारी और अंतस्थ  उड़ता सा महसूस होने लगा। घर पहुंचे तो छोटकी ने सबके ऊपर जल छिड़का। अंदर कुछ महिलाएं फिर से रुदन करने लगी।
हम सोच में पड़ गए। जिसे जीते जी समाज सम्मान नही देती उसके लिए मरने के बाद एतना पाखंड क्यों?
बिना कुछ बोले,बिछाए हुए कंबल पे जा बैठे। 
बांकी सब लोग विधि-विधान की चर्चा करने लगे । हम माई के खाली कमरे की तरफ देख के व्यथित होते रहे।
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9 दिनों तक एक सफेद वस्त्र हमको पहनाया गया। रात में छोटकी हमरे बगल में कंबल बिछा सोती थी।
एक दिन छोटकी ने पूछा....भैया कल दो पुलिस वाले भोलन के साथ द्वार पे आए थे। पिताजी गुस्से में दिखे।फिर उ बोले सब निपट जाने दीजिए तब पंचायत में बैठेंगे। कल सरोज की मासी भी हमको बुलावा भेजी थी पर हम माई की मृत्यु की बात कहके टाल दिए। सब मिलके कुछ बड़ा कांड करने वाले है। 
हम बोले छोटकी अब काहे की फिकर। माई रही नहीं।बाउजी हमको देखना नहीं चाहते। बस तुमरी चिंता रहती है।पर सरोज को हम छोड़ नही सकते। जो होगा देखेंगे या गांव छोड़ देंगे। इस सबको निबटा हम सबसे पहले सरोज से उसका राय पूछुंगा। उ हमको धोखा नही देगी। अगर सरोज घर आ जाएगी तो तुमरा मन भी लगा रहेगा वो भोली है और खूब समझदार भी।तुमको बहुत चाहती है। भगवान से मनाओ बात बन जाए वरना तुम इस भाई को भी भूला देना।
छोटकी बस छत को घूरती रही । 
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माई का सारा क्रिया-कर्म सम्पन्न हो गया। हम नहा धो के पैजामा कुर्ता पहिने ही थे कि बाउजी आ धमके। 
बोले....किसकी तैयारी है? घाट पे जाना है का?रासलीला को? टेंशन मत लो कल पंचायत बैठ रहा है।तुमरा पूरा इलाज वंही हो जाएगा सबके सामने। तुमको का लगा मंच पे चढ़ के हीरोगिरी झार दिए त सब सही हो गया। अरे तुमरे चलते जो दंगा-फसाद हुआ उसमें DM साब को कोई कार पे चढ़ते समय पिछवाड़े पे लात मार दिया है। उनका बबासीर फट गया,उ का तुमको माफ कर देंगे। आर्डर दिए हैं सब फसादी को धर के हाजिर करने का और तुम त उसके सरगना निकले। 
तुम जितना रासलीला रचाए हो ना, सबकी गवाही और सफाई कल देना। हम कोई जिम्मा नहीं लेंगे। चले गुंडवन के बेटी से इश्क़ फरमाने। 
उ भोगिन्द्रा हमरे सामने खड़ा भी नही होता है।हमरे बैचमेट था। तीन बार मैट्रिक फैल किया।अनुकंपा से मैट्रिक पास किया। धुरतई करके चार गो टका कमा लिया त इज्जतदार हो गया। 
और जे लड़की को सावित्री समझ रहे हो न उ ओकर तेसर बीबी(बंगालिन) की बेटी है। दू गो को त मार दिया सधा के अब गाड़ी से घूमता है।कौन इज्जत है उसका समाज मे? अरे हम कुछो नही किये लाइफ में तबहियो लोग-समाज, इज्जत देता है कि पढल-लिखल,पीएचडी हैं। चार गो आदमी हमरे ईमानदारी और सामाजिकता का उदाहरण देता है। ऐसे बैठे बिठाए फुटानी नही है हमरा समझे। अपने साथ साथ पूरे खानदान का नाक कटवा दिया तुम। कल के पंचायत में देखना कइसन-कइसन चेहरा है समाज के लोगों का। सबका असलियत समझ मे आएगा तबहिये समझोगे। दुध का दांत झरा नहीं चले गृहस्थी संभालने.......
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दूसरे दिन हमरे द्वार पे पंचायत लगा। सब सरपंच के आगे मुखिया जी बैठे। बाउजी एक किनारे बैठे।भोलन चाचा मुँह में पान भरे एक कोना पकड़ लिए। 20-25 लोग जमीन पे बैठ गए। दू चार गो नारद जैसा दोस्त सब भी आ धमका।
कुछ देर इन्तेजार के बाद सरोज अपने गेंडे जैसे बाप के साथ आती दिखी। उसके साथ 5-7 आदमी और था। सब आके ऐसे विराजमान हुए जैसे उनका राज्याभिषेक होना हो।
कार्यवाही शुरू हुई।
मुखिया जी बोले-दिखुसवा के चलते मेला में उपद्रव हुआ। उ सामाजिक मंच पे क्या अनाप सनाप बोल गया ये जानने की जरूरत है।
सरपंच में से एक बोला-ई भोगिन्दर जी के लड़की से तुमरा क्या वास्ता है?ई भी बताओ।भोगिन्दर जी सामने हैं सब बात स्पष्ट होनी चाहिए।
इतने में भोलन चाचा सफाई दिए-सबसे बड़ी बात ई है कि मंच पर से दिलखुश हमरा और मुखिया जी पे आरोप लगाया कि हम दोनों चंदा का पैसा खाए हैं। सामाजिक काम मे खर्च को ई गलत कैसे बोल गया?
हमने सरोज को भरोसे भरी नजर से देखा। उसकी आंखें सूजी हुई थी। शायद उसे टार्चर किया गया था। चुप चाप सबका मुँह देखते रहे।
बाउजी हाथ जोड़ बोले देखिए मुखिया जी लड़का छोटा है कुछ ऊंच-नीच किया होगा लेकिन इतना भी बुरा नही
भोगिन्दर पिनक के बोला आप का कहना चाह रहे आपका लड़का दुध का धोया है...अरे इसका सब करतूत हमको पता है। ई उ पट्टी के चार गो लड़का को बहला-फुसला के जाने क्या क्या कर रहा था। उ त समय रहते हमको भोलन बता दिया नै त पूरा नाक कटने ही वाला था। हम 10 दिन से इसपे नजर रखे थे। सब राम कहानी मालूम है हमको।
हम भोलन चाचा का मुँह देखने लगे।उ पान को ऐसे चबा रहे थे जैसे देश के अगले राष्ट्रपति वही बनने जा रहे हो।
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बाउजी शांत होक बैठे रहे। मुखिया जी फिर बोले...अरे आपके चुप हो जाने से इसका अपराध कम नही हो जाएगा। अगर पंचायत में कोई फैसला नही होगा त हम सब दिलखुसवा को थाना के सुपुर्द कर देंगे। बहुते कांड है इसका।चुरा के बांस काटना,मिट्टी काटना,उपद्रव के लिए उकसाना और सबसे बड़का केस त लड़की का हरासमेंट का होगा।
बाउजी चुपचाप खड़े हो गए। अपमान और गुस्से से चेहरा लाल पड़ गया। धीरे से बोले आपलोग जो कहें...
भोलन-तपाक से बोला गांव का लड़का है...10-20 सोंटा मारके, 2000 के जुर्माना के साथ माफ कर दिया जाए।
हम मन ही मन सोचने लगे कैसा पापी है ई भोलन....
उधर से मोहर बाबू भी आ गए लगे बांस का हिसाब मुआवजे के साथ गिनाने...
हम बस गूंगे की तरह सब देख-सुन रहे थे।
सरपंच का आवाज गुंजा....का कहते हैं आप। बाउजी कोने में खड़े सोंटे की तरफ बढ़ गए।
तभी बीरबलवा आके खड़ा हो गया। हम और शर्म से गड़ गए।
एक बारगी उ सब बात सुनके बोला, आप लोग कैसा पंचैती कर रहे
 अकेले दिलखुसवा के विपक्ष में बोले जा रहे है। अगर ई गलती किया है त गलती दूसरे पक्ष से भी हुआ होगा।
हमको लगा लपक के बीरबल को छाती से लगा ले और कहें तू ही कुंभ में बिछड़ा हमरा भाई है रे..
बीरबल पढ़ने में तेज,उचितवक्ता और कसरत किये हुए शरीर के साथ नौकरी के प्रयास में लगा था। उसको सब जानते थे कि ई लड़का मुडिया गया त फिर जितना शांत है उससे ज्यादा उग्र हो जाएगा।
पूरा पंचायत एक दूसरे का मुंह देखने लगा।
बीरबल बोला-छोटकी हमको सब बात बताई है कि मेला का चंदा कौन कौन खाया है?पुल बनाने का श्रेय लेके कौन फ़ोटो छपवाया है?
अरे ई अकेले त प्रेम नही न किया है.....सरोज भी साथ दी होगी। नै त पुल बना के ई लंका डाहने त निकला नहीं होगा। इसके काम का चर्चा कोई नही किया जिसके चलते DM साब तक प्रशंसा किये और 1500 का चेक दिए इनाम में...उ चेक का भी त कुछ पता नही चला? 
दिलीप कुमार खाँ"अनपढ़" #हमरी प्रेम कहानी भाग14 (समापन 1)

#teachersday2020

dilip khan anpadh

#हमरी प्रव्म कहानी भाग 13 #teachersday2020

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हमरी प्रेम कहानी भाग 13
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सुबह सूर्योदय के साथ ही असंख्य संख्या में डोंगी नदी में उतर जाता है।
एक बड़े नाव पे अपने घोड़े के साथ स्वयं महाराज नदी में दिखते हैं। कुछ नाव पे आग के गोले बरसाने वाले यंत्र दिखते हैं। 
धनुष,बरछे,साज सज्जा से सुशोभित पैर में मोटे चमड़े के जूते पहने अन्य सैनिक दिखते हैं। 
एक बड़े से बेड़े पे सस्त्र और अन्य सामग्री ढोया जा रहा होता है।
उधर टीले पे खड़े दो श्रवण उन्हें देख चिंतित होते नजर आते है। 
बूढ़े भील के चेहरे पे बीरता भरी मुस्कान दिखती है। अन्य युवक दाल यथा स्जम छिपे होते हैं।
एकाएक सारे डोंगी और नाव को नदी के किनारे से कुछ दूर पहले रुकने का आदेश मिलता है।
आग बरसाने  वाले नाव को आगे कर कुछ संकेत दिए जाते हैं। कई आग के गोले हवा में उड़ता हुआ जंगल मे आ गिरते है। देखते देखते आग की लपटें फैलने लगती है। छिपे सारे नवयुवक पेड़ों से कूद टीले के तरफ भागते हैं।
तभी नाव से तीरंदाजों की टीम हमला करते है। ....जंगल मे चीत्कार गूंजने लगता है।
पैदल सैनिक तट पे आ आगे बढ़ने की हुंकार भरते है।उन्हें रोकने का कोई उपाय नही दिखता।
ऊपर टीले से गुलेलों और बड़े-बड़े पत्थरों को नीचे फेकने का काम शुरू होता है।सैनिकों में खलबली है।पर आगे बढ़ते नजर आते है।
एकाएक जंगलों के झाड़ियों के पीछे से जंगली सांडों को पथरीले पथ पे छोड़ दिया जाता है। कुछ मुगल सैनिक उसके चपेट में आते है पर आग फैल जाने से ये सांढ़ भी पीछे भागने लगते हैं।
मुगलों की संख्या इतनी होती है कि वो फिर भी आगे बढ़ते रहते है। दलदल और अन्य व्यवस्था के बाद भी सैनिक टीले की और बढ़ते दिखते हैं।
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टीले पर सैनिक आमने सामने हो जंग छेड़ देते हैं। कम संख्या और अस्त्र की कमी से भील और अन्य पिछड़ते चले जाते है। मुगलों की फौज नीचे से ऊपर संख्या में बढ़ते चले जाते है।
जोश और चीत्कार से जंगल गूंज उठता है। एक पल को भीलों की बीरता और जज्बे को देख मुगल सेना भी सिहर जाता है। भीलों के तलवार और तीर से टीले के तरफ आने वाला कोई मुगल सैनिक सशरीर टीले पर चढ़ नही पाता है।
नवरोज और मोहन अंतिम बार शिव पे जलारोहन करते है। मोहन नवरोज को बांहों में भर कपाल को चूम लेता  है। मिट्टी का तिलक लगा एका-एक दोनों तांडव नृत्य आरंभ करते है। दो श्रवण ढोल पे थाप देता है। मोहन और नवरोज के हाथों में नग्न तलवारें होती है। 
भीलों का कत्लेआम कर कुछ सैनिक टीले के ऊपर चढ़ जाते है। वो हतप्रभ सा नृत्य देखने लगते हैं....
जटाटवी गलहजलह
प्रवाह पावितस्थले
गलेवलब्यलंबितांग
भुजंगतुंग मालिकाम
डमहःङम..डमह ....डमः.........
 ढोलक पे थाप बढ़ता जाता है....नृत्य और तेज हो जाता है।
सैनिक आगे बढ़ते है.....सर धर से अलग हो जाता है। बादल घिर आते हैं।मूसलाधार बारिश होने लगती है।  कोई भी मुगल सैनिक शिवलिंग तक नही पहुंच पाते है। तभी घोड़े के टाप संग 10 सैनिकों के साथ महाराज का आगमन होता है। एक कटार हवा में नाचता हुआ एक श्रवण के सीने में समा जाता है। ढोलक पे थाप बन्द हो जाता है......अट्ठहास गूंजता है और दोनों को बंदी बनाने का निर्देश मिलता है।
इससे पहिले सैनिक आगे बढ़ते मंदिर के पीछे से एक तीर एक सैनिक को भेदता घोड़े को आ लगता है।
महाराज धम्म से नीचे आ गिरते है। उनका टोप लुढ़क के नवरोज के पैरों के पास आ गिरता है जिसे नवरोज पैरों से मसल देती है।
महाराज तलवार खींच खड़े होते हैं।तभी मंदिर के पीछे से बूढ़ा भील निकलता है। अपने धनुष को साध कहता है"तुम सब पापी हो।भले हम मिट जाएं पर ये शिव नगरी रहेगी। ये अमर प्रेम रहेगा। मेरे जीते जी तुम शिवलिंग को छू भी नही सकते। 
एक सैनिक हरकत में आता है। भील का तीर उसके गले को फाड़ता पेड़ से जा लगता है। कई और सैनिक आगे बढ़ते हैं मोहन और नवरोज उसे धूल में मिला देते है। टीले पे और अधिक सैनिक आ जाते है। तलवार और कटार से घमसान छिड़ जाता है। 
महाराज की आंखे राजकुमारी और मोहन के चपलता को देख हतप्रभ होती दिखती है।
तभी एक भाला बूढ़े भील को चिड़ता आगे बढ़ जाता है।
मोहन उसे थाम धम्म से जमीन पे बैठ जाता है। नवरोज लड़ते हुए बेहोश हो जाती है।
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नवरोज को होश आता है। हथकड़ियों में जकड़ा मोहन घुटने के बल बैठा नजर आता है। वो उठने की कोशिश करती है।तभी दो सैनिक उसे घसीटते हुए एक दीवार के सहारे खड़ा कर देते है।
एक राजमिस्त्री ईंट जोड़ने लगता है। मोहन उसे रोते हुए देखता है। नवरोज मुस्कुराती है। 
महाराज का आदेश- अगर तुम इस्लाम स्वीकार कर लो तो हम तुम्हे जागीर के साथ नवरोज सौंप देंगे।
मोहन- बस कंपकंपाते होठो से ना बोलता है
कोड़े की आवाज आती है.....सड़ाक...सड़ाक...सड़ाक
नवरोज होंठो को दांतों में दवा आंखे बंद कर लेती है।
कंधे तक इंट जुड़ जाने के बाद महाराज इशारा करते है। राजमिस्त्री रुक जाता है।
फिर इशारा होता है दो सैनिक हाथों में कील लिए आगे बढ़ते है। नवरोज की चीख निकल जाती है।
सैनिक बेरहमी से मोहन को औंधे लिटा हाथों पे कील ठोक देते है।दर्द से बिलबिलाता मोहन जमीन पे पांव रगड़ता है।
नवरोज के गर्दन तक इंट जोर दिया जाता है।अब वो बस खुली आँखों से सब नज़ारा देखने को मजबूर होती है। 
महाराज का इशारा होता है।दो जल्लाद गर्म सलाखें ले आगे बढ़ते है.......मोहन के दोनों आंखों में सलाखें डालकर वो अट्टहास करते है। मोहन चीखता,बिलबिलाता है,कील वाले जूते से दो सैनिक उसके जबड़े को दवा देता है।
वो बेहोश हो जाता है।
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खुले मैदान में मोहन को हथकड़ियों से जकड़ लाया जाता है।  नवरोज सामने की दीवार में लगभग चूनी जा चुकी है सिर्फ उसका गर्दन हर माजरा को देखने को छोड़ दिया गया है।
महाराज हंसते हुए कहते है....इस आशिक की कोई आखिरी खुवाहिश हो तो बताए। हम मरने वाले कि इक्षा जरूर पूरी करते है।
फूटी हुई आंखों से आंसू छलकते है। वो कराह कर बोलता है...अपने नवरोज को छूना चाहते हैं....महाराज क्रुद्ध होते हुए उसकी जिह्वा काट देने का आदेश देते हैं।
........सैनिक आगे बढ़ते हैं।जूते की चरमराहट सुन एकाएक मोहन चीखता है बोलने लगता है......
......सरोज.....हम तुमरे बगैर नही जी सकते.....हम तुमसे मिलने के लिए उ पुल बनाए थे पर भोलन चाचा धोखे से अपना नाम कर गए..... मुखिया जी भी चंदा का पैसा खा उनका साथ दिए हैं......उ पट्टी का मंसुखवा गवाह है....उ पुल हमरे प्यार की निशानी है...... तुम जानती है सरोज....हमदोनो उ पुल पे गले मिल चुके हैं...हमको नहीं मरना है अभी.... हम सरोज के साथ फेरा लिया हूँ। उ हमरी धड़कन है। उ आई है हमरा नाटक देखने। सरोज....ए सरोज...हमको नहीं पता मेरा का होगा....पर मरेंगे तुमरे गोद मे सर रखकर।
किसी के समझ मे कुछ नहीं आता कि एकाएक मोहन ये कौन सा डायलोग बोलने लगा। सैनिकों के द्वारा आगे बढ़ जीभ काटने का दृश्य सम्पन्न किया जाता है।
.....माइक का साउंड बन्द कर दिया जाता है टी...टिं.गूंजने लगाता है....पर्दे के पीछे हलचल मच जाती है।
भीड़ इकट्ठे हल्ला पे उतर आता है। अरे भाई ई नवरोज सरोज का क्या मामला है?
इतने में महिला भीड़ को चीरते हुए सरोज मंच पे चढ़ जाती है.....दिलखुश को गले लगा बेतहाशा चूमने लगती है....कोई कुछ समझ पाता इससे पहिले उ पट्टी के कुछ लोग हंगामा करने लगे। अरे ई त भोगिन्दर जी के बेटी है रे.....ई हुआँ का कर रही है? तबतक भोगिन्दर जी का कोई सहयोगी  भीड़ में  इंटा चला देता है.....हंगामा और शोर मच जाता है।डंडा-फट्ठा ले कई, ई पट्टी और उ पट्टी के लोग भीड़ जाते हैं।DM साब सर बचा के भागते है...महिला लोग का भीड़ छितर-बितर होने लगता है। 
भोलन चाचा भाग के मंच पे पहुंचते हैं.....शांति बनाए रखने के अपील करने लगते हैं। तभी एगो इंटा लाइट पर लगता।धुप्प से स्टेज पे अंधेरा हो जाता है।
लोकल थाना का पुलिस सब दौड़ता है। अफरा-तफरी मच जाता है। भीड़ उग्र हो जाती है पुलिस सबको घेर के धुनने लगती है।10-20 बॉक्सिंग खाके  पुलिस पीछे भागती है। अंधेरे में लाठी घूमने लगता है।माय गे... बापरे ...अरे तेरी का...गूंजने लगता है
हम और सरोज बेतहाशा स्टेज पे एक दूसरे को चूमते खड़े रहते हैं।
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झटपट कमिटी लाइट को ऑन करवाता है। हम नजर उठा के देखे त हम और सरोज ही स्टेज पे बचे थे।उ हमरा गले मे हाथ डाल हमसे लिपटी थी। 
महाराज को कोई इंटा मार दिया था।कपार से खून बह रहा था। दू गो सैनिक लात-मुक्का खा के बगल में कच्छा पहने बैठा था।
 नवरोज कपार पे हाथ देके किनारे बैठी थी,अंधेरे में कोई उसको लाफा खींच लिया था सो कान सनसना रहा था। बुड्ढा भील दांत पकड़ के बैठा था कोई उसके थुथना पे फाइट मार निकल लिया था।
 श्रवण सब का पीताम्बर कोई खींच लिया था सो अंडरवियर में लाज से कोना में पर्दा में लिपट के मुंडी निकाले हुए था। धनुष भाला सब इधर उधर बिखरा पड़ा था। जितना क्षति युद्ध के सीन में नही हुआ त उतना इस घमसान में हो गया था। 
कलुआ जिसका घोड़ा भाड़ पे लाया गया था उसको कोई कूट दिया था,गर्दन स्टेज से नीचे लटका हाथ-पैर छितराए हुए था।
सरोज धीरे से बोली,चल निकल ले....दिलू.... माई स्वर्ग सिधार गई....घर मे कोई नही था....बाउजी सबके साथ कंही निकले थे...शायद मेला देखने ही....छोटकी कंहाँ से हमको ढूंढते मासी घर आ गई.....माई मेरे हाथ से अंतिम बार गंगाजल पी.....चल घर....छोड़ नाटक...हमशे सहा नहीं जाता....छोटकी का रो रो के  बुरा हाल है।
हमदोनो छोटकी सहित मेला से गायब हो लिए।
सब शांत हुआ त मैदान का दृश्य ऐसा था जैसे हल्दीघाटी का यद्ध यंही हुआ हो। इंटा-पत्थर बिखड़ा पड़ा था। कंही किसी का गमछा कंही मूढ़ी-कचरी पसरा हुआ था। बांस-बल्ला सब उखड़ गया था। मैदान से सटे मिठाई वाला का जिलेबी,रसगुल्ला छितराया हुआ था। वो हाथ मे झझरी लिए दुकान के सामने डटा हुआ था।सजावट के लिए लगाया गया पताका सब इधर-उधर झूल रहा था।
माइक पे अगले सीन के प्रस्तुति और शांति के साथ नाटक देखने  के लिए गुहार होने लगा।
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पर्दे के पीछे गृहयुद्ध चिड़ा हुआ था।महाराज एकदम से मंच पे आने को तैयार नही थे। चारो श्रवण वेद की जगह तेरी माय... तेरी बेहन की गाली बके जा रहे थे। सैनिक सब मेला कमिटी को भाला भोकने पे बेताब थे। बुड्ढा भील कमर में गमछा बांध भोलन का कॉलर पकड़े खड़े थे।
कोई किसी का सुनने को तैयार नही था। आधा भीड़ छट गया था। महिला दर्शक का कोना खाली पड़ गया था। रह-रह के उ पट्टी और ई पट्टी के लोगों का ललकार सुनाई दे रहा था। समय आने पे एक दुसरे को देख लेने की धमकी से माहौल गरम था।
आखिरकार भोलन चाचा को नाटक के समाप्ति की घोषणा करनी पड़ी।
बांकी के कलाकार तू-तू ,में-में करते घर को विदा हुए।
मेला में सन्नाटा  पसर गया।
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घर आके देखा।माई का पार्थिव शरीर आंख खोले मेरी प्रतीक्षा में थी। मेरी आंखों से आंसू आ गए। मैंने माई का हाथ चुम लिया। छोटकी,सरोज के गले लग फिर से सुबकने लगी। आस पड़ोस में सन्नाटा था। 
आते जाते इक्के दुक्के लोगों की आवाज सुनाई दे रही थी। कोई कह रहा था"ई सब दिलखुसवा के चलते हुआ। कोई कह रहा था मेला में सुरक्षा व्यवस्था उचित तरीके से नहीं था। कोई कह रहा था DM साब को भी 3-4 फाइट लगा है,कल देखना क्या-क्या होता है। 
हम तीनों सहमे हुए घर मे दुबके बैठे थे। 3 बजे रात में सरोज बोली...दिलखुश मेरा यहां रुकना ठीक नही होगा। बाउजी आ गए तो अलग हंगामा होगा। तुम कुछ देर माई के पास रहो छोटकी हमको घर छोड़ देगी। 
हम बोले...सरोज कल क्या होगा?सब तुमको पहचान गए है। तुमरे पिताजी भी देख ही लिए होंगे। बहुत बड़ा घटना होने वाला लगता है।
सरोज हमको भड़ोसा दिल छोटकी के साथ निकल गई। हम डरे सहमे हताश हो माई के छाती पे सर रख रोने लगे
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साढ़े तीन बजे दरवाजा का सांकल खुलने का आवाज आया। छोटकी सरोज को छोड़ आ गई थी और मेरे बगल में बैठी थी।माई के सिरहाने अगरवत्ती जल रहा था। बाबूजी गांजा सोंट आए थे लड़खड़ाते हुए अंदर आए। अंदर का सीन देख बस आंखे फाड़ खड़े रह गए। भक्क से नशा उतर गया। हमरी तरफ देख के बोले" मोहन..अरे मोहन...खा गए ना अपने माई को,अब हमेशा के लिए बेलल्ला होके नाटक खेलते फ़िरो" 
****** #हमरी प्रव्म कहानी भाग 13

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#हमरी प्रेम कहानी भाग 12 #CityEvening

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हमरी प्रेम कहानी भाग 12
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विधिवत शिव की पूजा कर उसे एक बड़े चट्टान पर स्थापित किया गया।कंदमूल का भोग लगा चंदन लेपन किया गया।फूलों से सजा अभिमंत्रित किया गया। युवकों के झुंड ने आनन-फानन में लकड़ी और बांस को जोर मन्दिर का निर्माण किया। सभी जनों में प्रसाद वितरण कर शुभ की कामना की गई। 
नवरोज सारे समय ऊर्जावान और उत्साहित हो सबों का साथ देती रही।
दोपहर में सहभोज का आयोजन हुआ।नवरोज पहली बार इतने लोगों के साथ पंक्ति में बैठ भोजन कर रही थी। भोजन 
करते हुए सुरक्षा और अन्य बातों पे चर्चा जारी था।
एक नवयुवक ने जोश के साथ कहा। भैया हमलोग जान दे देंगे लेकिन अपनी धरती छोड़ किसी की शरण नही लेंगे। अब यही अपना गांव है और हम सब यंही एक साथ जिएंगे मरेंगे।
कुछ अन्य युवकों ने सहमति जताई। 
एक बुजुर्ग ने भी सहमति जताते हुए कहा हम सब मिलके यंही संसाधन विकसित करेंगे।भोलेनाथ अपने साथ है।हम इस गांव का नाम "शिव नगरी"रखेंगे।अगर आप सब की सहमति हो तो मोहन हमारे प्रधान के रूप में हम सबका नेतृत्व करेंगे। किसी भी बाधा से हम सब मिलके निबटेंगे।
सभी लोगों ने एक साथ मोहन को अपना प्रधान चुन लिया।
भोजन की समाप्ति के बाद लोग आराम करने को विदा हुए।
मोहन और नवरोज भी एक पेड़ की छांव में सुस्ताने लगे।
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दूर से पीताम्बर धारण किये दोनों श्रवण और वो पांच लकड़हारे आते दिखाई दिए। मोहन और नवरोज सजग बैठ गए।
जब वो नजदीक आ गए नवरोज अंदर घड़े से शीतल जल ले आई। दोनों आके मोहन को प्रणाम किये और सामने बैठ गए।थोड़ा सुस्ताने के बाद बोलना शुरू किए। 
प्रधान जी। सैनिक की एक टुकड़ी नदी पार उतरे थे। आज सुबह उनसे झड़प हुई । 12 सैनिकों को नवयुवक दल ने मौत के घाट उतार दिया।बचे 9 सैनिक अपने सुरक्षा तंत्र के शिकार हो गए। उनके शवों को ठिकाना लगा दिया गया है।छदयम युद्ध मे नवयुवक दल पारंगत हो गए है। पर ऐसे बहुत दिनों तक सैनिकों को रोक पाना मुश्किल है। सुरक्षा के इंतेजाम और मजबूत करने होने या फिर हम सभी को साथ ले हिमालय के तरफ बढ़ ले। 
मोहन और नवरोज दोनों चिंता में डूब गए। बूढ़े बुजुर्ग,स्त्री युवा और बच्चे मिला कर कुल 200 जन होंगे। कैसे बचा जा सकेगा इस क्रूर तंत्र से। 
आगंतुकों को फलाहार और जल पड़ोस विश्राम का निर्देश दे मोहन और नवरोज बरछी और धनुष उठा छोटी पहाड़ी की ओर बढ़ गए।
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रास्ते मे मोहन ने कहा पहाड़ी के उस पार भीलों की एक बस्ती है ये उचित होगा कि हम उनसे मदद मांगे। वो सदियों से आजाद रहते आये हैं और शिव के उपासक है।शायद हमारी मदद करने को आगे आए।इस जंगल पे सदियों से उनका अधिकार है। ये अलग बात है वो थोड़े क्रूर और लड़ाकू है।पर मुझे लगता है कभी भी मुगलों की सत्ता कुबूल करना नही चाहेंगे।
बात ही बात में वो पहाड़ी के उस पार पहुंच गए।अभी और दो कदम चले ही थे कि सरसराता हुआ एक तीर गर्दन को छूता हुआ चट्टान से आ टकराया। इससे पहले दोनों होश संभालते कुछ काले सायो ने उन्हें घेर लिया।
गले में कौड़ियों की माला,माथे पे पक्षियों का पंख बांधे, कमर से जानवर की छाल लपेटे हाथों में भाला लिए अजीब क्रूरता से वो दोनों को देखने लगे।
एक ने कुछ इशारा किया।एक अन्य आगे बढ़ मोहन और नवरोज के सारे अस्त्र झपट लिया। एक कैदी की तरह उन्हें साथ ले बस्ती की ओर बढ़ने लगे।
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बस्ती में एक बुजुर्ग उसी भेष-भूसा में पेड़ के कटे तने पर बैठा गांजा पीता नजर आया। गांजे की लहर से आंखे लाल और चढ़ी हुई थी। सामने आग पे एक सुअर को पकाया जा रहा था। कुछ अर्धनग्न सी स्त्रियां घास काटने में व्यस्त दिखी। कुछ नवयुवक पेड़ पे चढ़ने उतरने के खेल में मशगूल थे।
दोनों को बुजुर्ग के सामने खड़ा कर सब पीछे हट गए। बुजुर्ग ने खड़खड़ाती आवाज में पूछा कहाँ से आए हो? भील प्रदेश में अजनबियों का प्रवेश निषेध है।क्या उद्देश्य है तुम्हारा?कंही कोई जासूसी तो नही कर रहे थे?
दोनों ने उनका अभिवादन किया।मोहन ने कहना प्रारंभ किया
"महोदय हमारी आपके प्रदेश में आने का कारण आपसे मदद की गुहार है। हम और हमारे भाई बंधु मुगलों से परेशान है। कुछ दिन पूर्व उन्होंने हमारे खेतों -घरों को जला दिया। उन्होंने हमारे गुरुकुल के गुरु की हत्या की। अपने साम्राज्य में  वेद और मंत्रोच्चारण पे पावंदी लगा दी। हमारे शिव मंदिर को तोड़ने की चेष्टा की।लोगों के हत्या का फरमान निकाला।नवरोज की ओर इशारा कर बोला हम दो प्रेमियों को पकड़ लाने का आदेश दिया है।
बुजुर्ग भृकुटि पे बल डाले एक-एक बात सुनता रहा। 
मोहन ने आगे कहा"महोदय हम अपने लोगों के साथ पहाड़ी उसपार जंगल मे शरण लिए है। सूचना मिली है सैनिक हमे ढूंढते फिर रहे। स्त्रियों,बच्चों और बुजुर्गों की रक्षार्थ आपसे मदद मांगने आए है।
बुजुर्ग ने ताव में आकर कहा "तो क्या मुगल नदी पार करने लगे हैं? ये ठीक नही। फिर वो वन्य जीव को मारेंगे।पेड़ काटेंगे।स्त्रियों बच्चों को उठा ले जाएंगे। हमारे लोगों ने आज तक किसी मुगल को नदी पार आने पर जिंदा वापस नही जाने दिया। इस जंगल का उन्हें भान तक नही। अब वो ऐसा करने लगे।आराध्य देव महादेव को मिटाने की चेष्टा कर रहे। "भानुदेव" के रहते उन्होंने फिर से नदी पार किया,उन्हें इसकी सजा मिलेगी। हाँ हम आपकी सुरक्षा में खरे उतरे या न उतरे पर आप शैव है यही काफी है हमारे लिए। शिव अनंत है...इसे मिटाने वाले को मिटना होगा...भद्र आप सकुशल अपने क्षेत्र में निवास करे। इस जंगल मे सदियों से हमारा वंसज हैं पर ये सृष्टिकर्ता की रचना है।हमने इसे कभी अपना नहीं कहा।इसपर हर भू-बासी का समान अधिकार है। आज से आप और आपके लोग हमारे अतिथि भी है और सगे भी। मुगल जंगल मे आए तो वापस नही जाएंगे आपसे वादा है। 
मोहन और नवरोज भावयुक्त हो उसके विशाल हृदय को नमन करने लगे। 
एक भील ने सारे अस्त्र-शस्त्र दोनों को सौंप दिया।मार्ग प्रसस्त करते हुए पहाड़ी के इस पार सकुशल पहुंचा दिया।
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महाराज अपने शयनकक्ष में हुक्के की कश खींचते हुए थोड़े चिंतित दिखते है। सैनिकों की टुकड़ी को जंगल गए 5 दिन हो गए। ना कोई खबर आया ना सैनिक वापस आए। ऐसा क्या है इस जंगल मे?
महाराज एक बार खुद नदी पार जाने की योजना बनाने लगे। राजकुमारी की चिंता अलग खाए जा रही थी। सजा देने को प्राण ब्याकुल हुआ जा रहा था.... राजकुमारी,एक हिन्दू लड़के के साथ चली गई.....नापाक कर गई सल्तनत को....जगहँसाई करवा दी मेरी....नहीं... नहीं... दोनों को जिंदा दफन करूंगा।
मंत्रयों को बुला तत्काल कल सुबह जंगल जाने की तैयारी करने को कहा।
एक बुजुर्ग मंत्री ने कहा...महाराज विहर खतरनाक है...हममें से किसी को उसका भान नहीं... कोई उचित मार्गदशक भी नही....आपका जाना ठीक नही। इस बार हम सैनिकों की संख्या बढ़ा जंगल को भेजते है। शायद कुछ पता चले।
एक पल को महाराज भी सोच में पड़ गए। फिर कहा शायद ये ठीक होगा।पर अब और वक्त बर्बाद नही किया जा सकता।हमे वो दोनों किसी कीमत पे चाहिए। तीन माह बीत गए इसी खोज बीन में। 
सैनिकों से कह दे अगर इस बार वो खाली हाथ आए तो मैं खुद उनका जबह करूंगा। 
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अहले सुबह ही भीलों की एक टुकड़ी के साथ दो श्रवण सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने और अन्य योजनाओं को फलीभूत करने बस्ती छोड़ ढलाव से नीचे जंगल को विदा हुए।
नदी किनारे पहुंच चाक-चौबंद व्यवस्था की। नदी किनारे कीलनुमा लकड़ियों का जाल बिछा दिया। ताकि हाथी-घोड़े के चलने और पैदल सैनिक को रोका जा सके। सूखे खड़ों में समय रहते आग लगाने की व्यवस्था की गई। जगह-जगह नये खड्ढे खोद उसे जल से भर मगरमच्छ छोड़ दिये गए। कंटीले कैक्टस का  दीवार बनया गया। पेड़ों में छिपने की जगह और नुकीले प्रक्षेपास्त्र नियोजित किये गए। झील के पानी मे और जहर डाल उसके किनारे दलदल बनाया गया। तरह-तरह की व्यवस्था को जांचा परखा गया। झील के ऊपर, मार्ग के दोनों और गुलेल धारियों के छुपने की व्यवस्था की गई। अंतिम पड़ाव पे चट्टान से रास्ता रोक अस्त्र-शस्त्र धरियों के लिए मोर्चा बनाया गया।
आस्वस्थ हो जाने के बाद वो ऊपर जाने ही वाले थे कि दूर नदी में हलचल दिखा। तकरीबन 500 डोंगी पानी मे तैरता दिखा।
खतरे को भांप एक भील ने सिंघ से बने एक पाइप को जोर से फूंकना शुरू किया।आवाज पहाड़ों से टकरा गूंज उठा।जंगल मे  भी हलचल शुरू हो गया।
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भीलों की अलग-अलग टुकड़ियां मोर्चे पे आ डटी। बस्ती के नवयुवक गुलेलों के साथ अपने स्थान पे जा छिपे। चारों श्रवण धनुष और बाण ले ऊंचे टीलों पे तैनात हो गए। लकड़हारे योजनानुसार जंगल मे विलीन हो गए। नवरोज और मोहन नंगी तलवारों के साथ बुजुर्ग और बच्चों के बचाव में तैनात हो गए। मशाल दल पेड़ की कोटरों में जा छिपे।
धीरे धीरे डोंगी किनारे लगने लगा। सैनिक उतर ऊंचे ऊंचे घासों के बीच समा गए।
तभी कंही ढोलक  पे थाप पड़ी और कई मशाल हवा में उड़ता हुआ सूखे घासों पे आ गिरा। लहलहा के आग फैलने लगा। मुगल सैनिकों में चिल्ल-पों और हाहाकार मच गया। वो जान बचा के आगे की और दौड़े तो नुकीले कील से उलझ गिरकर जान देने लगे। कुछ सैनिक जो आगे निकले गुलेल की मार से बिलबिलाने लगे। कुछ गड्ढे में गिर मगरमच्छ के द्वारा दबोच लिए गए। फिर भी कई सैनिक इन सबको पर कर पथरीले पथ पे पहुंच गए। तभी दोनों तरफ से पेड़ चरमराहट के साथ उनपे गिरने लगा। सैनिक बुरी तरह घिर गए थे। एकाएक भीलों ने तीर बरसाना शुरू किया।बचे सैनिक भी वंही ढेर हो गए।
जंगल मे खुशी की लहर दौड़ गई। बम बम भोले.....जय शिव शंभु का नारा गूंज उठा।
पहाड़ी से उतर श्रवणों ने सारे लाशों को ठिकाना लगाने का निर्देश दिया। कुछ को मगरमच्छ तो कुछ को दलदल में दफ़्म दिया गया।
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इस पार खड़े कुछ सैनिक जो इस भयावह लड़ाई को आंखों से देखे थे भागते हुए राजधानी पहुंचे। जब महाराज को इस बात का पता चला तो माथा पिट लिए। तुरंत लाव-लश्कर के साथ नदी के तीर पर डेरा डालने का आदेश दिया। एक भारी फौज के साथ वो स्वयं हाथी पर बैठ नदी तट को रवाना हुए।
उधर भीलों और ग्रामीणों का बैठक हो रहा था। महाराज के नदी तीर डेरा डालने की खबर उन्हें मिल चुकी थी। दुबारा सुरक्षा तंत्र को फिर से दुरुस्त करना थोड़ा कठिन था।
श्रवणों के माथे पर बल था और ऐसा प्रतीत हो रहा था वो थकने लगे हैं।
बुजुर्ग भील ने कहा....इतनी जल्दी फिर सब व्यवस्था कर पाना कठिन है। अगर वो भाड़ी संख्या में नदी पार उतरेंगे तो उन्हें रोक पाना भी कठिन होगा।पर हम घुटने नहीं टेकेंगे।अगर भोलेनाथ ने भाग्य में मृत्यु ही लिखा होगा तो लड़ के मरेंगे। 
इस बार मोहन और नवरोज भी सहमे हुए थे।बूढ़े और बच्चों की चिंता उन्हें खाए जा रही थी।
बुजुर्ग ने फिर कहा देखो हम सब मिलके जितना कर सकते है करेंगे। पहले बुजुर्गों और बच्चों को नेपाल की तराई भेजने का प्रबंध करो।
सबने सहमति जताई
वो आगे बोले मुगल हमे मौका देना नही चाहते, वो जान गए है,हम छदयम युध्द में उन्हें नहीं जितने देंगे।इस बार वो अनेक की संख्या में जंगल मे दाखिल होंगे। हार हो या जीत हमे लड़ना होगा।
सबने हुंकार भड़ी।
बुजुर्ग भील ने एक युवक भील को कुछ समझाया।वो तत्क्षण धनुष उठा विदा हो गया। बांकी की तैयारी का जिम्मा दो श्रवणों ने ली। आनन-फानन में सारे लोग अपने अपने काम मे जुट गए।दो श्रवण बूढ़े-बच्चों को ले उत्तर की और रवाना हो गए।
पर्दा खींच जाता है
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दिलखुश पर्दे के पीछे उदास हो चला था। उसने फिर पर्दे के पीछे से झांक कर महिलाओं के भीड़ पे नजर डाली। दिल धक से धड़क उठा। सरोज मंच से ठीक एक फर्लांग की दूरी पे खड़ी दिखी। छोटकी उसके साथ थी। वो भीड़ के आगे आने की जद्दोजहद में थी।
मन आशंकित से हुआ.....छोटकी सरोज के साथ.....माई?...हे भगवान कुछ गड़बड़ तो नही। दिल धार-धार बजने लगा। 
तभी भोलन चाचा अंदर आके मेरा माथा चुम लिए।बोले तुम अमर हो गया रे दिलखुशबा। DM साब खूब प्रशंसा किये है। पूरे नाटक मंडली को बधाई दिए हैं।  बस दो सीन और बचा है। लोग तुमका कभी नही भूल पाएंगे।
मैं बस उसका मुंह ताकता रहा।
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दिलीप कुमार खाँ"अनपढ़" #हमरी प्रेम कहानी भाग 12

#CityEvening

dilip khan anpadh

#हमरी प्रेम कहनी भाग 9 #PranabMukherjee #कहानी

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हमरी प्रेम कहानी भाग 9
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कल जन्माष्टमी का मेला शुरू होने वाला था। भोलन चच्चा का रूप देख मन दुःखी हुआ था। अभी तक सरोज को नाटक देखने का न्योता और पुल के बारे में नहीं बताई थे। मन मे बड़ा उथल पुथल चल रहा था। घर मे एक अजीब सा सन्नाटा था। माँ की हालत बिगड़ी पड़ी थी। बाबूजी का ताश बंद पड़ा था।दलान एकदम से सूना था। गांव के बहुतेरे लोग कुश्ती देखने और मेला की तैयारी देखने मे व्यस्त थे। 
हम आंगन जाके छोटकी से बोले"ए छोटकी....पता नही आगे का होएगा?भोलन चच्चा गेम खेल गए हैं। हमको कुछ ठीक नही लग रहा...देखे से तो एकदम भोले और मददगार दिखते हैं। हमको लगता है कोई बड़ा गुल खिला रहे। 
छोटकी तू जरा माई का खयाल रख आज हम एक बार अपने पुल से उ पट्टी जाने का सोच रहे। 
छोटकी हमरी तरफ देख के बोली....भैया ये जेतना भी नेता भक्ता और प्रतिष्ठित सब को देख रहे हो न सब अंदर से कालिख पुता है। गिरगिट है ई सब। जल्दी जाना और जल्दी आ जाना। बाबूजी डॉक्टर के हिंया से जब तक आएं लौट आना।हम माई के पास हैं तब तक।
हम घाट किनारे भागे। थोड़ी देर में सरोज आती दिखी। हमको देख के हंसी और गले मिलने का इशारा की।
हम उसको वंही रुकने का इशारा कर पम्प घर के तरफ दौड़े।वो आश्चर्य से हमको देख रही थी। कुछ देर में हम उसकी आंख से ओझल हो गए।
वो कुछ समझ पाती तब तक हम दौड़ के चचरी पुल से उ पट्टी पहुंच गए। उसको लगा हम चले गए है सो पानी लेके मुड़ी...हाथ से देकची छूट के गिर गया....पीछे हम हांफते हुए खड़े थे।
पहले वो दो तीन बार आंख मिटमिटाइ...फिर झपट के सीने से लग गई। हमदोनो बस एक दूसरे को महसूसते रहे।हममें से किसी को विश्वास नहीं था कि हमलोग एक दूसरे से गले मिले हुए है। 
हम उसका चेहरा हथेली से ऊपर उठा के बोले...अब हम कभी भी तुमसे मिल सकते है...उसका हाथ खींचते हुए हम उसको पुल दिखाने के लिए ले चल।
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पुल देख के वो दंग रह गई। हमसे बोली ई तुम बनाए हो?हम मुस्कुरा के बोले "तुमरे लिए"।उ मेरा हाथ पकड़ के पुल पे दौड़ गई। पुल के बीच मे पहुंच के हांफते हुए दोनों हाथ उड़ने के अंदाज में खोल के जोर से आवाज दी....हे दुर्गा मैया हमका और दिलखुसवा के कभी अलग नही करना"।हम झट उसके मुंह पे हाथ रखके बोले...अरे.. रे..रे चिल्लाओ नहीं कोई सुन देख लेगा।
इससे पहिले हम कुछ और बोलते वो चूम ली हमको।फिर से हमरा गले लग के बोली"तुम जिनगी भर ऐसा ही रहना"। हम उसको अपने नाटक के बारे में बताए और देखने जरूर आने बोले।
वो बोली बाबूजी अकेले जाने देंगे तब न।
हम बोले तुम अपने सहेली सब के साथ आना। गुलाबो के साथ त आ ही सकती हो।
वो आंख में आंसू भर के बोली"गुलाबो अब नही है दुनिया मे..उका चेचक हुआ था..।
हम सन्नाटे में चले गए। फिर बोले चलो कोई बात नही।वो अच्छी थी भगवान ऊको हमेशा खुश रखेंगे।
इस बार सरोज बोली पर तुम चिंता नही करो हम आएंगे जरूर।बाबूजी को बोलके मासी के घर रुक जाएंगे।पर तुमरा नाटक जरूर देखेंगे। हम खुश हो गए।
वो बोली चलो अभी चलते हैं बहुत देर हो गया। 
हम बोले सुनो ना कल से मेला शुरू हो जाएगा। कल सुबह हम फिर आएंगे तुमरे पास।
वो बोली देखते है। अगर नहीं आ पाए त दोपहर में बाबूजी के साथ मासी घर ही आ जाएंगे।
हम ठीक है बोलके विदा हुए।एक दूसरे को मुड़-मुड़ के देखते हुए पुल के दो विपरीत सिरे के तरफ बढ गए
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अभी पम्प घर के पास पहुंचे ही थे कि नजर एक हुजूम आदमी पे पड़ी जो पुल के तरफ बढ़ रहे थे। हम लपक के पम्प घर के पीछे छिप गए। भीड़ जरा पास आई त सब स्पष्ट हुआ।आगे-आगे मुखिया जी और भोलन चाचा थे। पीछे सरपंच साहब के साथ मोहर बाबू,लोहरा और 8-10 आदमी।  कुछ के हाथ मे फूल का माला था। वो लोग बतियाते आगे बढ़ रहे थे।
पुल के पास पहुंच के मुखिया जी पुल पे चढ़ के हाथ से सबको शांत रहने का इशारा किये। सब चुप हो गए।मुखिया जी बोलना शुरू किए "आज आप सब जो यहां इकट्ठे हुए है तो मैं ये बता दूं कि श्री भोलन जी का यह एक सराहनीय प्रयास रहा जिसे वो पिछले 15 दिन से खून-पसीना एक कर दोनों पट्टी के लोगों के बीच सौहार्द बढ़ाने और उनको जन्माष्टमी जैसे महापर्व का आनंद उठाने के लिए इस पुलिया  का निर्माण किया। उन्होंने इस बात को इसलिए गौण रखा कि इसमें मेला के चंदे का 450 रुपिया इन्होंने खर्च किया और वो नहीं चाहते थे कि काम शुरू होने से पहिले चख-पख हो। अभी तत्काल इस पुल से दोनों पट्टी के लोगों का भला होगा परन्तु मेला के समाप्ति के साथ ही हम भोलन जी को मुखिया फंड से और 1500 रुपिया दे इस पुल को मजबुत और टिकाऊ बनाने का आग्रह करूंगा। इसके साथ ही मोहर बाबू के आभारी है जिन्होंने अपने बगीचे से बांस देकर भोलन जी को इस सपने को साकार करने में मदद किये। लोहरा के कलेजे का दाद देतें हैं जो अपने उपजाऊ खेत के मिट्टी काटने की अनुमति दिए और इस पुल के निर्माता के रूप में दर्ज हुए। मेला के बाद सामूहिक रूप से पंचायत में इनके सराहनीय योगदान के लिए इनको नवाज जाएगा।
मुखिया जी और भोलन चाचा कुटिल मुस्कान से एक दूसरे को देखे।
बांकी सब जिंदाबाद का नारा लगाया और फूल का माला मुखिया जी और भोलन को पहिना हाथ से कुछ इशारा किया। "बेखबर"अखबार वाले का एक आदमी हाथ मे कैमरा लेके आगे बढ़ा.... खचक... खचक के साथ लाइट चमका। सब लोग नारा लगाते पुल से उ पट्टी के तरफ बढ़ गए।
मेरे कलेजे से खून का कुछ बूंद आंखों में तैर गया।
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शाम को भोलन चाचा मीटिंग रखे।हमको भी बुलाएं। ठीक 4 बजे वो मीटिंग में उपस्थित हुए।बड़े तेजस्वी स्वर में बोले। इस बार का मेला यादगार रहेगा। एक तो बेहतरीन नाटक के लिए दूसरा हम जो पुल से उ पट्टी को जोड़ दिए त भाड़ी भीड़ होगा मेला देखने को।बीच मे कनखी से हमको देख रहे थे। हम चुपचाप सब सुनते रहे। उन्होंने कहा देखो ई नाटक देखने DM साब भी स्पेसल गेस्ट में आ रहे।कोई गड़बड़ नहीं हो।पाठ सबको याद हो गया है ना।प्रोमटर सिर्फ ये इशारा करेगा अब किसको कब बोलना है। ये नाटक मेरे इज्जत पे आ गया है। ऐसा नाटक पिछले 8-10 साल में कभी नही हुआ।सब सहमति में सिर हिलाया
छेदन पूछ लिया।भैया ई पुल आप कब बनवाएं।हमलोगों को बताएं भी नही। हम सब मदद करते त और टिकाऊ पुल बनता।
भोलान चाचा मुस्कुरा के बोले।सामाजिक कार्य का ढिंढोरा नहीं पीटा जाता। मेला के बाद उसपे भी सोचेंगे..क्या दिलखुश.??
मन मे आया उसके मुंह मे जूता घुसेड़ दूँ...बस मुस्कुरा के हाँ बोल दिया।
मीटिंग समाप्त हुआ।भोलन चाचा रुकने का इशारा कर  अंदर गए। हम द्रोपदी सा खड़े रहे।वो वापस आए त कुर्ता के जेबी से 50 रुपिया निकाल के हमको दिए...बोले ई तुमरा है....बांकी 450 में से 150 रुपिया मुखिया को भी देना है।मेरा पीठ थपथपा के विदा किये। हम बली के बकडे की तरह चल दिये जिसे कल जबह होना था।
पर मन ही मन कुछ संकल्प लिए जा रहे थे।शायद ....बदला...नहीं नहीं ऐसे लोगों का भंडाफोड़...ना..नाटक का सत्यानाश....छोड़ेंगे नहीं किसी को
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रात में नींद नही आया। सुबह 4 बजे उठके ही घाट तरफ बढ़ लिए। साथ एक झोला था। वहां पहुंच के पहले मन मे आया कि पुल को बीच से तोड़ दे।फिर सरोज का चेहरा घूम गया नजर में। तुरंत झोला से सामान निकाल कुछ लिखने लगे। जब पूरा हुआ त पुल के बीच बढ़ गए। वहां जाकर बोर्ड लगा दिया""मिलन घाट" पे आपका स्वागत है"हम रहे न रहे।
रोशनी फैलने से पहले भाग के घर आए और सो गए।
9 बजे नींद खुली।
दातुन लेके बाहर निकले त बच्चा लोग का झुंड सुबह से ही मेला देखने के अफरा-तफरी में लगा मिला। हम दातुन करते हुए लोगों के आना-जाना देख रहे थे। एक नवयुवक की टोली बतियाते आ रहा था।ई बार मजा आ जाएगा।उ पट्टी के लोग सब भी जमा होंगे। एक से एक लड़की और ठेंगवन सब। धमाल होगा।
हम बस सबको सुन रहे थे। एक लड़का बोला"अरे उ घाट का नाम पता है"मिलन घाट है आजे सुबह देखे।दूसरा बोला मुखिया जी अपने छिनार है और का नाम  रखते?तीसरा मजाक किया "अपन उ पट्टी वाली मछुआरिन का नाम से रख देते त मजे आ जाता....सब हंस के आगे बढ़ गया।
हमे माई की चिंता सता रही थी।दवा का कोई असर नही था।अंदर जाके उनको दूध दिया।आज वो दूध भी ना पी सकी। छोटकी सिरहाने बैठ माथा दावा रही थी। बाबूजी के ऊपर इलाज का 1200 रुपये का कर्ज हो गया था वो अपने कमरे में गुमसुम बिछावन पे लेटे थे।
हम छोटकी को 50 रुपिया देके सारी बात बताएं।वो बोली सब छिछोड़ा है देखना मेले के बाद क्या क्या होता है? पर अब इस सबको छोड़ना भी नही है। आने दो मौका सबको सबक सिखाती हूँ। वो उठके रसोई चली गई। हम माई के सिहराने ही बैठ कर अपने नाटक का रोल पढ़ने लगे।
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मेले का पहला दिन था।काफी गहमा-गहमी थी गांव में। 3 बजके शाम के बाद लोगों की आवा-जाही काफी बढ़ गया था। हम चाय पिये और सोचे चल के दुर्गा मंदिर में प्रणाम कर आए। घर से निकल के मंदिर की तरफ बढ़े। अभी 500 मीटर भी नही गए होंगे कि एक जानी-पहचानी आवाज कानो से लगी। हमरी नजर आवाज को ढूंढने लगी। 2-3 लड़की आगे झुंड बना के चल रही थी। हम जरा कदम तेज कर नजदीक पहुंचे। देख के दंग रह गए....उ सरोज थी..हमरी सरोज हमरे सामने चली जा रही थी...पहले लगा दौड़ के गले लगा लें....फिर चुप-चुप पीछे चलते रहे। दुर्गा मंदिर में जाके हम माथा टेके और अंदर जाके स्तुति करने लगे। बीच-बीच मे आंख खोल के मुआयना भी कर रहे थे। तभी लगा जैसे मंदिर का रौनक़ बढ़ गया। नीले सलवार सूट में सरोज अंदर आई।खुले बाल,दो लट पीछे की तरफ चोटी जैसा गूंथा हुआ। हाथ मे मेहंदी। वो बिना देखे हमरे बगल में हाथ जोड़ खड़ी हो गई। हम सारा स्तुति भूल गए। जैसे ही वो  वंदना खतम की हम केहुनी से मार के बोले...का..का..बोली माता महारानी से...वो आंख चौड़ा कर हमको देखने लगी। हम धीरे से उसको बाहर अकेले मिलने बोले....वो पैर से हमरा अंगूठा दबा के कुछ बोली। हम उधर देखे त सब लड़की हमरे तरफ देख रही थी...हम दुर्गा मैया को 5-6 बार प्रणाम करते  हुए बाहर निकल गए। मंदिर परिसर से बाहर आके इन्तेजार करने लगे।
...लगभग 20 मिनट बाद सरोज अकेले आती दिखी। हम एक तरफ टहल दिए....उ रास्ता गांव के बाहर वाले तालाब पे निकलता था। वो पीछे आ रही थी।
जब गांव का रोड खतम हुआ त हम पगडंडी पे बढ़ने लगे।वो एकबार रुकी..फिर धीरे से बोली...सुनो न हम कहाँ जा रहे?
हम बोले थोड़ा दूर और एक बगीचा है।वंही
वो डरती हुई पर अभिमंत्रित मेरे पीछे आती रही। जब हम बगीचे में पहुंचे सन्नाटा था। आम और कनेर ऐसे उलझ गए थे कि धूप भी सही से जमीन को नहीं मिलता था। हम एक जगह पालथी मार के बैठ गए।वो पास आके खड़ी हो गई। हम बस एकटक उसे देख रहे थे
एकाएक हम पूछे...अच्छा सरोज...कल को अगर हम नहीं रहे त क्या करोगी...वो झट घुटने के बल बैठ मेरे मुंह पे हाथ रख दी।
हम बच्चे की तरह उससे लिपट गए। वो मेरा माथा सहला के बोली...तुम हमेशा उल्टा-सीधा बात काहे करता है? हम केतना जिद करके तुमरे पास आ गए ना। हम उसके गोद मे माथा रख रोने लगे। सरोज ई पुल हमरे जान का दुश्मन बन गया है। बहुत आदमी हमरे पीछे पड़ गया है।3 महीना से किताब-कॉपी नहीं छूए है। 7 महीना और बचा है परीक्षा को इस बार पक्का फैल कर जाएंगे।
वो बोली तुम एतना जुनूनी हो कैसे फैल कर जाओगे? सब ठीक होगा। 
हम उसको अपना घर का हाल बताए। फिर थोड़ा जिद करके बोले कल एक बार आओ न हमरे घर तरफ तुमको माई और छोटकी से मिलाना है।
वो हंस के बोली शादी से पहिले बहु चौखट नहीं लांघती। 
हम बोले त आज ही शादी कर लो ना... वो मेरा मुँह देखने लगी। हम फिर जोर देकर बोले,आज कच्चा वाला शादी कर लेते हैं फिर बाद में पक्का वाला शादी कर लेंगे। उसकी चुप्पी मेरे लिए सहमति बन गई
हम झटपट कुछ कनेर का फूल तोड़ लाए,घास में गूंथकर माला बना लिए। एगो गोल पत्थर को बीच मे रखके भगवान बनाए। थोड़ा सुखा पत्ता और घास जमा कर आग जला दिए।जैसे ही उसका हाथ पकड़ने आगे बढ़े वो थोड़ा सहम के बोली...ई सब मत करो...दोष लिखता है भगवान,
हम बोले अब कितना लिखेगा?बोलके उसका हाथ पकड़े और लगे फेरा लगाने।माटी से उसका सिंदूर किये और 7 जनम तक साथ रहने का वादा।
उसका हाथ थामे वापस गांव के तरफ चल दिये
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#हमरी प्रेम कहानी भाग 6 #findingyourself

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हमरी प्रेम कहानी भाग 6
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जन्माष्टमी का मेला हमरे गांव का सालों से मशहूर था। बहुत सारा प्रतिमा और घमसान मेला लगता था। 3 दिन के इस आयोजन में हर दिन लोगों के मनोरंजन के लिए अलग अलग प्रोग्राम रखा जाता था। भजन-कीर्तन, लाउडस्पीकर का   शोर,मौत का कुआं,कठ झूला,मिठाई की तरह-तरह की दुकान,श्रृंगार की दुकान,जादूगरी का खेल, तिलिस्म का खेल,कुश्ती का आयोजन होता था। लोगों का हुजूम  दूसरे गांव से इस मेले को देखे पहुंचते थे। क्या कहे अद्वितीय नजारा होता थाI 
ई मेला में अलग-अलग वय के लोग अपने अपने झुंड में मेले का लुत्फ उठाने पहुचते थे। लोग अपन-अपन हिसाब से खरीददारी करते थे। किसी श्रृंगार की दुकान पे किसी महिला का नोक-झोंक चल रहा होता था त कंही कम पैसा ग्राहक के लौटाने के एवज में दुकानदार की शिकायत मेला कमिटी से हो रही होती थी। बीच-बीच मे लाउडस्पीकर पे किसी का बच्चा के खो जाने और उसे मंच पर आके ले जाने की घोषणा हो रही होती थी। चिल्ल-पों ई कदर मचा होता था कि पास खड़ा आदमी का बोल रहा है उहो न सुनई देता था। 
मेले का एगो और खासियत था। इ मेले के बहाने केतना आशिक अपने प्रेयसी को देख,आर मिल पाते थे। नशेड़ियों को लगभग नशे की छूट मिल जाती थी। गिरहकट अपनी विद्या आजमा लेते थे। ठग अपने इरादे बुलंद कर लेते थे। और त और कई नई प्रेमकथा की नींव भी इस मेले के दौरान जम जाती थी।
तरह-तरह के फ्रॉक,सलवार-शूट, साड़ी में कृत्रिम श्रृंगार से लदी लड़की-स्त्रियां। नये-नये शर्ट-पेंट में नौजवान, नयी धोती-कुर्ता और गमछे में बुजुर्ग। पैसा-रुतवा-सुंदरता और सजावट का अजीब संगम होता था।
मेले के अद्भुत आनंद को हर कोई अपने जेहन में कैद कर लेना चाहता था। किसे परवाह की बारिश के कारण कंही कीचड़ है,पसीने की बू आ रही या इत्र मेहक रहा है। बस इस तीन दिन को जी लेना था।
इस बार के मेले में " प्रेम-पथिक" एक नाटक का आयोजन किया गया था। हमको इसमें प्रेमी का रोल मिला। सुख-दुख,मिलन-बिछड़न और अंत मे प्रेम करने की सजा बड़ा उम्दा किरदार था। एगो मुसलमान लड़की से हिन्दू लड़का का प्रेम होना फिर समाज मे पंचायत होना,धर्म परिवर्तन का जोर और अंत मे धोखा और सजा दिया जाना। भोलन चाचा हमको हमरा स्क्रीप्ट पकड़ा के बोले"बेटा तुमका ई रोल अमर बना देगा गांव में"। हमको ऐसा लगा कि हमर फ्यूचर बता रहे। स्क्रीप्ट को खूब रट्टा मारे।रोज शाम को रेहलसल करते।कउनो कमी होती त पुरजोर मेहनत कर उसको सुधारते।पर तबहियो दिल धधकते रहता था।कैसे मंच पे एतना भीड़ के सामने इसको निभाएंगे? कुछ गड़बड़ हुआ त सब किस्सा और मजाक उड़ाएगा। पर अपन प्रेम कहानी समझ मजबूत इरादे से भिड़ गए नाटक के तैयारी में।
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रिहलसल का 10वां दिन था। भोलन चाचा बिदके हुए थे..... अबे तुमरा में सुधार होगा कि नहीं..... ई बार-बार नौरोज की जगह सरोज काहे बोल जाते हो बे....नही संभल रहा त बोलो अभियो टाइम है....किसी दूसरे को दे दें ई रोल.....मजाक बना दिये हो।
हम बोले नहीं चच्चा उ मुसलमान नाम है ना त जीभ फिसल जाता है। बांकी त एकदम सहिये कर रहे।इसको भी सुधार लेंगे।
भोलन चाचा बोले मात्र 4 दिन बचा है मंच पे उतरने को यही चलता रहा त ठीक नहीं होगा।करो फिर से रियाज....
हम डायलॉग बोले" देखो नौरोज,सांस चली जाएगी, ये दुनियाँ नष्ट हो जाएगी पर मेरी सांसे तुम्हारे लिए होगी।ये दिल तुम्हारे लिए धड़केगा। मैं रूह में तब्दील होकर भी बस तुम्हे ही चाहूंगा......अब तो मेरा भड़ोसा करो....चलो मेरे साथ इस दुनियां से दूर....इस शहर से दूर....ये समाज मेरा तुम्हारा नहीं है.....ये धड़कनों को नही सुन सकते.....जिंदा लाश हैं ये सब......बस जात-धर्म और नफरत में जीने वाले ये जिंदा लाश है....अगर हमें साथ जीना है तो इन सबसे दूर जाना होगा.....देखो,मत सोचो.... कौन अपना है....कौन पराया....मैं हूँ ना तुम्हारे साथ..... आओ मेरा हाथ थाम लो....बस चल चलो.....इससे पहले की देर हो जाए। इतना बोलके हम सचमुच घुटने के बल बैठ के रो दिए....सचमुच का आंसू बहने लगा।
चच्चा ताली बजाकर अपने कुर्सी से उठे....वाह बेटा.... यही इमोशन हम ढूंढ रहे थे तुममें.....तुम बेमिशाल साबित होंगे। हम उनका गले लग गए पर रो अब भी रहे थे।
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हम सोच लिए थे सरकारी पुल बने-ना -बने हम अपने सरोज के लिए पुल बनाएंगे। आज सुबह जब घाट किनारे गए त एगो मल्लाह से पूछे......का हो इसमें सब दिन एतना ही पानी रहता है घटबो-बढ़बो करता है। 
मल्लाह बोला ना मालिक बरसात में पानी जरा बढ़ता है पर पानी इहे रफ्तार से बहता रहता है।
मन में संतोष हुआ
हम फिर पूछे...सब जगह एतना ही गहरा है ई धारा की पानी कम भी है कंही?
मल्लाह बोला....उ जे सरकारी पम्प लगा है न जहां, उससे 10 फिट आगे नाव नहीं चलता।हुआँ पानी कम है।मिट्टी जम गया है ना। अब कोसिकी मैया हियों से रास्ता बदल लेगी कुछ दिन में। देखे नही है मालिक हुआँ से धारा पश्चिम के तरफ मुड़ जाता है। कुछ दिन में उ सब सुख के जमीन दिखने लगेगा।
मने मन दुआ दिए उसको उठ के चल दिये उ जगह का मुआयना करने।
हुआँ पहुंच के बांस का एगो करची तोड़े और ढुक गए पानी मे।
पहले करची से नापते थे फिर पैर आगे बढ़ाते थे।  देखते-देखते धारा के बीचो-बीच पहुंच गए पर पानी कमर से ऊपर नहीं चढ़ा। मारे खुशी के मन मयूरा नाचने लगा। कुछ और आगे बढ़े त दिल बाग-बाग हो गया एक तिहाई धारा पार कर लिए पर पानी उतना ही था। आगे जब करची डाले त एकदम से गड्ढा बुझाया। समझ गए कि बस इतना दूर ही डूबने लायक पानी है। मन मे कुछ ठान वहां से खुशी-खुशी वापस किनारे आ गए। बाहर आके बुदबुदाए अब त पुल बना के ही दम लेंगे। तेज कदम से घर के लिए चल दिये।
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आज रात में निने नहीं आया। कल से जो करना था उसका ताना-बाना दिमाग मे घूम रहा था। सुबह,सबेरे उठे  कुल्हाड़ी,कुदाल और डोरी लेके निकल गए घाट किनारे। पम्प के तरफ एकदम वीरान रहता था। मोहर बाबू का बांस का बगीचा था। सब कहते थे पम्प हाउस में काम करने वाले क्लर्क जो मरे थे उ भूत बनके उसी बंसबिट्टी में झूलते रहते थे। एक बार एक बार एगो घास काटने वाली को एतना पटके की प्राण निकल गया। उ दुपरिया और सांझ को खिखिया-खिखिया ई बांस से उ बांस झूलते रहता है। पहले त डर लगा फिर सोचे हम दोपहर और सांझ को उनको दिक्कत नही देंगे त उ भी हमका कुछ नही करेंगे। 
घाट किनारे पहुंच के खल्ली से 20 गो बांस में टिक लगाए।  सोच लिए थे खूंटा गार-गार के चचरी वाला पुल बनाएंगे।
अभी पहिला बांस पे चोट किये ही थे कुल्हाड़ी से की दू गो उल्लू खिखियाते उड़ा। हम सरपट जमीन पे लोट गए। हमको लगा क्लर्क का भूत को जगा दिए हम। आंख मूंद के भूत का क्रियाकलाप समझने की चेष्टा करने लगे।जब एगो आंख खोल के देखे त समझ मे आया उल्लू अपन बच्चा सबको बचाने का चेष्टा कर रहा।
हम फिर से बांस काटने लगे। बांस काट त लिए पर झोखर से उसको निकलना हमरे बस में नही लग रहा था। लगे जोर-आजमाइश करने। फिर दिमाग मे आया इसके सब करची को काट देते है अपने गिर जाएगा। किसी तरह एक बांस को काट के बाहर निकाल सके।पर ई एहसास हो गया कि ई अकेले के बस का रोग नही है। सो थक के बैठ के दिमाग दौड़ाने लगे।
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मन में एक बिचार आया ये पुल बनाना अकेले बूते की चीज नही।क्यों न एक सहयोगी ढूंढा जाए। बिचार दिमाग मे ले मै नदी किनारे टहलने लगा। एकाएक नजर उस लड़के (मंसुखवा)पर पड़ी जिसके केला के थाम वाले नाव पे हम ई पट्टी आए रहे।
हम जोड़ से आवाज दिए.....ओ रे मंसुखवा....अरे जरा एने आओ....वो फिर कोई गीत गा रहा था....बिना सुने अपना काम करता रहा
हम फिर आवाज दिए.....ओ ...रे....मनसुख.... अरे ऐने देखो
ई बार उ हमरे तरफ देखा....हुन झट इधर आने का इशारा किये।उ बोला का मालिक फिर उ पट्टी जाय के है का। हम नहीं बोलके आने का इशारा किये
वो लग्गा मार के हमरी तरफ बढ़ा
किनारे आ के बोल....का हुआ मालिक?
हम बोले सुनो न।हमको ईगो काम है तुमरे से.... उ हमरा चेहरा देखने लगा।
हम बोले।हमको एगो चचरी पुल बनाना है ई पट्टी से उ पट्टी तक। उधर का बच्चा सब स्कूल नहीं जा पाता है। हाट-बाजार भी आने में घंटो लगता है....हमारी इच्छा है थोड़ा सामाजिक कार्य करने का......देखो हमरी मदद करोगे त रोज हम तुमको कामनक 5 रुपिया देँगे।
उ पहिले सोच में डूबा....फिर बोला काम का है?
हम बोले 10-15 बांस काटके उसका पुल बनाना है।
उ थोड़ा आश्चर्य से बोला.....इससे का होगा? 
ह7म बोले अरे तुका मछली मारे और आने जाने में सुविधा होगा। लोग आ सकेंगे त दुआ देंगे। उ पट्टी का विकाश होगा।
उ बोला कठिन है मालिक.....बीच मे गड्ढा बहुत है बांस टिकेगा।
हम भड़ोसा दिलाए।ई पे कौन सा गाड़ी चलाना है।पैदल आने जाने का रास्ता होगा।सबका भला होगा।
उ मान गया।
हमको लगा उ मेरा सबसे अच्छा दोस्त बनेगा।
हम झट बोले एगो काम और करेगा।उ जे सरोज है ना उका एगो न्योता दे देना की हम पुल बना रहे है। सब अच्छा होगा। ई बार जन्माष्टमी देखने उ पल से आ सकेगी और ई बार हमहू नाटक में रोल कर रहे सो देखने जरूर आए।
मनसुख हां बोलके जाने को हुआ।हम बोले काल से हमलोग 6 बजके भोर में यंही मिलेंगे। रोज 2 घंटा साथ मे काम करेंगे। उ "जी" मालिक बोलके विदा हो गया
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आज हम घर आके दशरथ मांझी का जीवन चरित उल्टा के पढ़ने लगे।कैसे एक आदमी अपन प्यार के खातिर पहाड़ ढाह दिया। पूरा जीवन अपने प्रेमिका के सौंप दिया और अपने बुलंद इरादे से सबका द्वार खोल दिया।  अमर प्रेमी के इस घटना को पढ़ के दिल लबलबा के भर गया। हम बनूंगा दूसरा दशरथ मांझी। हम बनाऊंगा पुल अपने सरोज के लिए। हमरा नाम लिया जाएगा सबके द्वारा। हमरा प्रेम अमर होगा। पढ़ते पढ़ते आंख लग गई।
आंख खुली त छोटकी चाय लेके खड़ी थी। बोली का-का बुदबुदा रहे थे निन में....कहाँ जा रहे थे सरोज से मिलने....रो काहे रहे थे ?
हम सकपका गए। पर अब उ हमरी दोस्त बन गई थी सो सब बात उका बता दिए।
उ बोली भैया...ई बहुते कठिन काम होगा....लोग भी पता नही का-का बोलेंगे। बात खुल गई त हंगामा होगा।
हम उका ढाढस बंधा के बोले....देख छोटकी इससे कुछ बूरा त होना नहीं है। अगर कोई बोलेगा त हम भी बोल देंगे समाज के भलाई के लिए कर रहे। अगर ज्यादा बात बढ़ी त पुल उजाड़ देंगे...हमहू त देखे फिर ककरा औकात है  ई सब करेका। ले तू भी ई किताब पढ़ लेना।देखना दुनिया मे कैसे कैसे लोग हुए है जो दुनिया बदल देते है। मांझी वाली किताब उसके हाथ मे पकड़ा दिए।
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हमरे पास चार दिन बचा था। पुल भी बनाना रहा और रिहलसल भी पूरा करना था। आज जब रिहलसल के लिए पहुंचे त देह-हाथ टूट रहा था। बांस काटने और ढोने से कंधा दरद कर रहा था। पर मने-मन खुश थे।हमरी सरोज हमरा नाटक देख पाएगी। उ आज तक जन्माष्टमी का कउनो प्रोग्राम रात में नाही दिकह पाई थी। परिवार वाले लोग शाम ढलते-ढलते उ पट्टी निकल लेते थे। 
हम सिन का प्रैक्टिस करने लगे......एक पेड़ के नीचे उदास बैठे हम कोयल के कूकने पर रोते हुए गीत गा रहे थे.........
ना है संग मुरली मोरी
ना कोई संदेश रे
हिया में हिलकोर होत है मोरा
जाऊं कउनो देश रे.....
प्रीत की राह निहारूँ मैं तो
कौन धरु मैं भेष रे
तोरे कुक से, हुक उठे है मन मे
का ही बचा मोरे शेष रे......

......नायक रोते हुए चहलकदमी करता है। इतने में एक तक्षक उसको डस लेता है। वो भूमि पे गिरकर फिर गाता है

सांस की आस रही अब नाही
ना मन में,कोई क्लेश रे
बाट निहारूँ जोगी बनके
चंद मिनट अब शेष रे
..........धीरे -धीरे आंखे बंद करने लगता है। इतने में एक योगी का प्रवेश होता है। हाथ मे कमंडल,जटाजूट,बड़े बड़े कुंडल, ललाट पे चंदन और भगवा वस्त्र धारण किये। उसकी नजर भूमि पर परे नायक पर पड़ती है और वो तत्क्षण सब भांपते हुए कमंडल से जल हाथ मे ले मंत्र बुदबुदाता है......
बिछु,काटे,सांप काटे
काटे कोई तक्षक
इस दुनियां में सबके मालिक
ईश्वर है बस रक्षक
तू विष अपना लेजा वापस
क्यों ही बना है भक्षक
............पेड़ की कोटर से वही विशाल सांप,धीरे-धीरे रेंगता हुआ आता है और अपने काटे विष को फिर से वापस खींचने लगता है.... #हमरी प्रेम कहानी भाग 6

#findingyourself

dilip khan anpadh

#हमरी प्रेम कहानी भाग 3 #ganesha

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हमरी प्रेम कहानी भाग 3
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शाम को झटपट नदी किनारे निकल लिए।आज सोच लिए थे उका नाम भी पूछ लेंगे। उ ठीक टाइम पे पानी भरे आ गई। हम तनिक इधर-उधर देख के हाथ हिलाए। कउनो जबाब नहीं मिला। फिर वही कांड किये एगो ढेला उठा उसके तरफ फेकें।
उधर से चाँद सा मुखरा उठा और उ हमरी तरफ देख के हाथ से "क्या" में इशारा की।
हम आश्वस्त होके झट से पूछ लिए।अरे....तुमरा नाम क्या है?
आवाज आई....सरोज। फिर उधर से प्रश्न....तुम का कर रहे हो घाट पे....?
हम सकपका के बोल दिए "बस तुमका देखने आए थे
वो झेंप गई। फिर बोली देख लिए ना। अब का है?
हम हाथ से दिल का फोटो बना उका दिखाए। उ पहिले आजू-बाजू देखने लगी फिर झट से चुम्मी का इशारा कर दी।
सच कहे, हम एकदम से धड़ाम हो गए। फिर होश संभाला के अपन छाती पे हाथ रख धड़कन का इशारा किये। ई बार उसकी सहेली दूसरी तरफ देखने लगी।
हमरा प्रेम का गाड़ी चल पड़ा। दू किनारे रह कर भी आत्मा जुड़ने लगा। हम दोनों को शायद पहिला प्रेम का एहसास मिला था। दूरे दूर लेकिन एक साथ धड़कने लगे हमलोग
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महीना दू महीना हमदोनो का प्रेम ऐसे ही चला। नजे हम उ पट्टी  जा पाते थे ना उ कबहु ई पट्टी आई। लेकिन प्रेम का गाछ फलने फूलने लगा था। 
एक दिन हम सोचे काहे नही चिट्टी लिख के उका अपना सारा हाल बताएं। पर साधारण चिट्टी भी क्या चिट्ठी? सो अंगूठा ब्लेड से चीड़ के खून बहाए और लिख दिए चिट्ठी....
हमरी जान से प्यारी
सरोज (लाडो)
चरण वंदन
का कहे तुमरे बिन कैसे कटता है दिन रात। एक एक पल साल जैसा लगता है। ससुरी हमको तैरना नहीं आता नहीं त रोज हेल के तुमसे मिलने आ जाते। नाव वाले सब का भड़ोसा नही, ना समय पे कोई मिलता है। आजकल त उ पट्टी जाने का भी 6 टका लेने लगा है। तुमरा बाबूजी से डर लगता है। उनका मूंछ यमराज जैसा है ऊपर से सुने गुंडा सब के साथ उठते-बैठते है। हम गुरुजी परिवार से हैं। आज तक चकुओं नही देखे हैं। कभी अगर उनके नजर में आ गए त उ त सीधे हमको भट्ठी में फेंकवा देंगे। इधर लइका सब भी छिछोड़ा है। सब से नजर बचा के तुमको देखने घाट वे आते हैं। एको लड़का के नजर में आ गए त पूरा गांव में ढिंढोरा पीट देगा। हमर बाबूजी भी कम चंडाल नही है।उनका पता चल गया त MSc मैथमेटिक्स करके बेरोजगार रहे का सब भड़ास हमरे पे निकाल देंगे। उनको हमसे बहुते उम्मीद है। inter का पहिला साल है और उ चाहते हैं कि हम फर्स्ट क्लास होए। 
जानती हो हम किताब खोलते हैं त हमको कुछो बुझाता ही नही। बस पीठ पर उसर रगड़ते तुम्ही दिखती हो। तुमरा हाथ सब कितना गोरा-गोरा है। कल हमहू एक बाल्टी उसर मिट्टी किनारे से उठा लाए है। आज एकबार मुँह पे रगड़े भी। भक्क-भक्क साफ हो गया। बहुते कमाल का चीज है ई।
आजकल नीनो (नींद) नही आता है। चाँद को देखते है त तुमरे चेहरा जैसा गोल मटोल बुझाता है।
तुम कितना सुनदर हो न,प्राण दे देंगे पर तुमरे साथ ही जियेंगे।
अब हम झुंड में घाटो पे जाना छोड़ दिये है। सब लइका सब पापी है।कुछो बोलता है उल्टा सीधा त खून खौल जाता है। कल त मन मे बिचार आया था कि लुखड़ा को जहर दे देंगे।
अब से ना,घाट पे आने का टाइम थोड़ा बदल लो। 10 बजे के बाद आओ तब सबे चला जाता है नहा के। शाम को भी न 3-बजे तक आ जाओ काहे की 5 बजके के बाद गांव के लोग सब टट्टी फिरे उधरे जाता है। टट्टी से ज्यादा राजनीति करता है उधर बैठ के।
ई छोटा पन्ना में दिल का सबे बात नही लिख सकते हैं। पहिला प्रेम पत्र है। अपन खून से लिखे हैं। बहुते दरद किया अंगूठा चिड़े में। 
आज गणपत अपन नाव से उ पट्टी जा रहा त हम उसको ई चिट्टी दे देंगे। पढ़ के फाड़ देना।किसी के हाथ लग गया त बबाल हो जाएगा। अब जब भी गणपत उ पट्टी जाएगा हम तुमको रेगुलर चिट्टी लिखेंगे। ई अपने बटेदार का बेटा है।कोउ दिक्कत नही, भड़ोसा कर सकती हो। हमरा से कितना बार उधार लिया है गांजा पिये के लिए।
देखो तुम जिनगी भर अपना दया दृष्टि हमरे पे बनाए रखना। अगर पढ़-लिख के सरकारी नौकरी हो गया ना त स्वस्थ और खुशहाल परिवार बसाएंगे। 5-6 बाल बच्चा सहित खूब शान से जिएंगे। कभी कभी हम सोचते हैं कि जब तुम साड़ी पहनोगी न त एकदम दुर्गा मैय्या जैसी दिखोगी। बहुते अच्छा जिनगी बिताएंगे हमलोग।
चलो आज ही केतना बात लिख दे। तुमको प्रणाम लिखते हैं और बहुते प्यार। 

तुमरा हीरो
दिलखुश 
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घाट पे नजर गणपत को ढूंढने लगी। 10 मिनट बाद गणपत लग्गा से नाव ठेलते हुए किनारे लगा। हम झट से 5 रुपैया और खूब टाइट पैक किया हुआ चिट्टी (होमियोपैथ के दवाई के एगो छोटका डिब्बा में) उका पकड़ा दिए। फिर एकदम से एहतियात के तौर पे बोले"देख गणपत तुम हमरे उमर का है। तोरा बाबूजी 15 साल से हमर बटेदार है और हम कितनी बार तुमको पैसा दिए हैं। ई डब्बा भोगिन्दर जी के बेटी का दवाई है। किसी के हाथ मे मत दे देना। उ सरोज है ना उनकी छोटी बेटी बस उसको ही देना। अगर उ आज नही मिले त जब मिले देना बस उसी के हाथ
गणपत बोला"आप टेंशन काहे लेते हैं मालिक,हम बुड़बक थोड़े हूँ किसी को पकड़ा देंगे। जब इतना गुप्त दवाई है त उ छोटकी मालकिन के ही पकड़ाएंगे। आज नहियो भेटाइ त हम त रोज ई पट्टी, उ पट्टी आते जाते रहते है माछ बेचे,जब भेटाएगी उका ही देंगे। हम मन ही मन उसके बफादारी से खुश हुए।
वो लग्गा ठेल नाव आगे बढ़ाया। नाव हमशे जितनी दूर जा रहा था हमरा धड़कन उतना तेज हुआ जा रहा था। 10 मिनट में गणपत उ पट्टी लग गया,फिर नाव से मछरी का देगची कपार पे रख गांव के तरफ बढ़ गया।
हम कुछ देर मौन हो हुएं खड़े रहे फिर आशंका और खुशी दोनों समेट घर को वापस चल दिये।
अभी मन्दिर स्थान पहुंचे ही थे कि लहटन चच्चा भेटा गए। हम शिष्टाचार बस बोले"प्रणाम चा"
लहटन चा-का रे बालक,पढ़ाई लिखाई चल रहा है न। बहुते खराब स्थिति हुआ जा रहा शिक्षा दीक्षा का। आज का पेपर पढ़े हो। उ पट्टी के बच्चों में शिक्षा दर केतना कम है। एको स्कूल नहीं है। लइकन सब त ई पट्टी भी स्कूल आ जाता है पर लईकी सब 4-5 क्लास के बाद नहीं पढ़ पाती। ई कोसिकी पे एगो पुल बनाने का योजना को मंजूरी मिला है। ताकि उ पट्टी के सब बच्चा लोग शिक्षा से लाभान्वित हो।
हमरा दिमाग "पुल के योजना के मंजूरी पर चिपक गया"
हड़बड़ा के पूछ दिए"चच्चा केतना दिन में पुल बन जाएगा? फिर त सब ई पट्टी,उ पट्टी आराम से जा सकेगा ना? 
लहटन चा-अरे सरकारी योजना है। आज 20 साल से त हमहू सुन रहे। ई घुसखोरवन सब बनावे तब ना। सब खेत खलिहान उहे पट्टी है। बाग बगीचा सब बिना देखरेख के रहे वाला चीज है। नाव से केतना पार लगेगा जोगना? लेकिन ई बार DM साब इसको लेके सिरियस है। एक दो साल में बनिये जाएगा। नेतवन सब के वोटो त चाहिए। ऊपर से अपन निर्मल बाबू ई मुद्दा बना के रणक्षेत्र में उतर गए है त शायद ई बार पक्का।
झट फिर से प्रणाम किये और सनसनाते मन से विदा हुए। मन मे दर्जन भर मोर नाचने लगा था.....पुल बन जाएगा त रोज सरोजा से मिलेंगे.......उ पढ़ने भी त इहे पट्टी आएगी......फिर त उ पट्टी 20 मिनट में पहुंच जाएंगे....सारा बाजार भी त इहे पट्टी है,उ समान लेने भी त आएगी ही.....फिर त चिट्ठियों लिखे का जरूरत नही परेगा, कितना जोखिम है इसको भेजना......हमरा प्रेम लकी है.......अमर है......सच्चा है......भगवान को हमरा दर्द मालूम है और भी तरह तरह की बातें।
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ले दे के 6 महीना ऐसे ही ताका-झांकी,चिट्ठी लिखवे और घाट पे जाने में बीत गया। एक दिन जब घाट किनारे गए तो देखा 5-7 आदमी यंत्र एक पानी मे क्या-क्या न कर रहा था। बड़ा अजीब लगा नाव पे सवार ये लोग पानी मे एगो कोई मशीन डाल गहराई नाप रहे थे। एक बन्दा पेपर पे कुछ लिखे जा रहा था। घाट किनारे एक कार लगी थी जिसपे और भी यंत्र रखे थे।
माथा ठनका लगता है जरूर पुल वाला काम शुरू होवे वाला है। बड़ी उत्सुकता से उन सब का किनारे आने का इंतजार करने लगे।
थोड़ी देर में उ नाव किनारे आने लगा। जैसे ही किनारे लगा,हम झट से एगो आदमी से पूछे "का सर अबकी पुल बन जाएगा का। 
उ पगला जैसी आंखों से हमका देखने लगा। फिर बोला "ई का तुमको दो दिन का खेल बुझाता है,अभी नाप जोख हो रहा,फिर इंजीनिअर पास करेगा,फिर बजट बनेगा,फिर BDO साब approve करेंगे तब DM साब टेंडर निकालेंगे फिर एकाध महीना पैसा release होने में लगेगा,तब ना पुल! कुल मिला के डेढ़ दू साल।
मन मे आया खींच के दू लात मार और काहे "चल काल से पुल बनाना शुरू कर" पर हतोत्साहित हो चुप रह गए।
सब चला गया। हूं बैठ के सोच रहे थे अभी सरोज 15-16 साल की है।पुल बनते बनते 18 साल की हो जाएगी। फिर उसका शादी का बात होने लगेगा। क्या पता कोई लड़का उका जंच जाए। या फिर घर के कहने पे उ दूसरे से शादी का हाँ कह दे। नहीं.... नहीं...... पुल बनेगा.... हम बनाऊंगा पुल सरोज के लिये। उसके बिना जीना कैसा? 
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गांव में यज्ञ हो रहा था। 10 दिन का प्रोग्राम था। सब सुबह सुबह प्रवचन और यज्ञ में चढ़ावा देने जाते थे। मथुरा से पंडित जी आए रहे। काफी नाम था उनका। राम लीला और कृष्ण लीला में उनके जोडी का कोई न था उस समय आज आठवां आहुति था तो हम भी नहा धो के सवा रुपिया,अक्षत और होम लेके पहुंच गए हवन करने। शामियाने में बैठने की जगह न थी। हमने झटपट हवन किया और बैठ गए प्रवचन सुनने।
पंडित ने कहना शुरू किया"जैसा आप लोग अब तक सुने कृष्ण के आत्मा में राधा बसती थी।वो रुक्मिणी के हो तो गए पर सदैव राधा उनके सन्मुख रहती थी। वो गोकुल छोड़ के चले गए पर गोकुल के कण-कण में उनका वास् था और राधा उसी सुवास के साथ कृष्ण प्रेम में सदा विलीन रही। रुक्मिणी भी तो राधा की ही अंश थी। और कृष्णा भी राधा और रुक्मिणी को एक ही मानते थे। भले शरीर अलग हो जाए मगर सच्चा और निश्चल प्रेम आत्मा के साथ ही बिलग होता है।
पता नही क्यों आंखे डबडबाने लगी। मैं और सरोज भी तो राधा-कृष्ण सा ही प्रेम में उतरे हैं।वो भी तो आत्मा से दूर विरह वेदना सहती है। ये कोसिकी भी तो हमे गोकुल-मथुरा की तरह अलग किये हुए है। पर मैं किस रुक्मिणी में राधा ढूंढूं?
पहले सुबक के रोया फिर भमोडा फार के बिलखने लगा
उ त लहटनियां चाची की नजर हमपे पड़ गई वरना उस रोने से कांड ही हुआ जा रहा था।
वो बूढ़ी चाची पास आके बोली "का हुआ मेरा बच्चा को,काहे बिलखने लगे प्रवचन सुन के,कुछ हुआ का तुमको।
हम उका छाती से लगके बस हिचक-हिचक के एतना ही बोल पाए"ए चाची हमहू कृष्ण हो गए....अब नही जी पाएंगे....हमका उ से मिलना है....हमरा उका सिवा कोउ नही है संसार मे।
वो हमको थपथपा के ढाढस बंधाने लगी।इतने में दू चार और महिला घटना देखने आ खड़ी हुई।
थोड़ा सांस आया तो स्थिति भांप हम घबरा गए।  नाक पोछते उठ खड़े हुए। मने मन प्रवचन देने वाले को चार गाली दिए"ससुरी कांडे करवा देता आज त" चाची का पांव छुए और निकल गए हुआँ से।
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#हमरी प्रेम कहानी भाग 2 #ganesha

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हमरी प्रेम कहानी-भाग 2
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किनारे पहुंच हम कमर पे हाथ दे शक्तिमान वाले पोज में खड़ा हो गए। पीछे उ लोग भी पहुंचे। भैंस जैसे आदमी ने जोर से आवाज लगाई"" रे मंसुखवा" उधर से आवाज आई "आ रहे मालिक"। एगो नाव पे उस पार कोई बल्ला लिए चढ़ता दिखा। अपने प्रियसी को एतना नजदीक देख कौन आशिक़ रुकता। हमहू झट पूछ लिया।आप सब उस तरफ जाएंगे क्या? मोटे ने भारी आवाज में कहा "हाँ"।
हम बोले "हमको भी उस तरफ जाना है,अपने एक दोस्त से मिलने"
मोटा तारते हुए बोला "चले तो जाओगे उधर पर थोड़ी देर में शाम ढल जाएगी फिर इस पार आने को कोई नाव नहीं मिलेगा"
हमहू झट कह दिए कोई बात नही हमका आज लौटना भी नही,कल सुबह वापस आना है।
इतने में नाव किनारे आ के लग गई। वो बिना कुछ बोले लड़की के साथ नाव में जा बैठा। हम इस मौके को चूकना नहीं चाहते थे सो झट से फिर पूछ लिया "हमहू  आ जाएं क्या आप लोगो के साथ। उसने हाथ से आ जाने का इशारा किया। हम दुलत्ती झाड़ लपक के सवार हो गए। अभी मल्लाह ने बल्ला डाला ही था नाव को आगे बढाने को की नाव के डगमगाने से डर के मारे झींगुरों ने कान में झंझनाना शुरू किया। हम डर से आंखे बंद कर लिए और कस के नाव को धर के बैठ गए। डर ने हमरी आँखों पर ऐसा फेविकॉल रगड़ा की ना हमरी आँख किनारे लगने तक खुली ना हम अपने प्रेयसी को जी भर देख सके। नाव किनारे से होले से टकरा के रुकी तो हलक से थूक नीचे उतरा। हम आंख खोले तो वो लड़की हंसती हुई मेरी तरफ देख रही थी।शायद हमरे स्थिति ने उका हँसने पर मजबूर किया था।घाट के उस पार उ दोनों गांव की पगडंडी पे बढ़ लिए। हम जीत के भी हारा सा उका देखता रहे
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शाम ढलने को थी। हमको उस पार घर जाने की चिंता सता रही थी। नदी में एक भी नाव नहीं था। ऊपर से बाबूजी के  कोप भाजन होने का डर। थोड़ा और वक़्त बिता,तो हम सहम गए।शायद आज मेरा बेड़ा गर्क होवे को था। हम किसी नाव वाले के इन्तेजार में बेसब्री से घाट पे टहलने लगे।
तभी किसी के हँसते हुए आने की आवाज सुनाई दी। हम सजग हो उधर ताकने लगे। 
उहे दोनों लड़की हाथ मे देकची लिए घाट के तरफ आ रही थी। थोड़ा पास आने के बाद वो ठिठकी और गौर से हमको देखने लगी। फिर पास आके बोली "तुम त हमरे नाव में ई पट्टी आया रहा ना, दोस्त से मिलने के लिए"
हम झूठ बोल गए कि दोस्त कंही बाहर शहर गया है मामी के पास सो नही मिल पाए।
वो फिर से हमको देखी और ठहाका मार के हँस दी और बोली "त अब उ पट्टी कैसे जाओगे? फिर तुमको डर लगेगा। ई बार तो नावों पे कोई नही रहेगा।  
हम गिड़गिड़ाने जैसे अंदाज में बोले। नही लगेगा डर।पर कउनो  नाव तो मिले। घर मे बता के भी नही आया हूँ त सब परेशान होंगे।
लड़की थोड़ा ढिठाई से बोली"तुम न कोनो दोस्त से मिलने नही आए थे,हमका सब पता है।तुम हमको देखे त नाव में चढ़ गए थे समझे। और एक बात उ दिन क्या बोल रहे थे तुम हमका नहाते देखने आते हो। अभी इहे पट्टी धर के घोसरवाए तुमको त कैसा लगेगा? बहुत सयाना बनते हो। बोले का जाके बाबूजी को?
हम आंख नीचे किये सब सुन लिये। फिर साहस करके बोले। देखो हमका किसी तरह उ पट्टी भिजवा दो। कोसी मैय्या की कसम कभी नही देखेंगे तुमको। उ त लम्पटवा सब कुछ से कुछ बोलता है तुमको देख के त हमको गुस्सा आ जाता है। तुम ही बताओ महीना दिन से देखी हो हमको घाट किनारे उ लोगों के साथ।
लड़की थोड़ा सोच के बोली "हम का यही देखने आते हैं क्या घाट पे कि कौन आया नहाने कौन नहीं? ऊपर से तुम हमरे लिए काहे सोचते हो? गार्जियन हो हमारा? फिर बोली ज्यादा अलबलाओ नही।ई मत समझना कि तुमरे गांव में हमरा जान पेहचान नहीं है। हमरी मौसी का घर है हुआँ। तुमको तुमरे गांव में पिटवा देंगे।
हम बिना बोले चुप खड़े रहे। जिसके लिए महीना भर से भूख,प्यास,नींद सब खो दिए उका मुँह से एतना जलील होना खलने लगा। आंख भी थोड़ा डबडबा गया।
फिर थोड़ा ताव में आके बोले "काहे इतना झाड़ सुना रही हो? हमको अच्छी लगी त एक नजर देख लिए त क्या सब पाप हमही किये धरती पर। तुमको पता भी है हम कैसे जी रहे आज-कल.........फिर सुबकने लगे।
लड़की भौंचक होके हमको घूरती रही। उसकी सहेली मुस्कुरा के हमको देख रही थी।
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वो बिना कुछ बोले पानी लेने घाट के तरफ बढ़ी। हमको लगा अब सारी रात घाटे पे बिताना पड़ेगा। सूरज डूब गया। कुछ देर में अंधेरा हो जाएगा फिर.......
हम मन मे कुछ ठान आगे बढ़े और अपना गमछा कस के कमर में बांध लिए। उसकी सहेली हमको देख रही थी। थोड़ी डरी हुई सी वो लड़की से बोली"ई बौरा गया है का? देखो इधरे आ रहा। उ पानी भरते हुए पीछे मुड़के देखी।
हम सरपट घाट के तरफ बढ़ रहे थे। वो थोड़ा सहम के खड़ी हो गई। जब हम उसके बगल तक पहुंच गए तो वो आश्चर्य से हमको देखी और बोली "का करने जा रहे हो?
हम थोड़ा चिढ़ के बोले "तुमसे मतलब" जब जिनगी बेहाल होइए गया है तो तैरकर उ पट्टी जाएंगे। बीच मे कोसी मैया लील ली तो कोई बाते नही, हम दोनों का झंझट खतम हो जाएगा। और हाँ जाते जाते एगो बात बताइये देते है"तुमको देखने हम घाट पे जरूर आते थे पर कबहु बुरा नजर से नही देखे। हम कोई छिछर नही है समझी। अब कबहु नही देखेंगे। इतना कह के पानी मे उतरने को हुए।
वो पीछे से बोली तैर लोगे ना! वैसे त आज तक किनारे में ही छबक छबक करते देखे है। ढोरी से ऊपर कभी पानी मे खड़े भी नही देखे है तुमको। 
हमको करंट जैसा लगा!
पलट के उका मुँह निहारने लगे। जइसे उसको कोई सिंघ निकल गया हो।
अपने आप हमरा मुँह खुला और हम बोल गए"त क्या इतने लड़को में तुम हमको रोज देखती थी?
उ बोली नहीं त क्या? सबे लड़का हमको दिखाने के लिए बीच धारा तक तैर तैर के दिखाता था एगो तुम्ही त अकेले किनारे में डुबकुनियाँ मारते रहते थे। 
खुशी, स्नेह और आश्वासन का एगो अजीब मुस्कान हमरे चेहरे पे छा गया
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उ बोली तैर के नही जा पाओगे तुम उ पट्टी,ऊपर से सांझ होने को है। देखते है हम कोई जुगाड़। 
तबही केले के थम को जोड़कर बनाई गई एक नाव पर एक लड़का गीत गाता घाट के तरफ आता दिखा। 
हमको थोड़ा आस जगी।हमने जोड़ से आवाज लगाई। ए भाय......ए हो.....अरे सुनो रे भाय
उधर से उ कान फाडू गीत ""टिप टिप बरसा पानी....पानी ने आग लगाई.....ओ..ओ.टिप गाने में व्यस्त दिखा। फिर लगा कि वो इधरे नही आके कउनो दूसरे घाट के तरफ बढ़ रहा है।
इस बार लड़की की बारी थी।जोर से बोली....रे... मंसुखवा.. रे इधर आओ। गजब का जोश था आवाज में तुरंत उत्तर आया.....अरे छोटी मालकिन....आय रहे..तनी इस जाल को सरिया ले। 
उ विजेता वाले नजर से हमको देखी। इस बार उ सच मे बहुत देर हमको देखी। हमरा दिल धड़कने लगा। हमही शर्मा के नजर नीचे कर लिये।
वो बोली ज्यादा हिल डुल मत करना इस नाव पे नाही त पानी इस बार ढोरी से ऊपर आ जाएगा,फिर त जानिए रहे.....दोनों लड़की ठहाका मार के हँसने लगी। 
एक पल को हम आने आप को गाली दिये। कितना गलत सोच लिए हम अपने लाडो को। मने मने दुत्कारने लगे इसको। कितनी भोली है ई। इसके में दया भी है। फिर से उसको एकटक देखने लगे।
तभी उ नाव वाला आके बोला जी कहिए मालकिन का बात है?
लड़की झट नजर हटा के बोली,देखो ई हमरे मासी घर से है। एक काम से  ई पट्टी आया था। इनको उ पट्टी तत्काल जाना है बहुत जरूरी है।
पर मालकिन अइसन कौन हड़बड़ी। सांझ होवे को है। आज रुकिए जाय त ठीक।
नहीं रे...बहुते जरूरी है। पहुंचा के आओ दलान पे हमसे 5 गो रुपैया ले लेना साथ मे मूढ़ी आर गुड़ भी देंगे।
नाव वाला ठीके है....शांति से बैठिएगा...डर-वर नाही न लगता है।छटपटाइयेगा नहीं।तनिक पुरान हो गया थाम गूंथे।
हम सहमति में सिर हिला दिए। लगा ये पल कभी खत्म ही ना हो। उ हमेशा के लिए हमारे साथ उ पट्टी चल दे। पहलीबार थोड़ा उदासी उका चेहरा पे भी दिखा। उ बोली झटपट चले जाइये। सांझ में साँप-बिछु भी निकलता है। 
हम थाम वाले नाव पे एगो पैर रखे ही थे कि उ धसने लगा पानी मे।किसी तरह छरप के बीच मे चढ़ गए। उ लइका फिर से गाना शुरू किया.....कउनो दिशा में लेके चला रे बटोहिया...कउनो दिशा में। हम एकटक उ दोनों को देखते नजर से दूर जा रहे थे।
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ई पट्टी आके उतर के देखे। सांझ ढल गया था। उ पट्टी का घाट धुंधला और वीरान दिखा। नाव वाले को जेबी से 2 रुपया देके बोले"लो भाई कुछ खा पी लेना।
खुशी और बिछड़ने का गम साथ लिए घर की तरफ बढ़े। अभी गांव में घुसने ही वाले थे कि "लुखड़ा"मिल गया चुटकी भरे अंदाज में बोला "का भाई एकदमे नजर नही आते हो,मामला ठीक तो है?
हमने निष्ठुर सा जवाब "हाँ" बोल आगे बढ़ गया। दलान पे बाबूजी लालटेन के रोशनी में "नागिन का नाच"उपन्यास पैड रहे थे। बीच-बीच मे खैनी भी ठोक रहे थे।दवे पांव आगे बढ़ा।  मेन गेट पे पहुंचा ही था कि वो पीछे से बोले" कहाँ गए थे?सुने नाव पे चढ़ के उ पट्टी गए थे। बज्र गिर गया माथे पे। धीरे से वापस जा पाँव के पास बैठ गया। जी बाबूजी हम कभी गांव से बाहर नही गए। सुने उ पट्टी में तारापीठ है।17 साल हो गया कभी जान भी नही पाए एतना सुंदर मंदिर उ पट्टी है। आज मन में आ गया तो चले गए।
बाबूजी चश्मा को नाक पे सरकाते हुए बोले हाँ मंदिर त सुंदर है पर आने जाने की सुविधा कम है।कोसिकी में पानी घटते बढ़ते रहता है। कौन इतना जद्दोजहद करे। खैर ज्यादा घूमने भटकने का आदत कम करो। अंदर जाओगे त माय से बोलना एक बार नीबू वाला चाय भिजवा दे पेट मे गैस बन रहा। जान छूटता देख "जी"बोलकर झटक के अंदर चला गया।
माइ चटाई पे बैठ सब्जी काट रही थी।नजर उठा के देखी तो झट बाबूजी के चाय के लिए बोल दिया। पर माइ की आंखों में आज हमको चोर जैसे देखने का अनुभव हुआ। 
जाके लालटेन के पास बैठ संस्कृत का शब्दरूप रटने लगा
मुनि....मुनिः....मुनीयः
मुनीम....मुनि...मुनिन
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रात ढली खा के छत पे चादर बिछा लेट गया। आंखों में सारी घटनाएं घूमने लगी। नींद गायब हो गया और लगने लगा अब भी उ पट्टी अपने लाडो से बतिया रहे हैं।
चांद-तारा सब सुंदर लगने लगा। हवा से गुदगुदी होने लगी फिर एकाएक याद आया कि नजदीक से अपने लाडो को देख-मिल तो लिए पर नाम त पूछे ही नही।धत्त तेरे की।भारी चूक हो गई। अगला प्लानिंग करते हुए कब आंख लग गई पता ही नही चला। 
सुबह सारा काम करके नहा के गोसाई घर मे कुलदेवता के पास खड़ा होके मने-मन बतियाने लगे। सारा दुःख दर्द,लाडो के साथ जीने मरने की कसम,दुनियाँ से लड़कर हासिल कर लेने का शपथ आदि-आदि।
दोपहर को खा के दलान पे चारपाई पे  लेट कर शाम का इन्तेजार करने लगे।
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#ganesha

dilip khan anpadh

#हमरी प्रेम कहानी भाग 1

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हमरी  प्रेम कहानी भाग 1
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ए भाईजी आपको किरिया, हमर लव स्टोरी काहू से बतियाईयेगा नही। एक तो सक्सेस हुआ नही दूसरा दुबारा कबहु इश्क़ फरमाने का साहस नहीं हुआ।  पहिले बार के प्रेम में ही घर से लेके समाज तक सबे मिल के एतना न रगड़-मरद दिया कि,खुटियाईल बकरा की तरह सीधे मंडपे में आँख खोल सर्टिफाइड दुलहनिया को देखे। 12 बरस तक खुलल आँख से सूरदास की तरह बस स्कूल, कॉलेज और इधर उधर लड़की को  देखते त थे,पर क्या मजाल कबहु दिमाग मे कोउ बूरा खयाल आए। कसम से पहिले प्रेम के बाद एकदम से उम्दा सन्यासी वाला जिनगी जीये।
एक समय था जब आपलोगन के तरह हमहू गबरू,टनाटन जुआन (जवान) थे। गोंवे (गांव) में ही पले बढ़े त वही हमर स्वर्ग था और हुवे की लड़की सब अप्सरा। हमरे समय मे लड़की को ताक भर लेना चरित्रहीन और गुनाह माना जाता था। सो एकदम से सादा जीवन आर उच्च विचार लेके जवानी में उतरे। पर ई उमर किसी का सुनता है का। एक दिन हमरो नजर ओझरा गया एगो सुंदरी से (उ त सुंदर माने ऐश्वर्या आर कैटरीना बाद में बूझे)। हुआ यूँ की गोंवे के बगल में कोसिकी नदी का एगो धारा था। सब लइकन झुंड बना के हुंआ नहाने जाते थे। लगभग 60-70 फुट चौरा उ धारा में रेत (बहाव) त था ही पानी एकदम निर्मल और साफ। मछरियो तलहटी में तैरती नजर आ जाती थी। बहुते घर मे वही पानी खाना बनावे और पीने के लिए भी उपयोग होता था। धारा के पूर्वी और पश्चिमी किनारा पे लोग नहाते धोते थे। दुनु पट्टी के लोग में काफी जान पहचान था और न्योता-पाती का संबंध। नहाते नहाते जोर जोर से आवाज देके औरतियन सब बतिया भी लेती थी।
एक दिन नहाने पहुंचे और अपन अंगवस्त्र उतारे ही थे कि एगो कमनीय वाला माथा में ऊसर (एक झाग वाली मिट्टी) लगाते उ पट्टी में नजर आई। एगो दूसर लड़की उसके पीठ पे माटी रगड़ के ठिठोली कर रही थी।सब लइकन मुँह फारे बगुला नियर उका देख रहा था। उ अपन फ्रॉक को ठुड्डी से दावे अपना यौवन छुपाए,आँख मीचे दूसरी लड़की को कुछ बोले भी जा रही थी। हमहू टकटका के एक नजर देखे फिर तुरंते धर्मगुरु बन लइकन सब के धर्म ज्ञान समझाने लगे, कि ऐसे किसी लड़की -इस्त्री को देखना पाप है। सब हमरा मुँह ऐसे देखने लगा जैसे शुम्भ-निशुम्भ दानव को हमही पैदा किये रहे।खैर हम सब नहाने लगे। हमको पानी से डर लगता था ऊपर से हेलना भी नही आता था सो किनारे में डुबकुनियाँ लगाने लगे। कुछ लइकन तैराक था सो तैर के बीच मे पहुंच गया और उ लड़की के नजदीक से निहारने  का लुत्फ उठाने लगा। पता नही मन में क्यों ईर्ष्या हुई और हम मने-मन भगवान से मनाने लगे कि सबे लइका डूब जाए,आन्हर (अंधा) हो जाए,पनिया वाला सांप डस ले सबको,एगो हमही सिर्फ उका निहारते रहे। उ दिन जब नाहा के वापस चले त सब बस उसी का चर्चा किये जा रहा था। हमरा मन उदास था।मने मन श्राप दे रहे थे सबका की सबके मुँह में लकवा मार दे।
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हम दू दिन तक उन सबके साथ नहाने नही गए। बस मने मन उ लड़की का नहाने आर पानी  में छपर-छपर तैरने का वीडियो चलाने लगे। तीसरे दिन लगा कि हमको फिर सबके साथ जाना चाहिए,काहे की ई लम्पटवा सब पता नही का-का बोल रहा होगा और कौन सा सीन क्रिएट किया होगा। सच कहे पता नही उ लईकी के लिए काहे मन में श्रद्धा और सुविचार पलने लगा। ऐसा लग जैसे हमर पहिला प्रेम का बिज पुनक (अंकुरित) गया। 
अब हम उका निहारने नही जाते थे कोसिकी नहाने बल्कि मने मन उका सुरक्षा और अपनी लंगुरी सेना के नजर से उसको बचाने जाते थे हुआँ। जैसे ही लइकन सब वाणी और नजर से भटकता था झट दुगो संस्कार वाला उद्धरण देके उन सबको कंट्रोल करते थे।
उका रोज नहाते त देखने जाते थे पर दिल मे धीरे-धीरे कोसिकी से भी चौड़ा प्रेम का धारा फूटने लगा था। मन करता था दिन भर उ नहाए और हम टुकुर-टुकुर उका देखे। कभी उ हमसे बतिया ले। एक बार प्रेम से इशारा करे। थोड़ा मुस्कुरा के हमरी तरफ देखे। लेकिन प्रेम का ट्रेलर  बस उसी आधा घंटा में खतम हो जाता था फिर उ कपड़ा बदल के टहल जाती थी और सिनेमा समाप्त। फिर हमरे विलेन झुंड में तरह-तरह का चर्चा होता था।मन खिसिया जाता था।
लगभग एक महीना तक इहे सिलसिला चला।इधर हमर प्रेम रोग बढ़ा जा रहा था। खाय-पिये में मन नही लगता था। पढ़ाई के समय बस किताब को दीदा फार के निहारते रहते थे। सुतने जाते थे त अपने आप आंख भर जाता था। स्थिति मिलाजुला के गंभीर हुआ जा रहा था।
एक दिन मन तनिक ज्यादा उद्विग्न लगा त सांझ के बेला से थोड़ा पहिले नदी की ओर टहल दिए। जाके किनारे बैठ मुलुर-मुलुर उ पट्टी को निहारने लगे। फिर अपने आप ऋण लगे। बीच बीच मे नेटा सुड़क के पानी मे फेक देते थे। 10-20 मछरी सब लपकता था उधर। आंसू रुक तो ई खेल देख के मन आनंदित हुआ। हमने फैसला किया अब रोज मछरी को खिलाने हुआँ आऊंगा। अभी जाने के लिये उठ ही रहे थे कि देखे दू गो लड़की देकची लेके घाट के तरफ बढ़ रही थी। हम फिर पसर गए टकटकी लगा। जब छवि स्पष्ट हुआ त दिल पे एकदम से परमाणु हमला जैसा बुझाया। हिचकी के साथ थोक भर नेटा गटक गए और आंख के लेंस को चौड़ा कर-करके उका निहारने लगे। हमर प्रेम प्रार्थना शायद भगवान ने सुन ली थी। ई हमरे वालो सुंदरी थी।
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हम तनी स्टाइल से बैठते हुए हाथ हिलाए।कउनो जबाब नही मिला।दोनों डुबुक डुबुक अपना डेकची भरने लगी। हमने कहा "ए जी सुनो" वो नही सुनी। तब मन में एक विचार आया एगो ढेला उठा के जोर से उसके तरफ फेके। ढेला उसके बगल में छप्प से पानी मे गिरा। दोनों नजर उठा के देखी और एक सुर में बोली "करोगे छिछरई" हमको पहचानते हो। भोगिन्दर जी के बेटी है।बाबूजी से कहेंगे तो उल्टा लटका के सोंटेंगे।
हम गला खखस के बोले।अरे नही रे हमको नही पहचानी।हम वही हूँ जो दिन में तुमको नहाते टुकुर-टुकुर देखता हूँ। फिर त बबाल हो गया। वो जोर जोर से बतियाने लगी। अपन माय-बहिन को काहे नाही देखते हो।आवारा कंही का। एतना लात मारेंगे सटक जाओगे।
मन दुःखी हुआ पर पूछ ही लिए।अरे हम त बस इतना पूछ रहे थे कि का तुम रोज शाम को पानी लेने आती हो।
जबाब मिला नहीं त क्या तोरा बाबूजी चूल्हा-चौक करे पानी भरता है का हमरे हियां।
झिड़क सुनके थोड़ा उदास हुए पर खुश भी थे कि अब रोज शाम को उका देख पाएंगे। आगे बिना कुछ बोले चल दिये हुआँ से।
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दूसरे दिन जैसे ही नहाने के लिए झुंड में निकले। "लुखड़ा" बोला का बे कल खूबे गाली सुन रहा था उ आइटम से नदी किनारे। हम थोड़ा चकित हुए। बोले, कुछ से कुछ मत बोलो। उ लपक के बोला हम सब देखे-सुने हैं, हुएं टट्टी के लिए बंसबिट्टी में बैठे रहे। आगे कुछ बोलना बेकार था। सब हमको ऐसे देखा जैसे हम कब्र से उठ के खड़े हुए हो। फिर एक सुर में बोला,बेटा मामला गड़बड़ लग रहा। जेकर उ बेटी है न जे चीड़ के रख देगा। उ पट्टी उसका बहुते बड़ा इंटा भट्टी है।10 गो त गुंडवन सब संगे रहता है भोगिन्दर जी के। हम खुद को संभाल के बोले "त हम का करें, हमको क्या डर लगता है।ऐसा कौन सा काम कर दिये कि फुफकारी मारे जा रहे हो। ले दे के विवाद थमा। हमलोग नहाने पानी मे उतरे। सब दिन की तरह हम किनारे में फुदकने लगे। इतने में हमर प्राणप्रिय सखा के साथ उ पट्टी आ गई नहाने। हम कनखी से देख के खुश हुए। आज वो लोग नहाने नही उतरी किनारे बैठ हमारे पूरे ग्रुप को भक्क-भक्क ताके जा रही थी। गोबिन तैर के हमरे पास पहुंचा और बोला"आ गई तेरी हेरोइन"। हम सिहर के रह गए। जब तक हमलोग नहाते रहे उ दोनों लड़की नहाने पानी मे नही उतरी।मन डर गया कि कंही कल वाला बात उसको बुरा तो नही लगा। झटपट कपड़ा पहिन जाने का सोचे। एतने में एगो लइका जोर से बोला"आज भौजी उदास लग रही" सबे दांत चिहार ठसठसा के हंस दिया।हम माथा झुकाय बिना कुछ बोले संग हो लिए। मने मन प्रतिज्ञा किये अब इन सबके साथ नहाने नहीं आऊंगा।
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आज फिर शाम हुआ तो मन हिलकोर मारा की नदी किनारे जाएं। पर सबकी बताई बातों से और आज के उसके नदी किनारे ताकने के अंदाज से, मारे डर के घुटने में जान नही लग रहा था। मन के व्यथा पर प्रेम विजय पाया और हम साहस बटोर निकल पड़े नदी किनारे। सबके नजरों से बचते बचाते घाट पे पहुंचे तो दृश्य देख दंग रह गए 20-25 अपने गांव के लोग किसी का क्रिया-कर्म करने वहां पहुंचे हुए थे। अभी पास पहुंचे भी नही थे कि भुवन चाचा बोले अरे तुम देर से आए। अब त आगो (अग्नि) पड़ गया। तोरी घुघरी चाची चल गई रे। गमछा से नाक पोछते हमरा कंधा पे हाथ दिए हमको चिता तक घसीट लाए। अब सर मुंडवाने का एगो अलग झमेला माथे लग गया। अजय देवगन जैसे बाल के चले जाने के दुखद स्वप्न से ऐसे ही आंखे छलक आई। चच्चा गमछे से मेरा आंख पोछते हुए बोले"चुप हो पगले,जाने वाले को कौन रोकता है"। मन मे आया उसको उसी चिता पे धकेल के बोले"चच्चा अभिये प्रेम शुरू किए रहे,अब बिना बाल के सुंडा सर लेके क्या मुँह दिखाएंगे अपने लाडो को"। फिर एक किनारे बैठ सब देखने लगे। इतने में डेकची लेके मेरी सुंदरा घाट पे आ गई और नीर नयन को विराम मिला। चिता की लपट के बीच फिर मुलुर-मुलुर उसको निहारने लगे।
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बाल के वियोग में महीना भर घर से घाट तक नही गए। मन में तरह-तरह की आशंका आते थे। इस वानरी फौज में से गर किसी ने मेरी लाडो को पटा लिया तो फिर? कुछ बोल दिया तो फिर? जेभी प्रेम पक्का नही हुआ है मेरा वो किसी और को चाहने लगी तो फिर?
रहा नही गया एक दिन तीर की तरह घर से घाट के लिए निकल पड़े। अभी गांव से निकल नदी के रास्ते पे चले ही थे कि देखा थोड़ी दूर आगे एक भैंस जैसे आदमी के साथ एक लड़की चली जा रही थी। मैंने अपना कदम ताल बढ़ाया और नजदीक जा पहुंचा। माथे में ठनका ठनक गया। वही फ्रॉक,वही काया,वही चाल, खुले बाल.......अरे...मेरी लाडो ही तो थी.....पर इस पार? साथ में ये भैंस जैसा आदमी? मैं डग भरता हुआ उससे आगे निकल उसे देखना चाहता था। जैसे ही बगल पहुंचा लड़की मुड़ के देखी। जी मे आया शाहरुख खान की तरह बांहे खोल बोल डालूँ...ल...लल....लाडो। फिर बिना किसी भाव के किनारे की तरफ बढ़ गया। बीच मे हल्के टेढ़े गर्दन से पीछे आते लाडो को देखे जा रहा था। वो भी भौं पे बल डाले शायद मेरे चेहरे का अनुमान लगा रही थी।
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