मेरे मौन को समझना तुम मेरे मौन को समझना, उसकी पीड़ा को समझना। वो भी तो कुछ कहती है, वो भी कुछ सहती है। जरूरी तो नहीं वही सुना जाए, जो कुछ मुख से कहा जाए। उसे भी तुमने सुनना है, जो नहीं कहा उसे भी बुनना है। अपने शातिर दिमाग से, नहीं बनो तुम अनजान से। तुम्हारी बातों से मैं मौन हूं, समझ नहीं पा रहा हूं मैं कौन हूं। वेदना से घिरा हूं मैं इस कदर, क्या कहूं कौन सी जाऊं मैं डगर। मौन को नहीं समझ रही तुम मेरे, अजीब सी मुश्किलें हैं मुझे घेरे। दर्द बढ़ रहा है अब सीने में, डर भी लग रहा है अब जीने में। इससे पहले की कुछ हो जाए, जीवन अंधेरे में कहीं खो जाए। तुम मेरे मौन को समझना, उसकी पीड़ा को समझना। वो भी तो कुछ कहती है, बहुत कुछ वो सहती है। ................................................ देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #मेरे_मौन_को_समझना मेरे मौन को समझना तुम मेरे मौन को समझना, उसकी पीड़ा को समझना। वो भी तो कुछ कहती है, वो भी कुछ सहती है।