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मुझ खंडहर को देख हंसते हो भाई मैं भी कभी इमारत आल

मुझ खंडहर को देख हंसते हो भाई 
मैं भी कभी इमारत आलीशान था
लोग झुकते थे हमारी दहलीज पर
मेरा भी कभी जगमगाता पहचान था 
मुझ खंडहर.....
जो भी मिला उसने जमकर के लूटा
अपने पराये से बिल्कुल अज्ञान था
ऐसी अमिट छाप अपनों ने छोड़ी
जो देखे हो छाले, उन्हीं का निशान था
मुझ खंडहर......
तुम ऐसी गलती कभी भी न करना
अदभुत मायावी फरेबी शब्दजाल था
लोगों के भावों में बहता रहा ये "सूर्य"
रुह कांप जाती जैसे कोई सामान था
मुझ खंडहर......

©R K Mishra " सूर्य "
  #मुझ खंडहर  Rama Goswami Sethi Ji Neel Suresh Gulia Yogendra Nath Yogi