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वसंत लता वसन संग रति करेँ सदनानन मेँ । पियूष भरा

वसंत
लता वसन संग रति करेँ सदनानन मेँ ।

पियूष भरा पुष्प शोभित आनन मेँ ।

मदन उत्साह ,अनंग मधु विकसत तन मेँ ।

तरु-मरु शोभित, भ्राँति करे तूर्य सी जन मेँ ।

अनंग छबि भरे, परिपूर्ण मुग्ध धौर आभा ।

श्रंग गिरि सरि मेँ ,मन मोहित करे आभा ।

मारुत हिलोर दे तन्वी ,न्रत्य कटि मटकावे ।

भानु शशि सम लगे , पुष्प मास  हर्षावे । 


 रचना- यशपाल सिह बादल

.

©Yashpal singh gusain badal' वसंत
वसंत
लता वसन संग रति करेँ सदनानन मेँ ।

पियूष भरा पुष्प शोभित आनन मेँ ।

मदन उत्साह ,अनंग मधु विकसत तन मेँ ।

तरु-मरु शोभित, भ्राँति करे तूर्य सी जन मेँ ।

अनंग छबि भरे, परिपूर्ण मुग्ध धौर आभा ।

श्रंग गिरि सरि मेँ ,मन मोहित करे आभा ।

मारुत हिलोर दे तन्वी ,न्रत्य कटि मटकावे ।

भानु शशि सम लगे , पुष्प मास  हर्षावे । 


 रचना- यशपाल सिह बादल

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©Yashpal singh gusain badal' वसंत