" लम्हा" वो लम्हा था मेरा, जो मेरे हाथों से सरक गया, चाह कर भी मैं उसे खुद ना रोक पाया, और धीरे धीरे मेरे हाथों से फिसलता ही गया। था मैं बहुत खुश की बहुत अरसे बाद, मेरी बचपन की लाडली मुझे रूबरू होने वाली थी, मनो मन सोचता था कल मेरी जिंदगी, का सुनहरा दिन उगने वाला है। लंबे अरसे बाद दिखाई दी उसकी एक झलक, नज़दीक आई वो और सामने से गुफ़्तगू भी की, उसकी आवाज सुनते ही लगा जैसे बचपन की परी फिर से बोली, क्या वह नायाब लम्हा था, आज तक ऐसा लम्हा मैंने कभी नहीं जिया। मैंने खूब जीना चाहा और जिया भी उस लम्हे को, लेकिन फिर भी वह लम्हा हाथो से सरक ही गया, पता नहीं जिंदगी की तेज़ रफ़्तार कब गुजरेगी, और जिया था जो लम्हा वह फिर से दुबारा कब जीने को मिलेगा। -Nitesh Prajapati रचना क्रमांक :-1 #होलीकेहमजोली #collabwithकोराकाग़ज़ #होली2022 #कोराकाग़ज़कीहोली #कोराकाग़ज़ #kknitesh907