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मैं इक्कीसवी सदी का इंसां हूँ मैं इक्कीसवीं सदी का

मैं इक्कीसवी सदी का इंसां हूँ
मैं इक्कीसवीं सदी का इंसां हूँ

मैं ही संस्कारी भी हूँ
मैं ही बलात्कारी भी हूँ
अमीर भी हूँ भिखारी भी हूँ
सरकार भी हूँ नोकर सरकारी भी हूँ

मैं कातिल भी हूँ वकील भी हूँ
मैं कातिल के हक़ में दी गयी दलील भी हूँ

मैं रहबर भी हूँ कातिल भी हूँ
सब जानकर मज़लुमो से ग़ाफिल भी हूँ
अधूरा भी हूँ कामिल भी हूँ
अहमक भी हूँ आकिल भी हूँ

मैं ही हंसाने वाला मैं रुलाने वाला भी हूँ
मैं बुझाने वाला मैं ही आग लगाने वाला भी हूँ

कभी गलत नापता तो कभी सही तोलता हूँ
कभी झूठ तो कभी सच बोलता हूँ

मैं इक्कीसवीं सदी का इंसां हूँ
मैं इक्कीसवीं सदी का इंसां हूँ

गैरों के ग़म पे हंसता हूँ अपने ग़म पे रोता हूँ
नींद उजाड़ कर सबकी खुद आराम से सोता हूँ

ईद पे सिवंई दिवाली पे मिठाई खिलाता हूँ
मैं ही कभी एक दुसरे के घरों को आज लगाता हूँ
मैं ही मारा जाता हूँ मैं ही मारके आता हूँ
मैं ही मातम मनाता हूँ मैं ही खुशियाँ मनाता हूँ


मैं ही शाख हूँ मैं ही शजर हूँ
मैं ही फल हूँ मैं ही पत्थर हूँ
मैं ही सहरा हूँ मैं ही घर हूँ
मैं ही ज़ंजीर हूँ मैं ही ज़ेवर हूँ

मैं ही खफ़ा हूँ मैं ही राज़ी हूँ
मैं ही मुज़रिम हूँ मैं ही काज़ी हूँ
मैं ही पुजारी हूँ मैं ही नमाज़ी हूँ
मैं ही हारी हुई मैं ही जीती हुई बाज़ी हूँ

मैं ही ज़ुबां वाला मैं ही बेज़ुबान हूँ
मैं ही बखील मैं ही सखी इंसान हूँ 
मैं ही इंसां हूँ मैं ही हैवान हूँ
मैं ही फरिश्ता हूँ मैं ही शैतान हूँ

मैं ही मज़लुम हूँ मैं ही ज़ालिम हूँ 
मैं ही रियाया हूँ मैं ही हाकिम हूँ

मैं इक्कीसवीं सदी का इंसां हूँ
मैं इक्कीसवीं सदी का इंसां हूँ 
✍️ अब्दुल्लाह नसीम

©ABDULLAH #ऊर्दूशायरी #इंसां 

#steps
मैं इक्कीसवी सदी का इंसां हूँ
मैं इक्कीसवीं सदी का इंसां हूँ

मैं ही संस्कारी भी हूँ
मैं ही बलात्कारी भी हूँ
अमीर भी हूँ भिखारी भी हूँ
सरकार भी हूँ नोकर सरकारी भी हूँ

मैं कातिल भी हूँ वकील भी हूँ
मैं कातिल के हक़ में दी गयी दलील भी हूँ

मैं रहबर भी हूँ कातिल भी हूँ
सब जानकर मज़लुमो से ग़ाफिल भी हूँ
अधूरा भी हूँ कामिल भी हूँ
अहमक भी हूँ आकिल भी हूँ

मैं ही हंसाने वाला मैं रुलाने वाला भी हूँ
मैं बुझाने वाला मैं ही आग लगाने वाला भी हूँ

कभी गलत नापता तो कभी सही तोलता हूँ
कभी झूठ तो कभी सच बोलता हूँ

मैं इक्कीसवीं सदी का इंसां हूँ
मैं इक्कीसवीं सदी का इंसां हूँ

गैरों के ग़म पे हंसता हूँ अपने ग़म पे रोता हूँ
नींद उजाड़ कर सबकी खुद आराम से सोता हूँ

ईद पे सिवंई दिवाली पे मिठाई खिलाता हूँ
मैं ही कभी एक दुसरे के घरों को आज लगाता हूँ
मैं ही मारा जाता हूँ मैं ही मारके आता हूँ
मैं ही मातम मनाता हूँ मैं ही खुशियाँ मनाता हूँ


मैं ही शाख हूँ मैं ही शजर हूँ
मैं ही फल हूँ मैं ही पत्थर हूँ
मैं ही सहरा हूँ मैं ही घर हूँ
मैं ही ज़ंजीर हूँ मैं ही ज़ेवर हूँ

मैं ही खफ़ा हूँ मैं ही राज़ी हूँ
मैं ही मुज़रिम हूँ मैं ही काज़ी हूँ
मैं ही पुजारी हूँ मैं ही नमाज़ी हूँ
मैं ही हारी हुई मैं ही जीती हुई बाज़ी हूँ

मैं ही ज़ुबां वाला मैं ही बेज़ुबान हूँ
मैं ही बखील मैं ही सखी इंसान हूँ 
मैं ही इंसां हूँ मैं ही हैवान हूँ
मैं ही फरिश्ता हूँ मैं ही शैतान हूँ

मैं ही मज़लुम हूँ मैं ही ज़ालिम हूँ 
मैं ही रियाया हूँ मैं ही हाकिम हूँ

मैं इक्कीसवीं सदी का इंसां हूँ
मैं इक्कीसवीं सदी का इंसां हूँ 
✍️ अब्दुल्लाह नसीम

©ABDULLAH #ऊर्दूशायरी #इंसां 

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