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यूं सर - ए - मैदान - ए - विग़ा दिल का लगाना नह

यूं  सर - ए - मैदान - ए - विग़ा  दिल  का  लगाना नहीं अच्छा
और दस्तूर है रज़्म-ए-निगाह में निगाह चुराना भी नहीं अच्छा

कभी दाम-ए-अशर्फी,कभी सुकुं-ए-कलेवर पर बिकती है जवानियां
बड़ी रंगीन जहरीली आबो-हवा है, यूं पै उठा बाहर जाना नहीं अच्छा

जो सिर बड़े उठ रहे हक़ को, उन्हें काटने की तालीम हुई है 
हुक़ुक़-उल-इबाद  का  यूं  जुबां  का  हिलाना  नहीं  अच्छा

सुन ओ मेहरुन्निसा जरा सलीके से खोला करो अपने अब्सारों की मधुशाला
अपने  हालात - ए - खस्त  दीवाने  को  यूं  रोज-ब-रोज पिलाना नहीं अच्छा

तिरी भी चर्चा हो रही तलवारों की नोक पर, मिरे इश्क़ के किस्सों में भी मची हलचल
ज़माने  की  ख्वाहिश  हुई  है, तिरा  मुझे  बुलाना नहीं अच्छा, मिरा आना नहीं अच्छा

और भी संगीन मुद्दे हैं निहां आंचल-ए-मखलूक में 'आफताबी'
सिर्फ़   तेरा   मोहब्बत  का  ही  फ़साना  सुनाना  नहीं  अच्छा ग़ज़ल 😊

सर-ए-मैदान-ए-विग़ा  -- युद्ध के मैदान के बीच
रज़्म-ए-निगाह -- नजरों की लड़ाई
दाम-ए-अशर्फी -- सिक्कों/पैसों के दाम पर
सुकुं-ए-कलेवर -- देह का सुख
पै -- पांव
हुक़ुक-उल-इबाद--- हक की याचिका करने वाला
यूं  सर - ए - मैदान - ए - विग़ा  दिल  का  लगाना नहीं अच्छा
और दस्तूर है रज़्म-ए-निगाह में निगाह चुराना भी नहीं अच्छा

कभी दाम-ए-अशर्फी,कभी सुकुं-ए-कलेवर पर बिकती है जवानियां
बड़ी रंगीन जहरीली आबो-हवा है, यूं पै उठा बाहर जाना नहीं अच्छा

जो सिर बड़े उठ रहे हक़ को, उन्हें काटने की तालीम हुई है 
हुक़ुक़-उल-इबाद  का  यूं  जुबां  का  हिलाना  नहीं  अच्छा

सुन ओ मेहरुन्निसा जरा सलीके से खोला करो अपने अब्सारों की मधुशाला
अपने  हालात - ए - खस्त  दीवाने  को  यूं  रोज-ब-रोज पिलाना नहीं अच्छा

तिरी भी चर्चा हो रही तलवारों की नोक पर, मिरे इश्क़ के किस्सों में भी मची हलचल
ज़माने  की  ख्वाहिश  हुई  है, तिरा  मुझे  बुलाना नहीं अच्छा, मिरा आना नहीं अच्छा

और भी संगीन मुद्दे हैं निहां आंचल-ए-मखलूक में 'आफताबी'
सिर्फ़   तेरा   मोहब्बत  का  ही  फ़साना  सुनाना  नहीं  अच्छा ग़ज़ल 😊

सर-ए-मैदान-ए-विग़ा  -- युद्ध के मैदान के बीच
रज़्म-ए-निगाह -- नजरों की लड़ाई
दाम-ए-अशर्फी -- सिक्कों/पैसों के दाम पर
सुकुं-ए-कलेवर -- देह का सुख
पै -- पांव
हुक़ुक-उल-इबाद--- हक की याचिका करने वाला