युद्ध नहीं करना है क्या? चल हट अब मरना है क्या? बेसब्री से मत देखो, हर्जाना भरना है क्या? धूप में बैठे सबके सब, फिर कोई धरना है क्या? गड़े हुए मुर्दे न उखाड़ो, फिरसे अब लड़ना है क्या? श्वेत रंग गिरि जटा चमकती, निर्मल जल झरना है क्या? जान न डालो जोखिम में, आफ़त में पड़ना है क्या? 'गुंजन' भव से पार उतर ले, जन्मों तक सड़ना है क्या? --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #मरना है क्या#