समय की बहती नदी को अदमित स्मृतियों के झरने विचलित कर रहे थे...... व्याकुल प्रेम के व्यथित फ़साने दंतकथाओं की तरह सूने तटो पर भटक रहे थे...... अनिद्रा के तकिये पर उन चीन्हे पल धीरे धीरे सरक रहे थे....... ओर विरान गलियारे मे स्मृतियों के छत्तो से मधुमखियो के झुण्ड उतर रहे थे प्रवाह.......