खामोश हो गई है, उस भवन की दीवारें भी। जो कभी बताया करते थे, नाम और पता तुम्हारे हीं ॥ तुम गई नूर गया, मुस्कान हमारी होठों से दूर गया ।।। अब तो चाँद भी, आसमां से खिजाने लगा है। चाँदनी बिखेरने की जगह, तानों से चिढ़ाने लगा है ।। कि कहाँ गई तुम्हारी चाँद, जिसकी सुन्दरता के किस्से तुम सुनाया करते थे। मुझे सिर्फ ढीबरी, और उसे रौशनदान बताया करते थे | हमने भी घमंड से सर उठाकर कहा, सुन्दर तो ओ है हीं, और उसपर ओ चार चाँद लगा रही है। सुन्दर से तन को, सम्मान का लिबास पहना रही है। ओ चाँद, फिर से उसके मुखड़े की, चमक से तुम मत चौंधियाना । फिर भी तुम में हिम्मत बच जाये, तो आसमां से मुझे चिढाना।। ...........✍️✍️अरविंद ©Arvind Soni #love and it's remembrance