मुझे जाने दो वहाँ जहाँ कोई रोक-टोक ना हों ना कोई रिश्तों की ज़ंज़ीर हो और ना ही कोई ढ़ोंगी समाज का पहरा हो { पूरी नज़्म अनुशीर्ष में पढ़ें } मुझे जाने दो वहाँ जहाँ कोई रोक - टोक ना हों ना कोई रिश्तों की ज़ंज़ीर हो और ना ही कोई ढ़ोंगी समाज का पहरा हो मैं पंक्षी बनकर आसमाँ में घूमूँ जहाँ जाना चाहूँ, मैं जा सकूँ जहाँ मुझे कैद कर सके ऐसा कोई पिंजरा ना हों