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अपनी ज़बां खुलूस में ऐसा असर कहां दिल को बदल दे कु

अपनी ज़बां खुलूस में ऐसा असर कहां
दिल को बदल दे कुफर से ऐसी नज़र कहां

राहे वफा में रात है और चल दिए हैं हम 
अब देखना है होती है अपनी सहर कहां

ग़म से हो मेरे आशना मेरी खुशी के साथ
वह चाहते तो है मुझे पर इस कदर कहां

गा़ज़ी चले कहां अभी बाकी है सारी रात 
यह दास्तान ए इश्क है, है  मुख्तसर कहां

गा़ज़ी मुरादाबादी

©Gulam Mohd Ghazi
  #सदाएदिल