दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है, इक दफ़ा किसी से इश्क़ बेशुमार करोगे फिर खुद से समझौते हज़ार करोगे हुक़ूमत भले हो जहाँ पर तुम्हारा मगर उसके सामने सिर्फ गुहार करोगे वो गलियां जिनसे नफरतो का खुमार है तुम्हे उन गलियों का सफ़र बार-बार करोगे हा होगे अभी तुम अमन के सैदायी मगर उसके लिए बड़े खारज़ार करोगे ख़िज़ाँ भी ग़र आए तो उसकी क्या सह तुम तबाह होकर भी उसे गुलज़ार करोगे संभालने की कोशिस भी करोगे तुम खुद को फिर सारी कोशिस खुद बेकार करोगे ©क्षत्रियंकेश खारज़ार!