जूझते रहे अंतर्मन के अंतर्द्वंद से हम कहकर छूट जाने की कला नहीं सीखे लिए फिर है मणभर बोझ मनों में धीरे धीरे लगा है कुन्टल में बदलने कोई नहीं लगता जो भंवर में साथ उतर पाए तूफान तो हम किनारों तक खींच ही लाएं बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla वजन KK क्षत्राणी