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// इनकी उड़ान न रोको // अपने ज्ञान के परिंदे उड़ा

// इनकी उड़ान न रोको //

अपने ज्ञान के परिंदे उड़ाओ, इन्हें सुप्त न छोड़ो
कल्पनाओं को दो पंख, इनकी उड़ान न रोको।
उड़ने दो इन्हें अथाह ऊॅंचाइयों में, छूने दो नभ
अपनी मासूम कल्पनाओं को, अब और न टोको।

कल्पनाओं से नवीन खोज की बुनियाद पनपती है
लेती है तब  साकार रूप  हक़ीक़त में  संवरती है।
सुता को भी खुली ऑंखों से सवप्न देखने का हक़ है
कि जब होती  इच्छा पूरी उसकी, हॅंसी खनकती है।

तनया है तो क्या हुआ, स्वप्न अब होंगे उसके भी पूरे
मिलेगी सफलता उसमें, जो काम रह गए हैं अधूरे।
बस सपनों को साकार करने की कोशिश न छोड़ना 
देखना स्वत: मार्ग बन जाएंगे, दूर होंगे राह के अंधेरे।

रहे ध्यान जो देखते स्वप्न, वही पूरा करना जानते हैं
राह की बाधाओं को तोड़ आगे निकलना जानते हैं।
कर जाते हैं चुटकियों में ही असंभव कार्य भी संभव
क्योंकि मेहनत को ही हाथों की लकीर वे मानते हैं।

©Archana Verma Singh
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