हे नारी तू वस्त्र नहीं अब शस्त्र संभाल अब बहुत हो चुका है आश की आशा किसी गैरों से सब मृतप्राय से हो चुके है यहां गूंगा बेहरा हो चुका हैं समाज सारा हर कोई निशब्द खड़ा है टकटकी लगाएं बस बहुत हो चुका है हे नारी तू वस्त्र नहीं अब शस्त्र संभाल कब तक आस जोहती रहेंगी गूंगी बहरी सत्ता के दलालों से कब तक ख़ुद को इंसाफ़ के नाम पर जलील करवाती रहेंगी उस काली पट्टी बंधी मूर्ति के रखवालों से बस बहुत हो चुका हे नारी तू वस्त्र नहीं अब शस्त्र संभाल नोच डाल तेरे तरफ़ उठने वाले उन वहसी आंखों को काट डाल उन हाथों को जो बिना इजाज़त तेरे तरफ़ उठे तोड़ डाल उन पैरों को जो तेरी तरफ़ बढ़े बस बहुत हो चुका हे नारी तू वस्त्र नहीं अब शस्त्र संभाल #kavita#poem#poetry#nayikavita#naari