उछल-उछल गोरी चले , पहने पायल पाँव । छम-छम करती पायलें , घायल सारा गाँव ।। आज सभी को है मिला , द्वार उसी का ठाँव । ठुमक-ठुमक कर वो चले , बजती पायल पाँव ।। एक वही घर गाँव में , सबसे ऊँचा दुर्ग । कायल पायल के हुए , बच्चे और बुजुर्ग ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR उछल-उछल गोरी चले , पहने पायल पाँव । छम-छम करती पायलें , घायल सारा गाँव ।। आज सभी को है मिला , द्वार उसी का ठाँव । ठुमक-ठुमक कर वो चले , बजती पायल पाँव ।। एक वही घर गाँव में , सबसे ऊँचा दुर्ग । कायल पायल के हुए , बच्चे और बुजुर्ग ।।