फिर जीवन में बने रहने का क्या औचित्य होगा .......यदि जीवन में जीवनदायनी आकांक्षाएं ही न हो ......सारी आकांक्षाएं अंधी होगी अगर. वे ज्ञान की कोठरी से न गुजरी हो .....और सारा ज्ञान. व्यर्थ सिद्द. होगा अगर जीवन में कर्म और. कर्मठता ही न हो ..... आकांक्षाओं का वजूद