जग न बोले तो भला,मेरी बला से तुम न बोले तो लगा,पतझर सा जग हर दिशा रंगीन, मौसम फाग वाला आचरण डूबे हुए, अनुराग वाला.. स्वर लहरियां नेह के वातावरण की उर व्यथाओं की व्यथा के त्याग वाला ... यदि न पहुंची प्यार की मधु गंध तुम तक व्यर्थ है मेरे लिए त्यौहार सा जग... जग न बोले तो भला,मेरी बला से .... एक बादल सा कहीं ज्यों फूटता हो, ज्यों कहीं कोई स्वजन फिर रूठता हो.. छूटता हो प्यार का पल्लू कहीं पर, या कहीं अनुबंध कोई टूटता हो... तुम कहो कुछ तो हो ध्वनित संसार ये चुप रहो तो शोकमय उदगार सा जग... जग न बोले तो भला मेरी बला से तुम न बोले तो लगा पतझर सा जग.. ©Kumar Dinesh #Apocalypse