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dineshsharma2234
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Kumar Dinesh

"थाम उंगली लफ़्ज़ों की,बज़्म में पैकर ख़ुद का उकेरता हूँ मैं ख़ुद ही में ख़ुद ही के खोने की बेहिसी से,फ़रागत ढूँढता हूँ मैं"

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Kumar Dinesh

White उसी जगह पे जहाँ कोई आस-उम्मीद नहीं
न जाने कबसे खड़ा हूँ पर अब मज़ीद नहीं

किसी दरख़्त का साया तलाश करना पड़े
तुम्हारे हिज़्र की धूप इस कदर शदीद नहीं

तुम्हारे बाद भी इस दिल पर दस्तकें हैं मगर
नज़र में चाव,ज़ुबाँ पर ख़ुश-आमदीद नहीं

हमारे साथ तो चल मसअले पुराने हैं
तेरा तरीका-ए-हल भी मगर जदीद नहीं

बस अपने फ़न की बदौलत पसंद है तू मुझे
मैं तेरी किसी और बात का मुरीद नहीं

बहुत से लोग मेरे साथ इस लिए भी हैं
कि उनसे प्यार तो है पर कोई उम्मीद नहीं

मज़ीद = ज्यादा/अधिक   जदीद = नया
मुरीद = प्रशंशक

©Kumar Dinesh #Sad_shayri
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Kumar Dinesh

White टूटने पर कोई आये तो फिर ऐसा टूटे
कि जिसे देख के हर देखने वाला टूटे

अपने बिखरे हुए टुकड़ों को समेटे कब तक
एक इंसान की ख़ातिर कोई कितना टूटे

कोई टुकड़ा तिरी आंखों में न चुभ जाए कहीं
दूर हो जा कि मिरे ख़्वाब का शीशा टूटे

मैं किसी और को सोचूँ तो मुझे होश आए
मैं किसी और को देखूँ तो ये नशा टूटे

पास बैठे यारो को ख़बर तक न हुई
हम किसी बात पे इस दर्ज़ा अनोखा टूटे

©Kumar Dinesh #good_night_images
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Kumar Dinesh

White कोई मुश्किल ही नहीं जाँ से गुजरने के लिए
सौ बहाने हैं तेरे शहर में मरने के लिए

जो तेरे पास है वो ओज भी छिन जायेगा
ज़ीने मिलते हैं यहां सिर्फ़ उतरने के लिए

एक डूबे को मेरा हाथ मयस्सर है मगर
वो गिरेबान पकड़ता है उभरने के लिए

ज़ो'म इतना न दिखा हुस्न पे अपने के हर
शै यहां चढ़ती है दुन्या की उतरने के लिए

ज़ो'म = घमंड

©Kumar Dinesh #hindi_poem_appreciation
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Kumar Dinesh

White जो कोई शख़्स मुझे... बे- वफ़ा समझता है
यक़ीन कीजे उसे फिर.. ख़ुदा समझता है

जो शख़्स अच्छा है.. उस के लिए हैं सब अच्छे
बुरा है वो जो सभी को... बुरा समझता है

मिज़ाज ए यार को... हम इल्तिफ़ात कहते हैं
चराग़ ए इश्क़ उमस को.... हवा समझता है

ख़ुदा करे कि मिरे बाद भी..... वो जीता रहे 
वो इस दुआ को... मिरी बद- दुआ समझता है

हर ऐसे शख़्स को... मैं पारसा समझता हूँ
मुझ ऐसे शख़्स को... जो पारसा समझता है

बता चुका हूँ कई बार.... ना- समझ दिल को
वो संग है तू जिसे..... आईना समझता है

किसी को हालत ए दिल.. क्या बताएं हम यां पर
हमारा दर्द...... हमारा ख़ुदा समझता है

इल्तिफ़ात = कृपा/दया  पारसा = सदाचारी
संग = पत्थर

©Kumar Dinesh #good_night_images
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Kumar Dinesh

White ज़हर से ज़हर कटे काँटे से किरची निकले
दे नया दर्द कि ये टीस पुरानी निकले

ज़िंदगी यूँ तो नया लफ़्ज़ नहीं है लेकिन
वक़्त के साथ नए इसके म'आनी निकले

इश्क़ की झील में उतरो तो संभल कर उतरो
ऐन मुमकिन है ये उम्मीद से गहरी निकले

एक वो शख़्स जिसे दिल ने ख़ुदा जाना हो
सोचिए क्या हो अगर वो भी फ़रेबी निकले

छटपटाते हैं उदासी से निकलने को मगर
क़ैद ए सय्याद से कैसे कोई पंछी निकले

वो तरीका मुझे मरने का बताओ जिस से
ख़ुदकुशी भी न लगे जान भी जल्दी निकले

म'आनी = अर्थ

©Kumar Dinesh #sad_shayari
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Kumar Dinesh

White जो कोई शख़्स मुझे... बे- वफ़ा समझता है
यक़ीन कीजे उसे फिर.. ख़ुदा समझता है

जो शख़्स अच्छा है.. उस के लिए हैं सब अच्छे
बुरा है वो जो सभी को... बुरा समझता है

मिज़ाज ए यार को... हम इल्तिफ़ात कहते हैं
चराग़ ए इश्क़ उमस को.... हवा समझता है

ख़ुदा करे कि मिरे बाद भी..... वो जीता रहे 
वो इस दुआ को... मिरी बद- दुआ समझता है

हर ऐसे शख़्स को... मैं पारसा समझता हूँ
मुझ ऐसे शख़्स को... जो पारसा समझता है

बता चुका हूँ कई बार.... ना- समझ दिल को
वो संग है तू जिसे..... आईना समझता है

किसी को हालत ए दिल.. क्या बताएं हम यां पर
हमारा दर्द...... हमारा ख़ुदा समझता है

इल्तिफ़ात = कृपा/दया  पारसा = सदाचारी
संग = पत्थर

©Kumar Dinesh #good_night
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Kumar Dinesh

White किसी का होके.. किसी और से.. मुहब्बत की
सो मान लेते हैं हम ने.. बड़ी हिमाक़त की

कभी कभी ही सही.. हम को याद करता था
ये कोई इश्क़ न था.. बात थी ज़रूरत की

कहा था उसने हमें बे वफ़ा.. सो मान लिया
कोई सफाई नहीं दी.. न कोई हुज्जत की

वो एक शख़्स.. मिरी धड़कनों में शामिल था
पर उस ने छोड़ के जाने में.. कितनी उजलत की

ये किस के जाने से.. बस्ती में धूल उड़ती है
ये किस ने दिल की.. शिकस्ता गली से हिज़रत की

ये कारोबार ख़सारे का है.. मगर फिर भी
न जाने हम ने भी.. क्या सोच कर मुहब्बत की

हुज्जत = बहस      उजलत= जल्दबाजी
हिज़रत = घर छोड़कर जाना
ख़सारा = नुकसान

©Kumar Dinesh #safar
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Kumar Dinesh

White बदन के दोनों किनारों से जल रहा हूँ मैं
कि छू रहा हूँ तुझे और पिघल रहा हूँ मैं

मैं ख़्वाब देख रहा हूँ कि वो पुकारता है
और अपने ज़िस्म से बाहर निकल रहा हूँ मैं

©Kumar Dinesh #nightthoughts
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Kumar Dinesh

White कभी कपड़े बदलता है, कभी लहज़े बदलता है
मगर इस कोशिशों से,क्या कहीं शजरा बदलता है

तुम्हारे बाद अब जिसका भी जी चाहे,मुझे रखले
जनाज़ा अपनी मर्ज़ी से कहाँ काँधा बदलता है

रिहाई मिल तो जाती है परिंदे को,मगर इतनी
सफाई की गरज़ से जब कभी,पिंजरा बदलता है

मिरी आँखों को पहली आखिरी हद है,तिरा चेहरा
नहीं मैं वो नहीं जो रोज़ आईना बदलता है

अज़ब जिद्दी मुसव्विर है,ज़रा  पहचान की ख़ातिर
मिरी तस्वीर का  हर रोज़,वो चेहरा बदलता है

शजरा = वंशावली
मुसव्विर = चित्रकार

©Kumar Dinesh #GoodMorning
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Kumar Dinesh

White लफ्ज़ कितने ही तेरे पैरों से लिपटे होंगे
तूने जब आखिरी ख़त मेरा जलाया होगा

तूने जब फूल किताबों से निकाले होंगे
देने वाला भी तुझे याद तो आया होगा

जब किसी सम्त क़दम तूने बढ़ाया होगा
तेरा हमराह तुझे याद तो आया होगा

कोई काँटा जो चुभा होगा तिरे पैरों में
दर्द में तूने मिरा चेहरा ही पाया होगा

दर्द भर आया मेरी ग़ज़लों में जाने कितना
लेके यूँ नाम तिरा मैंने जो गाया होगा

फूल कितने ही तेरे पैरों से लिपटे होंगे
मेरी मय्यत को जो हाथों से सजाया होगा

कुमार दिनेश

©Kumar Dinesh #Sad_Status
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