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" माँ फिर आओ न " माँ अपनी गोद को फ़िर, मेरा नरम ब

" माँ फिर आओ न "

माँ अपनी गोद को फ़िर, मेरा नरम बिछौना बनाओ न
अपने आँचल की ठंडी छाँव में, मुझे फ़िर सुलाओ न, 

फ़िर उसी अंक में छिपने को तरसती है, गुड़िया तुम्हारी
दुःखों की बदली राहों से हटाती, कहीं से आ जाओ न, 

अपने प्यार और दुलार का पालना लेकर, फ़िर आओ न
दिखा स्वप्न सलोने अँखियों में, कहीं अब तुम जाओ न, 

सहते सहते काँटे जीवन की राहों में, थक गयी हूँ माँ
अंतस के फफोलों को सहलाती, मरहम तुम लगाओ न, 

क्यों मुझसे यूँ रूठ गयी तुम, सूरत भी अब दिखाती नहीं
फैलाती ममता की शीतल छाया, माँ तुम अब आओ न, 

पुकारते तुम्हें आवाज़ भी गले में गुम हुई, कैसे पुकारूँ
बात मेरे मन की, माँ तुम एक बार और समझ जाओ न, 

कितना तड़पती हूँ, दीवारों से पूछती हूँ, क्यों रुष्ट हो यूँ
बिछुड़न सहन नहीं थी, कैसे दूर रहती हो, बतलाओ न, 

कैसी थी मैं और मेरी बातें, अपने बारें में किससे पूछूँ
कहानी मेरे बचपन की, माँ आकर तुम फ़िर सुनाओ न, 

बहुत कठिन हैं जीवन की राहें, बिना तुम्हारे साथ के माँ
गाकर अपनी मीठी लोरी, माँ गोद में सुला जाओ न!

©सुधा
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