एक तेरा ग़ुस्सा खलता है और किसी से क्या लेना दुनिया वाले तो सारे ही जाने कब से ग़ुस्सा हैं । कुछ इस मज़हब से ग़ुस्सा हैं- कुछ उस मज़हब से ग़ुस्सा , हम मज़हब से ग़ुस्सा क्यों हों..... हम तो रब से ग़ुस्सा हैं! Vineet Aashna ©Adarsh Dwivedi #मज़हब