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मांस नाख़ून से अलग करके दिखाया मैंने, उसने पूछे थे

मांस नाख़ून  से अलग करके दिखाया मैंने,
उसने पूछे थे जुदाई  के  मआनी मुझसे ।

सिर्फ एक शख़्स की ख़ातिर मुझे बर्बाद न कर
रोज़ रोते हुए कहती है जवानी मुझसे ।

मेरी हालत का उसे इल्म है  'शाहिद' फिर भी
चाहता है के सुने मेरी ज़बानी मुझसे ।

---/शाहिद ज़की साहब
मांस नाख़ून  से अलग करके दिखाया मैंने,
उसने पूछे थे जुदाई  के  मआनी मुझसे ।

सिर्फ एक शख़्स की ख़ातिर मुझे बर्बाद न कर
रोज़ रोते हुए कहती है जवानी मुझसे ।

मेरी हालत का उसे इल्म है  'शाहिद' फिर भी
चाहता है के सुने मेरी ज़बानी मुझसे ।

---/शाहिद ज़की साहब