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सबका आज लुभावन लगता है। ऐसो आराम मनभावन लगता है। ज

सबका आज लुभावन लगता है।
ऐसो आराम मनभावन लगता है।
जाने कितने दर्द सहे, जाने कितनी कठिनाई।
इस मुकाम पर आने को कितने बार गिरे।
सब बिना जाने, बिना पहचाने
हर ऊंचाई साधारण लगता है।
बड़ी आसानी से हम कहते की क्या हक है उसका।
किंतु परंतु जब उसके जूते में पैर रखा
तब जाना कितने शूल चुभे थे उसको
कितना लहू बहा था उसका।
कहना आसान था, करना मुश्किल।
तभी वो ऊंचाई पर खड़े थे 
और हमने सिर्फ पायदान पर ही पैर रखा। #परछाई
सबका आज लुभावन लगता है।
ऐसो आराम मनभावन लगता है।
जाने कितने दर्द सहे, जाने कितनी कठिनाई।
इस मुकाम पर आने को कितने बार गिरे।
सब बिना जाने, बिना पहचाने
हर ऊंचाई साधारण लगता है।
बड़ी आसानी से हम कहते की क्या हक है उसका।
किंतु परंतु जब उसके जूते में पैर रखा
तब जाना कितने शूल चुभे थे उसको
कितना लहू बहा था उसका।
कहना आसान था, करना मुश्किल।
तभी वो ऊंचाई पर खड़े थे 
और हमने सिर्फ पायदान पर ही पैर रखा। #परछाई