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फुल कागज़ के क्यूँ खिले हैं गुलिस्तां में, ऐसी क्या

फुल कागज़ के क्यूँ खिले हैं गुलिस्तां में,
ऐसी क्या वजह थी मुखौटे लगाने की।
मुह से तो कहते हो भारत मेरा देश है,
ऐसी क्या वजह थी ज़ाती परचम बनाने की।
बस नारों का शोर है, एकता में शक्ति है,
भीड़ के चेहरे पर फ़र्ज़ी देशभक्ति है,
वर्चस्व की आग में क्रांति झुलस गई,
ऐसी क्या वजह थी मशालें जलाने की।
कभी अपने आपसे बात करके देखो,
दस्तख़त तो कर दिए, विरासत पढ़के देखो,
ख़ून से लतपत बैठा है ज़मीर धर्म के नुक्कड़ पर,
ऐसी क्या वजह थी पत्थर उठाने की।
फुल कागज़ के क्यूँ खिले हैं गुलिस्तां में,
ऐसी क्या वजह थी मुखौटे लगाने की।



रविकुमार फुल कागज़ के क्यूँ खिले हैं गुलिस्तां में,
ऐसी क्या वजह थी मुखौटे लगाने की।
मुह से तो कहते हो भारत मेरा देश है,
ऐसी क्या वजह थी ज़ाती परचम बनाने की।
बस नारों का शोर है, एकता में शक्ति है,
भीड़ के चेहरे पर फ़र्ज़ी देशभक्ति है,
वर्चस्व की आग में क्रांति झुलस गई,
ऐसी क्या वजह थी मशालें जलाने की।
फुल कागज़ के क्यूँ खिले हैं गुलिस्तां में,
ऐसी क्या वजह थी मुखौटे लगाने की।
मुह से तो कहते हो भारत मेरा देश है,
ऐसी क्या वजह थी ज़ाती परचम बनाने की।
बस नारों का शोर है, एकता में शक्ति है,
भीड़ के चेहरे पर फ़र्ज़ी देशभक्ति है,
वर्चस्व की आग में क्रांति झुलस गई,
ऐसी क्या वजह थी मशालें जलाने की।
कभी अपने आपसे बात करके देखो,
दस्तख़त तो कर दिए, विरासत पढ़के देखो,
ख़ून से लतपत बैठा है ज़मीर धर्म के नुक्कड़ पर,
ऐसी क्या वजह थी पत्थर उठाने की।
फुल कागज़ के क्यूँ खिले हैं गुलिस्तां में,
ऐसी क्या वजह थी मुखौटे लगाने की।



रविकुमार फुल कागज़ के क्यूँ खिले हैं गुलिस्तां में,
ऐसी क्या वजह थी मुखौटे लगाने की।
मुह से तो कहते हो भारत मेरा देश है,
ऐसी क्या वजह थी ज़ाती परचम बनाने की।
बस नारों का शोर है, एकता में शक्ति है,
भीड़ के चेहरे पर फ़र्ज़ी देशभक्ति है,
वर्चस्व की आग में क्रांति झुलस गई,
ऐसी क्या वजह थी मशालें जलाने की।

फुल कागज़ के क्यूँ खिले हैं गुलिस्तां में, ऐसी क्या वजह थी मुखौटे लगाने की। मुह से तो कहते हो भारत मेरा देश है, ऐसी क्या वजह थी ज़ाती परचम बनाने की। बस नारों का शोर है, एकता में शक्ति है, भीड़ के चेहरे पर फ़र्ज़ी देशभक्ति है, वर्चस्व की आग में क्रांति झुलस गई, ऐसी क्या वजह थी मशालें जलाने की।