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White कुछ कश्ती बीच समंदर में, मेरी, एक छोटी-सी

White कुछ कश्ती


बीच समंदर में,
मेरी, एक छोटी-सी कश्ती-
कश्ती में छेद, भरता पानी;
आखिर, ये साजिश किसने की थी ?

शांत, वीरान-सा वो समंदर-
हवाओं में कोई वेग नहीं;
चढ़ती जा रही धूप-
आखिर, थपेड़ो को बल दिए किसने थे ?

सवार अकेला,
मानो, सो रहा काल के बाहों पर।
तैरना तनिक भी मुझे आता नहीं-
आखिर, उम्मीदों को पंख दिए किसने थे ?

धैर्य का जवाब गले पर आ अटकी; 
तिनको का सहारा नही।
वहां रक्षक भी खुद, भक्षक भी खुद-
आखिर, प्रयत्न को दिशा देना देना मुझे सूझा क्यो नही ?

सामने प्रकृति के असहाय जिंदगी;
ग्लानि, तैरना सीखा क्यो नहीं ?
फ़सा जीवन,अपनी जिंदगी अपना भाग्य;
आखिर, क्या जीवन ऐसा अंत होना ही था ?

©Saurav life
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