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Beautiful Moon Night समाज के दिखावे में,न जाने गई

Beautiful Moon Night  समाज के दिखावे में,न जाने गई कितनी जान..!
उजड़ता दिखा कितनों का,ख़्वाहिशों का मकान..!

जो रह सकते थे सुकून से,किसी के भी दिल में..!
दिखावे की दुनिया ने,पहुँचाया उन्हें शमशान..!

न मिली जमीं जरा सी,बीता बचपन जहाँ सारा..!
मन के बहकावे में आकर,भुलाई अपनी पहचान..!

स्वयं की बड़ाई,ये कैसी प्रशंसा की चढ़ाई..!
अहम् का आकाश,सिर पे रहा यूँ ही विराजमान..!

न कर मूर्खता,दिल इससे यूँ ही दुखता..!
सर्वनाश का कारण है,ये अनदेखा अज्ञान..!

वास्तविकता कुछ और,नज़र आएगी बाद में..!
पर तब तक नष्ट हो जायेगा,ख़्वाबों का जहान..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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