भोर की पहली किरण चुन रही तुषार कण बांध कर असंख्य मोती उड़ चली फिर से गगन। चढ़ रहा दिनमान उपर मृयमान होते जीव जलचर उष्णता की ताप में जीवन पथिक की सांस दूभर। चेतना निस्तेज...! प्राणों का आक्लान्त क्रंदन मेघ! फिर घिर आओ बनकर आस जीवन!! प्रीति #ओस_की_बूँदें #धूप # आशा #मेघ ,#yqhindi #yqhindiquotes