"निर्झर" दुर्गम पहाड़ों को चीरता हुआ, अपनी मंज़िल का ख़्वाब लिये, अपनी मस्ती में खड़खड़ बहता, निकलता है स्नेह भरा निर्झर अपनी राहों पर। मन में हौसला, दिल में उम्मीद लिए, ना रूकता कही, ना झुकता कभी, अपनी राह खुद चुनकर, देता है पैग़ाम सबको निरंतर चलने का। ना कोई साथी उसका, ना ही हमराही, वह तो चला अकेले खुद पर भरोसा करके, अपने संघर्ष को अपना धर्म मानकर, बहता चला वह अपनी मंज़िल की ओर। बहता निर्झर लगता है बहुत ही खूबसूरत, जैसे लगता है प्रकृति का धरा से संगम, मिलो दूर से बहता अपनी मंज़िल की तलाश में, आखिर में वह सिमटता है तो सागर में ही। -Nitesh Prajapati रचना क्रमांक :-2 #निर्झर #collabwithक़लम_ए_हयात #क़लम_ए_हयात #जन्मदिन_qeh22