#5LinePoetry एक अजनबी कुछ अपनेपन- सा,याद नही क्या क्या सोचा था सारे सपने भूल गयी उनके ख्वाबों से जब निकली अपना ही मंजर भूल गयी ढलते सूरज चमकती चट्टाने और....वो पुरुष उफ़्फ़ तेरे इन सपनों की गलियों से जब गुजरी अपनी- ही मंजिल भूल गयी। उजले उजले कपड़े पहने तुम ख्वाबों के उन हसीन वादियों में यू मिलते हो, ©Akanksha Srivastava उफ़्फ़फ़ ये बांवरा सा मन #5LinePoetry