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*** कविता *** *** मैजूदगी *** " ओ शाम की रूशवाई र

*** कविता ***
*** मैजूदगी ***

" ओ शाम की रूशवाई रास नहीं आ रही ,
जिसकी बातें अक्सर मेरी खामोशि ‌पे हावी हुई हैं ‌,
ढुंढता हुं फिर से तुझे ऐसे हालातो में ,
जिसकी मैजूदगी हमेशा वेपनाह मिलीं हैं ,
कुछ अक्ष अब भी सम्हाले बैठे हैं , 
कुछ बातें उसकी कमी बहुत करती हैं ,
जिक्र करना यु तेरा अब काफी नहीं मेरे लिये ,
मेरी खामोशि को तु चाहिए कुछ बातों के लिये ,
दफ्न यादों को फिर से कुरेदने बैठा हूं , 
आज फिर तेरी बात यादें ताजा करने बैठे हैं ,
फिर से तेरी कमी महसूस हो रही ऐसे हालातो में ,
हर शख्स हैं यहां बस तेरी मैजूदगी कम लग रही ,
आ ना भर लु तुझे  बाहों में मुहब्बत की राहों में , 
ये मेरी मुहब्बत तेरे बिना बेफजुल लग रही हैं ,
आ ना भर दे मेरी तन्हाईयो को ऐसे में ,
फिर से तेरी मैजूदगी कुछ कम लग रही हैं .। " 

                                      --- रबिंद्र राम #लव #मैजूदगी #एहसास
*** कविता ***
*** मैजूदगी ***

" ओ शाम की रूशवाई रास नहीं आ रही ,
जिसकी बातें अक्सर मेरी खामोशि ‌पे हावी हुई हैं ‌,
ढुंढता हुं फिर से तुझे ऐसे हालातो में ,
जिसकी मैजूदगी हमेशा वेपनाह मिलीं हैं ,
कुछ अक्ष अब भी सम्हाले बैठे हैं , 
कुछ बातें उसकी कमी बहुत करती हैं ,
जिक्र करना यु तेरा अब काफी नहीं मेरे लिये ,
मेरी खामोशि को तु चाहिए कुछ बातों के लिये ,
दफ्न यादों को फिर से कुरेदने बैठा हूं , 
आज फिर तेरी बात यादें ताजा करने बैठे हैं ,
फिर से तेरी कमी महसूस हो रही ऐसे हालातो में ,
हर शख्स हैं यहां बस तेरी मैजूदगी कम लग रही ,
आ ना भर लु तुझे  बाहों में मुहब्बत की राहों में , 
ये मेरी मुहब्बत तेरे बिना बेफजुल लग रही हैं ,
आ ना भर दे मेरी तन्हाईयो को ऐसे में ,
फिर से तेरी मैजूदगी कुछ कम लग रही हैं .। " 

                                      --- रबिंद्र राम #लव #मैजूदगी #एहसास