बारिश में मिट्टी की सोंधी महक और वो कागज़ की नाव में सवार होकर दुनिया देख लेना, आज उस कीचड़ से पांव बचाता बचपन, गाड़ियों के शोर में कहीं खो सा गया है। वो घंटों इंतज़ार करना बिजली के आने का, और मोहल्ले में शोर हो जाना अंताक्षरी के गानों का, अब पांच मिनट बिजली चले जाने की झुंझलाहट में कहीं सो सा गया है। वो हैंड पंप चला के बाल्टी भरना, वो छत पर बिस्तर लगाकर पानी छिड़कने की अठखेलियां, वो सितारों में खोजना ख्वाबों की लंबी फेहरिस्त, अब ऊंची इमारतों की लिफ्ट में कैद, कुछ घुटा सा, कभी अपना, कभी दुनिया का बोझ उठाए, कुछ रो सा गया है। कुछ दिन की लंबी छुट्टी में खुश होने को मजबूर, खुद को ही तसल्ली देता, समझाता, वक़्त के बदलने की कहानी सुनाता, उन गिरे पड़े ख्वाबों की चादर को चुपके से, खुद से ही आंखें चुराकर धो सा गया है। #poetry#kavita#tej#poetryisnotdead#originalpoetry #waqtkibaat#yqbaba