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नेता आये दिन चुनाव के, मीठी हुई जुबान । जी

नेता

आये  दिन  चुनाव   के, मीठी  हुई   जुबान ।
जीते   तो फिर खो  गए,जाने कहाँ  श्रीमान ,
जाने कहाँ श्रीमान, "बादल" मिली जो गद्दी !
वादों को वो यूँ  फेंक गए, वो समझ के रद्दी ।

हिस्सा-हिस्सा बांट कर बैठे  हैं ये  लोग ,
बड़ा बुरा होता है ये ,राजसत्ता का रोग ,
राजसत्ता का रोग,ये वोट  बैंक  बनाते ,
फिर होकर निश्चिंत सालों मजे उड़ाते ।

रचना-यशपाल सिंह बादल

©Yashpal singh badal कवित्त
नेता

आये  दिन  चुनाव   के, मीठी  हुई   जुबान ।
जीते   तो फिर खो  गए,जाने कहाँ  श्रीमान ,
जाने कहाँ श्रीमान, "बादल" मिली जो गद्दी !
वादों को वो यूँ  फेंक गए, वो समझ के रद्दी ।

हिस्सा-हिस्सा बांट कर बैठे  हैं ये  लोग ,
बड़ा बुरा होता है ये ,राजसत्ता का रोग ,
राजसत्ता का रोग,ये वोट  बैंक  बनाते ,
फिर होकर निश्चिंत सालों मजे उड़ाते ।

रचना-यशपाल सिंह बादल

©Yashpal singh badal कवित्त