समझौते की ज़िन्दगी बोझिल लगती रात, दिल में हो जब दर्द तो बुरी लगे हर बात, खींचातानी रात-दिन बढ़ता व्यर्थ विवाद, कलहपूर्ण वातावरण ख़ुद से करता घात, मंडराये शंका के बादल हुआ रंग बदरंग, करे तबाही पैदा आकर बेमौसम बरसात, जंगी बेड़ों की आमद से हुआ सिन्धु बेहाल, बेक़ाबू जहरीले फन छुपकर करते आघात, झूठी मान बड़ाई और ख़ुदगर्जी का आलम, मचे महाभारत हो जाए मुश्क़िल रहना साथ, बचा नहीं सम्मान प्रेम तो बढ़ने लगती खाई, दोषारोपण में फिर उठता एक-दूजे का हाथ, प्रेम और सौहार्द बिना गुंजन सबकुछ बेकार, घर बन जाएगा जन्नत काबू में रखो ज़ज़्बात, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ○प्र○ ©Shashi Bhushan Mishra #समझौते की ज़िन्दगी#