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चोर चोर उचक्के भाई भाई। दिनभर रोती इनकी माई। सु



चोर

चोर उचक्के भाई भाई।
दिनभर रोती इनकी माई।
सुबह होते धंधे को चले
बीच में मिले चार सिपाई।
दूर से देखा तब सब दौड़े
मुश्किल से तब जान बचाई।
इक दिन सेंध लगा चोरी की
जाग हुई फिर लगी  पिटाई।
लूट लूट कर खूब कमाया
शांति कभी न मिली दिखाई।
चोरी करके जश्न मनाते।
घर की चिंता नहीं सताई।
घरवाली रो-रो कर हारी
भूखे पेट ना नींद आई।
कैसे समझाऊं मन साजन
मेहनत ही सदा सुखदाई।
सुख से जो भी रहना चाहे
चोरी से ना कर भरपाई।

डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद
स्वरचित व मौलिक रचना

©rekha jain
  #loyalचोरty